कृषि

एक किलो प्याज का 51 पैसे मिलते देख मंडी में ही छोड़ आया किसान, लागत आई थी आठ रुपए

प्याज के गिरे हुए दाम को देख मध्य प्रदेश के किसान प्याज, लहसुन पर समर्थन मूल्य तय करने की मांग कर रहे हैं

Shuchita Jha

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के विपिन शर्मा ने 47 हजार रुपए लगाकर 8 क्विंटल प्याज उगाया। नए साल में वे अपना प्याज बेचने मंदसौर पहुंचे। कीमत मिली 51 रुपए प्रति क्विंटल यानी एक किलो प्याज पर उन्हें मुश्किल से 51 पैसे प्रति किलो की दर मिल रही थी। उन्होंने इतनी कम कीमत पर प्याज बेचने के बजाए उसे मंडी में ही छोड़ना ठीक समझा। 

"मैंने 15 हजार रुपए का तो बीज ही खरीदा था। आधा एकड़ में प्याज लगाने की कुल लागत 47,000 आई थी। अब प्याज का अब कोई दाम देने को तैयार नहीं है। मैंने अपनी फसल मंडी में छोड़ना ही ठीक समझा।," शर्मा ने मंगलवार को डाउन टू अर्थ से बातचीत में बताया।  

इन दिनों देश के अलग-अलग मंडियों में प्याज की आवक हो रही है, लेकिन हर जगह से किसान दाम कम मिलने की शिकायत कर रहे हैं और मंडी में क्लिंटलों प्याज बिना बेचे छोड़कर रहे हैं। 

शर्मा आगे बताते हैं, "बहुत से किसान इस बार निराश हुए। पहले लहसुन का ऐसा हाल हुआ, औप अब  प्याज का। इस बार पहले बीमारी लगने के कारण फसल खराब हुई , उस के बाद अब लागत भी नहीं निकाल रही। मेरी फसल में जलेबी रोग हो गया था, जिस से फूल गोल हो के मर गए और पैदावार बहुत काम हुई।  इस रकबे में लगभग 30 क्विंटल प्याज निकलती है पर इस बार केवल 8 क्विंटल ही उपज हुई।"

इसी जिले के रघुवीर सिंहजी ने 3 जनवरी को मंदसौर मंडी में 30 क्विंटल प्याज 12,000 रुपए में बेचा। उन्हें इस सौदे के बाद 18,000 रुपए का नुकसान झेलना पड़ा। 

"मेरी एक एकड़ में हुई 30  क्विंटल प्याज, मात्र 4 रुपए प्रति किलो के दाम पर बिकी।  मेरी लागत ही 8 से 9 रुपए प्रति किलो की दर से लगी है। इस के बाद गांव से मंडी तक ट्रैक्टर में लाद के लाने में भी खर्च लगा। मुझे समझ नहीं रहा है कि अब घर का खर्च कैसे चलेगा जब मुनाफा तो दूर, लागत भी नहीं निकली।," उन्होंने  डाउन टू अर्थ से बातचीत में बताया। 

व्यापारियों का यह कहना कि प्याज ख़राब है, पर सच नहीं है। बारिश के कारण प्याज ख़राब हुई थी मगर ख़राब माल को खाद बना लिया गया या पशुओं को खिला दिया। अब जो प्याज हम बेच रहे हैं उसकी गुणवत्ता सही है," उन्होंने आगे कहा। 

प्याज पर समर्थन मूल्य का होना बड़ी समस्या

पूरे देश में 2019-2020 में 26,855.93 हज़ार टन प्याज  की उपज हुई। मध्य प्रदेश में 4082.90 हज़ार टन प्याज की पैदावार हुई, जो की पूरी उपज का 15 % है। 

प्याज पर समर्थन मूल्य होने पर जिले के दूसरे किसान भी इसी समस्या का सामना कर रहे हैं।  यही हाल है मंदसौर के बूढ़ा गांव के दिलीप पाटीदार का। उन्होंने 675 रुपए प्रति क्विंटल की दर से मंदसौर मंडी में प्याज बेच कर घाटे का सौदा किया है। 

"इस वर्ष तो प्याज के दाम कुछ ज़्यादा ही गिर गए।  मैंने 15 क्विंटल प्याज 10,125 रुपए में बेची। दो बीघे (लगभग एक एकड़ ) में, 45,000 रुपए की लागत लगा कर फसल उपजाई थी, मगर मुझे तो लागत का 22 % भी दाम नहीं मिला।  सरकार को प्याज और अन्य सब्जियों पर एमएसपी तय करनी चाहिए नहीं तो ऐसे कब तक किसान नुकसान झेलते रहेंगे ?" उन्होंने डाउन टू अर्थ से कहा। 

कृषि उपज मंडी, मंदसौर के सचिव पर्वत सिंह सिसोदिया ने बताया कि जनवरी से हुई प्याज की खरीदी में प्याज  100 रुपए प्रति क्विंटल से 1900 प्रति क्विंटल की दर से बिक रही है। 

"कृषि उपज मंडी में व्यापारी बोली लगाते है, और प्याज की गुणवत्ता देख कर उसे खरीदते हैं। इस बार 100 रुपए क्विंटल के दाम से बोली शुरू हो रही है।  बारिश के कारण किसानों की फसल ख़राब भी हुई थी, इसलिए इस बार दाम कम मिल रहा है।", उन्होंने कहा।  

मध्य प्रदेश की आम किसान युनियन के प्रमुख कदर सिरोही लेकिन इस बात का दोष मार्केट फोर्सेज को देते हैं।  उन के हिसाब से यह कुछ बड़े व्यापारियों का मुनाफा कमाने का तरीका है।  

"प्याज एमपी के मालवा क्षेत्र की एक बड़ी फसल है। जैसे ही पेट्रोल , डीज़ल के दाम बढ़ते हैं , वैसे ही प्याज, लहसुन और आलू का दाम सबसे पहले बढ़ता है। ये व्यापारी किसान से काम दाम पर खरीद कर रिटेल में प्याज 30 से 35 रुपए प्रति किलो बेचते हैं।  दूसरी चीज़ों में प्रोडूसर को कम से कम 40 -50 % का मुनाफा होता है, पर यह बात किसानों पर लागू नहीं होती। यहां तो 90 % से ज़्यादा का प्रॉफिट मार्जिन खुदरा व्यापारियों को मिल रहा है। ये लोग तो किसान को भी लूट रहे हैं, जनता को भी," वह कहते हैं। 

सरकार से समर्थन मूल्य की मांग करते हुए उन्होंने कहा, "किसान की लागत एक किलो पर 7 से 8 रुपए की है, और वह 4 से 6 रुपए प्रति किलो पर उसे पर बेचने पर मजबूर है। इस हिसाब से उन्हें लागत नहीं मिल नहीं रही औल मेहनत भी बेकार जा रही। अगर किसी फसल का समर्थन मूल्य तय होता है तो उस फसल के दाम में ज़्यादा उतार-चढ़ाव नहीं आता।  इसीलिए सरकार को प्याज, लहसुन और आलू का भी समर्थन मूल्य तय करना चहिये।"