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कृषि कानूनों का असर: 2020 में किसानों के विरोध प्रदर्शनों में 38 फीसदी की वृद्धि हुई

Kiran Pandey, Lalit Maurya

27 सितंबर, 2021 को किसान संगठनों द्वारा भारत बंद का आह्वान किया गया था, जिसे कई राजनैतिक दलों ने भी अपना समर्थन दिया था। इस बंद ने कई लोगों को चौंका दिया था और यह बात चौंकाने वाली भी है क्योंकि देश के किसान रोज-रोज तो बंद का आह्वान नहीं करते हैं। क्या लम्बे समय से जिस तरह से किसानों द्वारा देश में विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं वो इस बंद के पीछे की बड़ी वजह थे। आइए जानते हैं इस बारे में आंकड़ें क्या कहते हैं।  

यदि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो 2020 में किसानों  द्वारा किए विरोध प्रदर्शनों की करीब 2,188 घटनाएं सामने आई थी और यह तब है जब इस समय पूरा देश कोरोनावायरस महामारी का दंश झेल रहा है। वहीं 2019 में यह आंकड़ा 1,579 था, जिसका मतलब है कि इस एक वर्ष की अवधि में विरोध प्रदर्शनों में करीब 38 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह जानकारी सितम्बर 2021 में जारी रिपोर्ट द क्राइम्स इन इंडिया 2020 में सामने आई है।

गौरतलब है कि सरकार द्वारा कथित तौर पर प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के बीच जब से संसद में इन तीन विवादास्पद कृषि विधेयकों को पारित किया है तब से देश के 15 में से 12 राज्यों में किसानों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों में इजाफा हुआ है। 

पिछले साल पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 10 महीनों से दिल्ली में मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार द्वारा जो यह तीन विवादास्पद कानून पारित किए गए हैं उनमें पहला कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक,  2020, दूसरा कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और तीसरा बिल आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम है।  

विश्लेषण से पता चला है कि तीन सालों की लगातार गिरावट के बाद 2020 में विरोध प्रदर्शनों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई थी। जहां 2016-17 में, किसानों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शनों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में करीब 31 फीसदी की कमी आई थी। वहीं 2017-18 में यह कमी करीब 40 फीसदी और 2018-19 में 21.4 फीसदी दर्ज की गई थी।

यदि 2020 में हुए विरोध प्रदर्शनों की बात करें तो अकेले बिहार में करीब 1,286 घटनाएं सामने आई थी जोकि देश में सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद महाराष्ट्र में 148 घटनाएं (तीन गुना वृद्धि), कर्नाटक में 148, उत्तर प्रदेश में 142 और झारखंड में पांच गुना वृद्धि के साथ 83 घटनाएं दर्ज की गई थी। वहीं तमिलनाडु में भी विरोध प्रदर्शनों की संख्या में तीन गुना वृद्धि दर्ज की गई है।

किसान असहमति का बढ़ता भूगोल

डाउन टू अर्थ में 25 सितंबर, 2020 को छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 के दौरान किसानों में बढ़ता असंतोष पिछले वर्षों की तुलना में कहीं व्यापक क्षेत्र में देखा गया है। एनसीआरबी के आंकड़ों भी इसी तरह की प्रवृत्ति का संकेत देते हैं।

एनसीआरबी के अनुसार, 2019 की तुलना में किसानों के विरोध प्रदर्शन की रिपोर्ट करने वाले राज्यों की संख्या 2020 में 12 से बढ़कर 15 हो गई है। गौरतलब है कि 2020 में जिन तीन नए राज्यों में किसान समुदायों द्वारा विरोध किया था वो हरियाणा, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश हैं।

हालांकि किसान आंदोलनों पर एनसीआरबी के आंकड़ों में उन कुछ राज्यों को शामिल नहीं किया गया है जहां किसानों को पिछले साल विरोध करते देखा गया था। इस तरह यह रिपोर्ट पूरी तरह स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत नहीं करती है, जिसमें सुधार की आवश्यकता है।

2020 में, असम, गोवा, केरल, मणिपुर, पंजाब, राजस्थान, त्रिपुरा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के किसानों ने भी सरकार की नीतियों और नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए थे, लेकिन एनसीआरबी की रिपोर्ट में इन राज्यों में विरोध प्रदर्शनों की घटनाओं को "शून्य" दिखाया गया है। 

देखा जाए तो उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों के साथ-साथ पंजाब के किसान भी जून 2020 से चल रहे राष्ट्रव्यापी आंदोलन में सबसे आगे बने हुए हैं। लेकिन एनसीआरबी की रिपोर्ट 2020 में पंजाब में हुए विरोध प्रदर्शनों की घटनाओं को शून्य दिखाती है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, राज्य ने पिछले छह वर्षों (2014-2020) के दौरान किसानों के असंतोष की कोई घटना दर्ज नहीं की है।

2021 में नया रिकॉर्ड बना सकता है राष्ट्रव्यापी आंदोलन

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा 2021 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 में, कम से कम 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के किसान इन कृषि कानूनों के खिलाफ अपनी असहमति दर्ज करने के लिए सामने आए हैं।

मीडिया में छपी रिपोर्टों के आधार पर संकलित इस वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि ये ज्यादातर विरोध तीन विवादास्पद कृषि कानूनों, राज्य विधानों, कृषि क्षेत्र के लिए आबंटित बजट, बाजार और मूल्य-संबंधी विफलताओं और फसलों के अधिक समर्थन मूल्य की मांग को लेकर किए गए थे।

वहीं बढ़ते असंतोष के लिए जिम्मेवार अन्य कारकों में उर्वरकों और सिंचाई सुविधाओं जैसी जरुरी चीजों की अनुपलब्धता या बढ़ी हुई कीमतें, विकास परियोजनाओं के नाम पर ली गई भूमि के लिए पर्याप्त मुआवजा न मिलना, खराब बीमा कवरेज, देरी से मुआवजा और कृषि ऋण के भुगतान जैसे मुद्दे शामिल थे। यदि मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कृषि विधेयकों के पारित होने के एक साल पूरे होने पर जो 'भारत बंद' का जो आयोजन किया गया था वो पंजाब में सबसे ज्यादा सफल रहा है, जहां कम से कम 350 स्थानों से प्रदर्शनकारी एकत्र हुए थे।