फाइल फोटो: सीएसई 
कृषि

एफएओ रिपोर्ट: भूमि क्षरण से फसल उत्पादन में 10% गिरावट, 4.7 करोड़ बच्चे कुपोषित

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की ताजा रिपोर्ट “द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर 2025” जारी की गई

DTE Staff

  • मानव-जनित भूमि क्षरण के कारण फसल उत्पादन में 10% की गिरावट आई

  • एफएओ की रिपोर्ट के अनुसार, इससे 1.7 अरब लोग प्रभावित हैं

  • इस संकट के चलते 4.7 करोड़ बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं।

  • रिपोर्ट में सतत भूमि प्रबंधन पद्धतियों को अपनाने की सिफारिश की गई है ताकि खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादकता में सुधार हो सके

लगभग 1.7 अरब लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां मानवीय कारणों से भूमि के क्षरण के चलते फसलों की पैदावार घट रही है। यह एक व्यापक और मूक संकट है जो कृषि उत्पादकता को कमजोर कर रहा है और दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्र (इकोसिस्टम) के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन गया है।

 यह चिंताजनक आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की ताजा रिपोर्ट “द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर 2025” में सामने आया है, जिसे आज रोम स्थित मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान जारी किया गया।

रिपोर्ट में एक स्पष्ट संदेश दिया गया है कि भूमि क्षरण न केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि यह कृषि उत्पादकता, ग्रामीण आजीविका और खाद्य सुरक्षा सभी पर गहरा प्रभाव डालती है।

इस रिपोर्ट में अब तक का सबसे व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि किस तरह मानव-जनित भूमि क्षरण फसलों की पैदावार को प्रभावित कर रहा है। रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर उन क्षेत्रों की पहचान की गई है जो इस संकट के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं, और यह भी बताया है कि इन नुकसानों का संबंध गरीबी, भुखमरी और कुपोषण के अन्य रूपों से कैसे जुड़ा हुआ है।

रिपोर्ट में नवीनतम वैश्विक आंकड़ों जैसे खेती के वितरण, आकार और फसल उत्पादन के आधार पर रिपोर्ट एकीकृत और टिकाऊ भूमि उपयोग एवं प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने के लिए ठोस अवसर सुझाए गए हैं। इसके साथ-साथ उन नीतियों की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है, जिनका उद्देश्य भूमि क्षरण को रोकना व क्षरित भूमि को पुनर्जीवित करना शामिल है, ताकि खाद्य उत्पादन और किसानों की आजीविका दोनों में सुधार हो सके।

भूमि क्षरण का प्रभाव

एफएओ के मुताबिक भूमि क्षरण से आशय भूमि की उन आवश्यक पारिस्थितिक कार्यों और सेवाओं को प्रदान करने की क्षमता में दीर्घकालिक गिरावट, जो जीवन और उत्पादन के लिए आवश्यक हैं।

भूमि क्षरण शायद ही कभी किसी एक कारण से होता है। यह आमतौर पर कई कारकों के संयोजन का परिणाम होता है। इनमें प्राकृतिक कारण जैसे मृदा अपरदन और लवणीकरण शामिल हैं, लेकिन अब मानव-जनित दबाव इसके प्रमुख कारण बन चुके हैं। वनों की कटाई, अत्यधिक चराई और असतत खेती एवं सिंचाई पद्धतियां आज भूमि क्षरण के सबसे बड़े कारक बन गए हैं।

एफएओ की ताजा रिपोर्ट द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर 2025 मानव-जनित भूमि क्षरण पर केंद्रित है।

भूमि क्षरण को मापने के लिए, रिपोर्ट में एक ऋण-आधारित पद्धति का उपयोग किया गया है। इसमें तीन प्रमुख संकेतकों मृदा कार्बनिक कार्बन, मृदा अपरदन और मृदा जल के वर्तमान मूल्यों की तुलना उन स्थितियों से की गई है, जो मानव गतिविधियों के बिना, प्राकृतिक या मूल अवस्था में होतीं।

रिपोर्ट का अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 1.7 अरब लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां मानव-जनित भूमि क्षरण के कारण फसल उत्पादन में औसतन 10 प्रतिशत की गिरावट आई है। इनमें से 4.7 करोड़ बच्चे (5 वर्ष से कम आयु के) कुपोषण के कारण अवरुद्ध वृद्धि से पीड़ित हैं।

संख्यात्मक रूप से देखा जाए तो एशियाई देश सबसे अधिक प्रभावित हैं। इसका कारण वहां भूमि क्षरण का अधिक संचय और उच्च जनसंख्या घनत्व है।

फिर भी, रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि यदि मौजूदा कृषि भूमि पर मानव-जनित भूमि क्षरण का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा भी उलट (पुनर्जीवित) दिया जाए, तो इससे इतनी खाद्य उत्पादन क्षमता बहाल हो सकती है कि हर वर्ष 15.4 करोड़ अतिरिक्त लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जा सके।

ऐसा करने के लिए, रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सतत भूमि प्रबंधन पद्धतियां अपनाई जाएं — जैसे फसल चक्र और आवरण फसलों यानी कवर कॉर्पिंग की खेती, जो मृदा स्वास्थ्य की रक्षा, मृदा अपरदन में कमी, और जैव विविधता के संरक्षण में सहायक होती हैं।