कृषि

हर साल खेतों से जमीन में रिस रहा 70,000 टन कीटनाशक, नदियां भी नहीं हैं अछूती

हर साल खेतों में करीब 30 लाख टन कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इसमें से करीब 70,000 टन कीटनाशक जमीन के अंदर रिसकर भूजल में मिल रहा है

Lalit Maurya

दुनिया भर में हर साल खेतों में करीब 30 लाख टन कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इसमें से करीब 70,000 टन कीटनाशक जमीन के अंदर रिसकर भूजल में मिल रहा है। जो जमीन के अंदर मौजूद पानी को भी जहरीला बना रहा है।

शोध में यह भी सामने आया है कि खेतों में उपयोग होने वाले यह कीटनाशक लम्बी दूरी तय करके समुद्रों तक पहुंच सकते हैं। वहीं उपयोग होने वाले 80 फीसदी कीटनाशक अणुओं में विभाजित होकर या उपोउत्पाद के रुप में फसलों के आसपास ही मिट्टी में विघटित हो जाते हैं।

देखा जाए तो कभी फसलों के लिए वरदान समझे जाने वाले यह कीटनाशक आज इनके बेतहाशा बढ़ते उपयोग के चलते अभिशाप बन गए हैं। जो पर्यावरण के साथ-साथ, पानी, मिट्टी, हवा और खाद्य पदार्थों को भी जहरीला बना रहे हैं। आज यह न केवल जैवविविधता बल्कि इंसानो के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन गए हैं। इनका अंधाधुंध तरीके से खेतों में होता उपयोग, किसानों के लिए भी खतरा हैं क्योंकि यह मिट्टी की गुणवत्ता को बिगाड़ रहा है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि खेतों से निकलने वाला यह कीटनाशक 730 टन प्रतिवर्ष की दर से नदियों में घुल रहा है। इसी का नतीजा है कि वैश्विक स्तर पर नदियों के करीब 13,000 किलोमीटर हिस्से में इन कीटनाशकों की मात्रा सुरक्षित सीमा को पार कर गई है। जो उसमें रहने वाले समुद्री जीवों और वनस्पति के लिए खतरा बन चुकी है। इसके साथ ही यह नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को भी प्रभावित कर रहे हैं।

मैगी के मुताबिक भले ही इसमें से नदियों में पहुंचने वाले कीटनाशकों की 0.1 फीसदी मात्रा ज्यादा न लगती हो लेकिन पर्यावरण को प्रभावित करने के लिए इन कीटनाशकों की यह थोड़ी मात्रा ही बहुत है।

यह जानकारी सिडनी विश्वविद्यालय और खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में 12 जुलाई 2023 को प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर कृषि में उपयोग किए जाने वाले 92 कीटनाशकों और उनके भौगोलिक वितरण का विश्लेषण किया है।

हर साल समुद्रों तक भी पहुंच रहा 710 टन कीटनाशक

रिसर्च के अनुसार हालांकि मिट्टी में रिस रहे कीटनाशकों की तुलना में केवल 1.1 फीसदी कीटनाशक ही नदियों में मिल रहा है, लेकिन इसके बावजूद वो बड़े पैमाने पर नदियों और उसकी जैवविविधता को प्रभावित कर रहा है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इन कीटनाशकों में से करीब 710 टन हर साल समुद्रों तक पहुंच रहा है जो वहां भी समुद्री जीवन और उसके पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा बन रहा है।

इस बारे में सिडनी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ सिविल इंजीनियरिंग और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता फेडेरिको मैगी का कहना है कि, "हमारे अध्ययन से पता चला है कि कीटनाशक अपने मूल स्रोत से बहुत दूर तक भटकते हैं। कई मामलों में ये केमिकल नीचे की ओर लंबा रास्ता तय करते हैं और बहुत कम मात्रा में, समुद्र तक पहुंच जाते हैं।''

शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि उन्होंने अपने अध्ययन में केवल खेतों में उपयोग होने वाले कीटनाशकों को शामिल किया है। इसमें उन्होंने लोगों द्वारा अपने बगीचों, घरों, सार्वजनिक स्थानों, और जलीय कृषि में उपयोग के साथ पहले उपयोग किए गए कीटनाशकों की गणना नहीं की है। इसका मतलब है कि लोगों और पारिस्थितिक तंत्र का इन कीटनाशकों के संपर्क में आने का जोखिम उनके अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकता है।

जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक अन्य शोध से पता चला है कि कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग की वजह से दुनिया में खेतीयोग्य जमीन का करीब 64 फीसदी हिस्सा यानी 2.45 करोड़ किलोमीटर हिस्सा खतरे में है। वहीं करीब एक तिहाई जमीन (31 फीसदी) पर इसका गंभीर खतरा मंडरा रहा है। अध्ययन के अनुसार इसकी वजह से भारत, दक्षिण अफ्रीका, चीन, ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना में वाटरशेड्स पर कीटनाशकों के कारण होते प्रदूषण का खतरा कहीं ज्यादा है।

ऐसे में शोधकर्ताओं का कहना है कि कीटनाशकों के बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए उसकी मात्रा के साथ-साथ विषाक्तता और जोखिम को कम करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, क्योंकिं कुछ जीवों के लिए बहुत ज्यादा जहरीले कीटनाशकों की बहुत कम मात्रा भी उनके लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है। 

अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया है कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र पर इनके प्रभावों को देखते हुए सरकारों को कृषि में उपयोग होने वाले उर्वरकों और कीटनाशक से जुड़े आंकड़ों का खुलासा करना चाहिए। शोधकर्ता मैगी का भी कहना है कि कीटनाशकों के उपयोग में वैश्विक कमी तभी संभव है, जब इस तरह की पहला को किसानों के परामर्श से बनाया और कार्यान्वित किया जाता है।

उनका यह भी कहना है कि वैश्विक स्तर पर, नई तकनीकों और फसलों के बेहतर प्रबंधन के जरिए उपज को बढ़ाया जा सकता है और प्रचुर मात्रा  में खाद्य आपूर्ति की जा सकती है।