कृषि

देश की आठ हजार दाल मिले बंद है, जानिए दलहन किसान और मजदूर का हाल

लॉकडाउन की वजह से दाल मिलें बंद पड़ी हैं, 2 लाख से अधिक मजदूर खाली बैठे हैं और दलहन किसान की चिंता बढ़ती जा रही है

Vivek Mishra
इस बार करीब 2.5 एकड़ खेत में चना दाल लगाया था। ओले और ठंड के कारण सारी फसल बर्बाद हो गई। हमें 15 क्विटल चना दाल मिलने की उम्मीद थी हालांकि महज कुल 1.5 क्विंटल चना दाल ही हमें मिल पाई है। यह सिर्फ अगली बार के लिए बीज के इस्तेमाल में  लगाया जाएगा। 25 मार्च, 2020 से देशव्यापी लॉकडाउन के कारण आधा गेहूं भी घर पर ही बोरे में रखा है। भंडारण के लिए जगह नहीं है। मंडी बंद है और सरकार की तरफ से खरीद को लेकर अभी आश्वस्त भी नहीं हैं। 
मध्य प्रदेश के सिहोर तहसील में बिल्किसगंज गांव के रहने वाले कृषक प्रवीण परमार ने डाउन टू अर्थ से यह बात साझा की। उन्होंने बताया कि उनके पास कुल  25 एकड़ खेत है। 23 एकड़ क्षेत्र में गेहूं लगाया था और करीब 2.5 एकड़ खेत में चने की दाल लगाई थी। 
आखिर 2.5 एकड़ चना दाल की खेती से परमार को क्या मिला? वे बताते हैं कि बुआई के समय बीज महंगा होता है। नवंबर में बुआई की गई थी उस वक्त 4,000 रुपये में एक क्विंटल बीज मिला था। इस फसल के लिए करीब 8000 रुपये बिजली का बिल दिया। 3,000 रुपये की डीएपी-खाद लगाई, 1000 रुपये में कीटनाशक का छिड़काव किया। खेती की शुरुआती तैयारी और बुआई के लिए 3000 रुपये खर्च किए। वहीं, 3 हजार रुपए कटाई और थ्रेसिंग में 11 लेबर पर खर्च किया। इस तरह करीब 22 हजार रुपये 2.5 एकड़ चने की दाल को के लिए खर्च किया और बदले में उन्हें 1.5 क्विंतल चने की दाल मिली, जिसका बाजार भाव करीब 3500 रुपये क्विंतल है। यानी लागत का चौथाई भी हासिल नहीं हुआ। 
रबी सीजन की फसलों को खराब मौसम की मार झेलनी पड़ी है। ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र अग्रवाल ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि इस बार हर आठ-आठ दिन पर बारिश हुई जिसके कारण दलहन की फसल में तुअर और उड़द को काफी नुकसान हुआ है। खासतौर से राजस्थान, महाराष्ट्र में यह देखने को मिला है। किसानों को बीते तीन वर्षों से उनकी उपज का समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा है।  चने का समर्थन मूल्य 4832 रुपए है और तुअर का समर्थन मूल्य 5800 रुपये प्रति क्विंतल है लेकिन किसानों को सिर्फ 5200 रुपये प्रति क्विंतल तक का भाव मिल रहा है। 
उन्होंने बताया कि दाल उद्योग पूरी तरह लॉकडाउन की चपेट में है। इस वक्त ज्यादा परेशानी मिलों से जुड़े मजदूरों को है। देश में दाल की आठ हजार मिले हैं। हर मिल में औसत 30 मजदूर है। ऐसे में करीब 2.4 लाख मजदूर मिलों से जुड़े हुए हैं। इन सबकी रोजी-रोटी ठप हो गई है। दाल मिलों का समय नवंबर से लेकर मई तक होता है। अब यह अप्रैल पूरा लॉकडाउन में चला जाएगा और मई में शायद सरकार कोई निर्णय ले लेकिन दाल की सप्लाई बाधित हो सकती है। 
मिलों को चलाने के लिए कच्चा माल दूसरे राज्यों से आ नहीं रहा है। दाल की मांग नहीं है। दाल मिले बंद है। प्रोसेसिंग नहीं हो रही है। लॉकडाउन के कारण श्रमिक घर जा चुके हैं। वहीं दलहन का उत्पादन भी पिछले वर्ष के मुकाबले इस बार कम हुआ है। बीते वर्ष करीब 10 लाख टन दाल का आयात हुआ था जिसका स्टॉक नेफेड और व्यापारियों के पास अब भी है। दाल का संकट नहीं होगा लेकिन कीमतों में बदलाव जरूर हो सकते हैं। 
उद्योग जगत की कमर पहले से ही टूटी हुई है लेकिन आपदा के वक्त कुछ किया नहीं जा सकता। हम मिलों का बिजली बिल चुका रहे हैं। उन कर्मियों को वेतन भी देना है जो मिलों की मशीनों को चलाते हैं जो घर चले गए उनका कुछ कर नहीं सकते। 
भारत वित्त वर्ष 2020-21 में कुल 30 लाख दालों का आयात कर सकता है, जिससे यहां की पैदावार को न सिर्फ धक्का लग सकता है बल्कि कीमतें भी प्रभावित हो सकती हैं। 
बीते वित्त वर्ष 2019-20 में 260 लाख टन सरकारी उत्पादन लक्ष्य से 10 फीसदी कम 230 लाख टन दाल का ही उत्पादन देश में हुआ था। इस वित्त वर्ष में अतिवर्षा के कारण नुकसान होने और गेहूं का रकबा बढ़ने के कारण दाल मिल एसोसिएशन का अनुमान है कि दालों का उत्पादन 210 लाख टन  के आस-पास हो सकता है। 
भारत दुनिया में सबसे ज्यादा सालाना करीब 260 लाख टन दालों का उत्पादन, उपभोग और आयात करता है। ऐसे में कम से कम 30 लाख टन  दाल की कमी लक्ष्य में होगी। पहले से ही समर्थन मूल्य न हासिल करने वाले  दलहन किसानों के लिए आायात बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है।