बढ़ती महंगाई से आम आदमी की पहुंच से बाहर होता पोषण; फोटो: आईस्टॉक 
कृषि

आर्थिक सर्वेक्षण 2024: अस्थिर मानसून, जलवायु परिवर्तन, फसलों की बीमारी की वजह से तीन साल में दोगुनी हुई खाद्य-महंगाई

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन के मुताबिक, लोगों को कृषि-कार्यों से गैर कृषि-कार्यों की ओर ले जाने वाली राष्ट्रीय रणनीति रोजगार और संपत्ति का सृजन नहीं कर पा रही है। उनकी सलाह है - ‘जड़ों की ओर लौटें’ और खेती को देश के ग्रामीण युवाओं के लिए फैशनेबल और उपयोगी बनाएं

Richard Mahapatra

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024 का मानना है कि खाद्य वस्तुओं की ऊंची महंगाई दर के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे महत्वपूर्ण कारक बनकर उभरा है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने परंपरा के अनुकूल केंद्रीय बजट प्रस्तावित होने से एक दिन पहले 22 जुलाई को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 पेश किया।

सर्वेक्षण के मुताबिक, उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) पर आधारित खाद्य मुद्रास्फीति पिछले तीन सालों में लगभग दोगुनी हो गई है। सीएफपीआई वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष) 2022 में 3.8 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 6.6 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2024 में 7.5 प्रतिशत हो गया।

सर्वेक्षण में खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण मौसम की प्रतिकूल स्थितियों को बताया गया है। इसमें कहा गया - "शोध संकेत करते हैं कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण जलवायु परिवर्तन, लू , मानसून का असमान वितरण, बिना मौसम की बारिश, ओलावृष्टि, मूसलाधार बारिश और ऐतिहासिक शुष्क स्थितियां हैं"। सर्वेक्षण में हाल की ऊंची खाद्य महंगाई को एक वैश्विक परिघटना बताया गया है। इसके मुताबिक, वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2024 में कृषि-क्षेत्र चरम मौसम की घटनाओं, जलाशयों के निम्न स्तर और फसलों के खराब होने से प्रभावित हुआ, जिससे कृषि उत्पादन और खाद्य कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

सब्जियां और दालें दो ऐसे मुख्य खाद्य पदार्थ हैं, जिनकी किसी परिवार के खाद्य बजट को तय करने में सबसे ज्यादा भागेदारी होती है। इन दोनों पर ही मौसम की अस्थिर स्थितियों का सबसे ज्यादा असर पड़ा। सर्वेक्षण में प्रतिकूल मौसम यानी जलवायु परिवर्तन और समग्र खाद्य मुद्रास्फीति के बीच संबंध बनाने के लिए कुछ विशिष्ट सब्जियों में अभूतपूर्व मूल्य वृद्धि की व्याख्या की गई है।

सर्वेक्षण के मुताबिक, जुलाई 2023 में टमाटर के दामों में वृद्धि का कारण फसल के उत्पादन के दौरान मौसम में बदलाव, क्षेत्र-विशेष के हिसाब से फसल में बीमारी जैसे - सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाई) का प्रकोप और देश के उत्तरी हिस्से में मानसून की बारिश का जल्दी आगमन था।

प्याज के दामों में वृद्धि के लिए भी सर्वेक्षण में मौसम की स्थितियों को ही जिम्मेदार बताया गया है। इसके मुताबिक, प्याज के दामों में वृद्धि के कई कारण थे, जैसे - सिंचाई के अंतिम सीजन के दौरान बारिश होने की वजह से रबी में होने वाले प्याज की गुणवत्ता पर असर पड़ना, खरीफ की फसल के दौरान बुआई में देरी होना, इसी दौरान लंबे शुष्क मौसम का होना और दूसरे देशों से व्यापार संबंधी कारकों का असर डालना आदि।

सर्वेक्षण के मुताबिक, पिछले दो सालों में अस्थिर और चरम मौसमी घटनाओं की वजहों से फसलों का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। दालों, खासकर तूर दाल की कीमतें इसके कम उत्पादन की वजह से बढ़ीं, जिसके लिए प्रतिकूल मौसमी स्थितियां जिम्मेदारी थीं। इसी तरह दक्षिणी राज्यों में मौसमी बाधाओं के चलते रबी के सीजन में बुआई की गति धीमी रही, जिससे उड़द की दाल के उत्पादन पर असर पड़ा।

सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र पर एक आश्चर्यजनक बात सामने आई। इसकी प्रस्तावना में, वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि लोगों को कृषि-कार्यो से गैर कृषि-कार्यों की ओर ले जाने वाली राष्ट्रीय रणनीति रोजगार और संपत्ति का निर्माण नहीं कर पा रही है।

उन्होंने ज्यादा रोजगार पैदा करने और आर्थिक तरक्की सुनिश्चित करने के लिए कृषि-क्षेत्र की ओर वापस जाने की वकालत की। उन्होंने यह भी कहा कि हाल के सालों में ‘रिवर्स माइग्रेशन’ हुआ है और लोग खेती की ओर लौटे हैं। नागेश्वरन ने इसके पीछे यह तर्क दिया कि भविष्य में निर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने की ज्यादा संभावना नहीं रह गई है।

मुख्य आर्थिक सलाहकार के मुताबिक, ‘पहले के विकास मॉडल में अर्थव्यवस्थाओं को उनकी विकास यात्रा में कृषि से औद्योगिकीकरण की ओर मूल्य आधारित सेवाओं की ओर पलायन करते हुए देखा गया था। आज के दौर की तकनीकी प्रगति और भू-राजनीति इस पारंपरिक ज्ञान को चुनौती दे रही है। व्यापार संरक्षणवाद, संसाधन-जमाखोरी, अतिरिक्त क्षमता और मूल्य गिराना, तटवर्ती उत्पादन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई का आगमन देशों के लिए विनिर्माण और सेवाओं से तरक्की की गुंजाइश को कम कर रहा है।’

उन्होंने आगे कहा कि यह हम पर दबाव डाल रहा है कि हम अपनी पारंपरिक सोच को बदलें, साथ ही यह सवाल भी उठाया कि क्या कृषि-क्षेत्र, हमारा उद्धारक बन सकता है।’

उन्होंने सुझाव दिया, ‘जड़ों की ओर लौटने यानी खेती करने और वैसी नीतियां बनाने से इन उच्च मूल्यों को हासिल किया जा सकता है, किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है, खाद्य प्रस्संकरण और आयात के लिए अवसर पैदा किये जा सकते हैं। इसके लिए कृषि-क्षेत्र को देश के ग्रामीण युवाओं के लिए फैशनेबल और उपयोगी बनाने की जरूरत है।’