कृषि

हर साल 10,556 मीट्रिक टन फास्फोरस हो रहा है बर्बाद, पानी के प्रदूषित होने के भी आसार

दुनिया भर में लगभग तीन-चौथाई खेती की मिट्टी में फास्फोरस की कमी है, भारत जैसे एशियाई देशों में फास्फोरस की कमी सबसे गंभीर है।

Dayanidhi

फास्फोरस के अधिक कुशल उपयोग से इस महत्वपूर्ण उर्वरक का सीमित भंडार 500 से अधिक वर्षों तक चल सकता है। बढ़ती आबादी की भोजन की मांग को पूरा करने के लिए दुनिया भर में फॉस्फोरस समेत कई उर्वरकों की मदद से फसलों के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि ये फायदे तभी होंगे जब देश फास्फोरस का सही उपयोग और बर्बादी को कम करेंगे। नेचर फूड में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, अधिकतम फसल पैदावार के लिए समायोजित फास्फोरस के सही उपयोग से वैश्विक फास्फोरस भंडार को बनाए रखने में मदद मिल सकती है।

लगभग 30 से 40 प्रतिशत खेती की मिट्टी में फास्फोरस का अत्यधिक उपयोग होता है, यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी देश ऐसे हैं जहां फास्फोरस का सबसे अधिक उपयोग होता है।

2050 तक दुनिया भर की आबादी लगभग 10 अरब तक पहुंचने का पूर्वानुमान है और अनुमान है कि इस बढ़ी हुई आबादी को खिलाने के लिए 50 करोड़  हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि की आवश्यकता होगी, जब तक कि फास्फोरस का उपयोग फसल की पैदावार को बढ़ाने और बनाए रखने के लिए अधिक कुशलता से नहीं किया जा सकता।

यूरोपीय संघ द्वारा एक महत्वपूर्ण कच्चे माल के रूप में सूचीबद्ध और हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा द्वारा चर्चा का विषय, विश्व स्तर पर 20,500 मीट्रिक किलोटन फास्फोरस हर साल उर्वरक के रूप में खेती की मिट्टी में उपयोग किया जाता है।

इसकी सीमित आपूर्ति और मीठे या ताजे पानी के नुकसान के बारे में चिंताएं व्यक्त की गई हैं, जहां यह पानी की गुणवत्ता को खराब कर सकता है। फास्फोरस मुख्य रूप से फॉस्फेट की चट्टानों के खनन से आता है, जिनमें से मोरक्को और रूस जैसे देशों में ये अपेक्षाकृत कम संख्या में स्रोत मौजूद हैं।

वैश्विक स्तर पर हमारे पास कितना फास्फोरस बचा है, इसका पिछला अनुमान 30 से 300 वर्षों के बीच काफी अलग है। ये पूर्वानुमान वर्तमान में जारी व्यर्थ की प्रथाओं पर आधारित थे और इनमें बहुत अधिक अनिश्चितता थी।

अध्ययन में कहा गया है कि यूके में लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी के साथ-साथ न्यूजीलैंड में एग्रीसर्च और लिंकन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा वैश्विक फास्फोरस के उपयोग और मिट्टी में इसकी मात्रा का पता लगाया।

इस नवीनतम शोध में 28 प्रमुख खाद्य फसलों, गेहूं और मक्का से लेकर चावल और सेब तक की अधिकतम वृद्धि के लिए दुनिया भर में खेती की मिट्टी में फास्फोरस की मात्रा की जांच की गई। शोध से पता चला कि ऐसी मिट्टी जिसमें पर्याप्त फास्फोरस नहीं था और ऐसी मिट्टी जिसमें पौधों के अधिकतम विकास के लिए आवश्यकता से अधिक मात्रा होती है।

अध्ययन के निष्कर्ष मिट्टी में उपलब्ध फास्फोरस की मात्रा और उर्वरकों के रूप में आवश्यक मात्रा पर नई रोशनी डालते हैं और बताते हैं कि यदि हम इसे अधिक कुशलतापूर्वक और न्यायसंगत तरीके से उपयोग करते हैं तो फास्फोरस भंडार 531 साल तक रह सकता है, जो कि वर्तमान प्रथाओं के साथ बने रहने की तुलना में 77 साल अधिक है।

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा है कि फास्फोरस एक आवश्यक उर्वरक है जो दुनिया भर के खेतों में फसल उत्पादन को बढ़ाता है। यह कृषि की 'ऊर्जा' है जो हमारी खाद्य प्रणालियों को चलाती है, लेकिन हमें इसके प्रबंधन की जरूरत है।

हमें इसके उपयोग के साथ और अधिक कुशल और टिकाऊ होने के तरीकों की तलाश करने की जरूरत है। अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया भर में फास्फोरस उर्वरकों का उपयोग कैसे किया जाता है इसकी दक्षता में सुधार करने की काफी संभावनाएं हैं। अध्ययन से पता चलता है कि कीमती और उर्वरकों की कमी तथा सीमित वैश्विक फास्फोरस उर्वरक भंडार को बढ़ाए बिना वैश्विक खाद्य उत्पादन को अनुकूलित करना संभव है।

अध्ययन के मुताबिक, अगले 500 वर्षों में हमारे पास फास्फोरस की कमी होने की संभावना नहीं है, लेकिन केवल तभी जब हम अधिकतम फसल पैदावार करने और अनावश्यक उपयोग को रोकने के लिए जितना आवश्यक हो उतना उपयोग करें।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, अत्यधिक उपयोग के कारण हर साल 10,556 मीट्रिक टन फास्फोरस बर्बाद हो जाता है, जिसमें से अधिकांश यूरोप में गेहूं और घास के मैदान और एशिया में मक्का और चावल पर हावी है।

अध्ययन में कहा गया है कि कई किसान फास्फोरस को मिट्टी में जमा करने के लिए इसे जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, मिट्टी में फास्फोरस का केवल एक अंश ही पौधों द्वारा उपयोग किया जा सकता है।

अधिकतम पैदावार के लिए आवश्यक स्तरों को बनाए रखने के लिए प्रयोगों को समायोजित करने से फास्फोरस की बर्बादी पर लगाम लग जाती है। यदि मिट्टी में अत्यधिक स्तर हैं जिसका उपयोग पौधे नहीं कर सकते हैं, तो फास्फोरस संभावित रूप से पानी में घुल सकता है, यूट्रोफिकेशन की तरह जिससे पानी की गुणवत्ता की समस्याएं पैदा होने का खतरा होता है। 

लेकिन यह सब कटौती के बारे में नहीं है। दुनिया भर में कृषि भूमि के आंकड़ों का उपयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने इस बात की भी गणना की है कि दुनिया भर में लगभग तीन-चौथाई खेती की मिट्टी में फास्फोरस की कमी है। भारत जैसे एशियाई देशों में फास्फोरस की कमी सबसे गंभीर है। नतीजतन, शोधकर्ताओं ने गणना की है कि विश्व स्तर पर फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए मिट्टी में इसकी कमी को पूरा करने के लिए लगभग 57,000 मीट्रिक टन फास्फोरस के उपयोग की जरूरत है।

शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि मिट्टी में फास्फोरस की जरूरी मात्रा को बनाए रखने के लिए हर साल 17,500 मीट्रिक टन फास्फोरस की आवश्यकता होती है। इसके परिणामस्वरूप फास्फोरस की वैश्विक मांग में सालाना लगभग 3,000 मीट्रिक टन की कमी आएगी।

अध्ययन के मुताबिक, फास्फोरस का कुशलतापूर्वक उपयोग करने और आपूर्ति बढ़ाने के लिए, सरकारों को ऐसी नीति बनाने के लिए सहयोग करने की आवश्यकता है जो फास्फोरस के उपयोग को केवल वहीं बढ़ावा दे जहां जरूरत हो। इसमें फसल के जरूरी विकास के लिए फास्फोरस के वितरण को संतुलित करना और बनाए रखने वाली सब्सिडी को कम करना शामिल होगा। फास्फोरस के अत्यधिक उपयोग से जल की गुणवत्ता संबंधी समस्याएं उत्पन्न होने की की भी आशंका जताई गई है