कृषि

आपदाओं की गाज: 30 सालों में किसानों को हुआ 316.4 लाख करोड़ का नुकसान

एफएओ के अनुसार इन चरम घटनाओं के चलते सालाना 6.9 करोड़ टन अनाज, चार करोड़ टन फल एवं सब्जियां, और 1.6 करोड़ टन मांस, अंडे और डेयरी उत्पादों का नुकसान हो रहा है

Lalit Maurya

पिछले तीन दशकों में किसानों को आपदाओं के चलते करीब 316.4 लाख करोड़ रुपए (380,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान उठाना पड़ा है। मतलब की इन आपदाओं के कारण किसानों को हर साल फसलों और मवेशियों के रूप में औसतन 10.24 लाख करोड़ रुपए (12,300 करोड़ डॉलर) की चपत लग रही है। जो कृषि के वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब पांच फीसदी है।

यह जानकारी खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट, 'द इम्पैक्ट ऑफ डिसास्टर्स ऑन एग्रीकल्चर एंड फूड सिक्योरिटी' में सामने आई है, जिसे 13 अक्टूबर 2023 को जारी किया गया है।    

रिपोर्ट यह भी बताती है कि प्रमुख कृषि उत्पादों का होता नुकसान भी बढ़ रहा है। पिछले 30 वर्षों के दौरान अनाज को हर वर्ष औसतन 6.9 करोड़ टन का नुकसान हो रहा है, जो 2021 में फ्रांस में अनाज की कुल पैदावार के बराबर है।

इसी तरह फल, सब्जियों और गन्ने की फसलों में सालाना करीब चार करोड़ टन का नुकसान दर्ज किया गया, जो 2021 में जापान और वियतनाम में फलों और सब्जियों के कुल उत्पादन के बराबर है। इन आपदाओं से हर वर्ष औसतन 1.6 करोड़ टन मांस, अंडे और डेयरी उत्पाद बर्बाद हो रहे हैं जो मैक्सिको और भारत में 2021 में हुए इनके कुल उत्पादन से मेल खाता है।

कमजोर देशों में किसानों को पहुंचा है सबसे ज्यादा नुकसान

यदि देशों और क्षेत्रों के आधार पर देखें तो इस नुकसान में काफी अंतर है। रिपोर्ट के अनुसार इन आपदाओं से कृषि को सबसे ज्यादा एशिया में नुकसान पहुंचा है। इसके बाद अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका की बारी आती है। हालांकि जहां एशिया में यह नुकसान कृषि मूल्य का केवल चार फीसदी था, वहीं अफ्रीका में, वो करीब आठ फीसदी दर्ज किया गया। इसी तरह यदि उप-क्षेत्रों के लिहाज से देखें तो यह अंतर और भी बड़ा था।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि तीन दशकों में आपदाओं ने तुलनात्मक रूप से निम्न और निम्न से मध्यम आय वाले देशों में कृषि को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। जो उनके कृषि के कुल सकल घरेलू उत्पाद का 15 फीसदी तक है।

हालांकि यदि कुल घाटे की बात करें तो समृद्ध और मध्यम आय वाले देशों को अधिक नुकसान हुआ। वहीं कम आय वाले देशों, उनमें भी विशेष रूप से छोटे विकासशील द्वीपीय देशों (एसआईडीएस) को भी इससे अच्छा-खासा नुकसान पहुंचा है, जो उनकी कृषि के कुल सकल घरेलू उत्पाद का करीब सात फीसदी है।

गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में आपदाओं को किसी समाज या समुदाय के कामकाज में गंभीर व्यवधान के रूप में परिभाषित किया है। इनमें प्राकृतिक आपदाओं से लेकर आक्रामक कीटों के हमले और कोविड-19 महामारी तक शामिल हैं।

जारी आंकड़ों के अनुसार 70 के दशक में इन आपदाओं की संख्या जो हर साल 100 दर्ज की गई थी, वो पिछले 20 वर्षों में 300 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर प्रति वर्ष 400 पर पहुंच गई है। देखा जाए तो इन आपदाओं की केवल संख्या ही नहीं आवृत्ति, तीव्रता और जटिलता भी बढ़ रही है। वहीं अनुमान है कि भविष्य में हालात और बदतर हो सकते हैं, क्योंकि जलवायु संबंधी आपदाएं समाज और पर्यावरण में पहले से मौजूद समस्याओं को और बदतर बना देती हैं।

यह अपनी तरह की पहली बेहद महत्वपूर्ण रिपोर्ट है, जिसमें एफएओ ने फसलों और पशुधन से जुड़े कृषि उत्पादन पर आपदाओं के प्रभाव का आंकलन किया है। हालांकि रिपोर्ट ने यह भी माना है कि यदि हमारे पास मछली पालन, जलीय कृषि और वानिकी में हुए नुकसान के पर्याप्त डेटा होता तो नुकसान के यह आंकड़े कहीं ज्यादा होते।

रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि, जब खतरे प्रकट होते हैं, तो वे कई प्रणालियों और क्षेत्रों को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं। इन समस्याओं के पीछे की वजह जलवायु परिवर्तन, गरीबी, असमानता, जनसंख्या वृद्धि, महामारी से जुड़ी आपात स्थिति, भूमि का गलत तरीके से होता उपयोग, युद्ध और पर्यावरण को होता नुकसान जैसे कारक होते हैं।

किसी आपदा में कितना नुकसान होता है यह इस बात से तय होता है कि खतरा कितना बड़ा और कितनी तेजी से फैलता है। साथ ही स्थिति कितनी कमजोर थी और उनके रास्ते में कितने लोग या संपत्ति आती है उसपर भी निर्भर करता है। कभी-कभी, यह चरम आपदाएं ग्रामीणों को अपना घर छोड़कर कहीं और जाने के लिए मजबूर कर देती हैं। उदाहरण के लिए जब पाकिस्तान के सिंध में मानसून के दौरान भारी बारिश के बाद बाढ़ आई थी, तो उसने लोगों को अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था, जिससे कृषि और खाद्य सुरक्षा पर भारी असर पड़ा था।

आपदा की तैयारी पर खर्च हर रुपए से किसानों को होगा 600 फीसदी का फायदा

ऐसे में आपदाएं कृषि से जुड़े सभी क्षेत्रों को कैसे प्रभावित कर रही हैं, रिपोर्ट इस बारे में आंकड़ों और जानकारी को तेजी से बढ़ाने के महत्व पर प्रकाश डालती हैं। देखा जाए तो यह आंकड़े ऐसे तंत्र के निर्माण के लिए आवश्यक है, जो आंकड़ों पर आधारित प्रभावी निर्णय लेने में मददगार साबित हो सकता है।

रिपोर्ट की प्रस्तावना में एफएओ के महानिदेशक क्यू डोंगयु ने लिखा है कि, "कृषि आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील है, क्योंकि वो प्रकृति और जलवायु पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। बार-बार आने वाली आपदाएं खाद्य सुरक्षा और कृषि प्रणालियों की स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकती हैं।" उनके मुताबिक रिपोर्ट में एफएओ की विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए, इन जोखिमों को संबोधित करने और कृषि प्रथाओं और नीतियों में आपदा जोखिम प्रबंधन को शामिल करने के तरीके सुझाए गए हैं।

छोटे किसान जो अपनी फसलों के लिए बारिश पर निर्भर रहते हैं, वो आपदा आने पर मुश्किल में पड़ जाते हैं। देखा जाए तो कृषि खाद्य प्रणालियों की सबसे कमजोर कड़ी हैं। जो इन आपदाओं का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतते हैं। ऐसे में किसानों को सिखाना की वो अपने खेतों को आपदाओं से कैसे बचा सकते हैं। उनकी फसलों को बचाने में मदद कर सकता है। साथ ही यह उन्हें कहीं ज्यादा सशक्त बनाएगा। इन नए तरीकों का उपयोग, पुराने तरीकों की तुलना में 2.2 गुना ज्यादा फायदा पहुंचा सकता है।

जब हमें पता हो कि कुछ बुरा हो सकता है तो समय रहते पहले से की गई कार्रवाई वास्तव में महत्वपूर्ण होती है। यह खेतों को सशक्त बनाने में मदद करता है और समस्याओं को कम करता है।

उदाहरण के लिए कुछ देशों में, जब उन्होंने आपदाओं की तैयारी के लिए समय से पहले काम किया, तो उन्हें इसके अच्छे नतीजे भी प्राप्त हुए। रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि की गई है, इन आपदाओं से बचने पर खर्च किए हर एक रुपए से किसान को सात रुपयों का फायदा हुआ है, क्योंकि इसकी वजह से वो फसल को होने वाले नुकसान को कम कर पाए थे।