कृषि

डायरी: “यह किसान आंदोलन नहीं, यह जनआंदोलन है”

देश की जनता ने सुबह जय जवान तो दोपहर जय किसानों की बादशाहत देखी

Anil Ashwani Sharma

जगह-गाजीपुर बॉर्डर से आईटीओ तक

समय – सुबह 7.10 से शाम 3.30 तक 

सुबह के सवा सात बज रहे थे और अभी केवल सूरज की लालिमा आकाश पर दिख पड़ रही थी लेकिन गाजीपुर बॉर्डर पर लगभग दस किलोमीटर लंबी सड़क पर केवल किसान और उनके ट्रैक्टरों की भारी चहल-पहल दिख पड़ रही थी। अधिकांश किसान अपने-अपने ट्रैक्टरों को तिरंगे और फूलों से सजाने-धजाने में मशगूल थे। तो दूसरी ओर जहां-तहां खाना बनते देखा जा सकता था। और जिन स्थानों पर खाना बन गया था, वहां किसान आपस में नश्ता परोस रहे थे। कुछ किसान सभी को तिरंगा देने में जुटे हुए थे। यह नजारा था 26 जनवरी, 2021 का, यहां से हजारों-लाखों की संख्या में किसान दिल्ली की ओर ट्रैक्टर रेली की तैयारी में जुटे हुए थे। हम अपने साथी विनीत के साथ लगभग चार किलोमीटर चलने के बाद हम उस स्थान पर पहुंचे जहां से रैली की शुरूआत होनी थी।

सभी ट्रैक्टर एक के पीछे एक लगाए जा रहे थे। साढ़े आठ बज रहे थे और चारों ओर देशभक्ति के गानों के बीच स्थानीय गीत भी जोर-शोर से बज रहे थे। रह-रह कर “भारत माता की जय” और “किसान एकता जिंदाबाद” के नारे भी लगातार हवा में गूंज रहे थे। जैसे-जैसे रैली शुरू होने का समय नजदीक आते जा रहा था, उतना ही आगे के खड़े ट्रैक्टरों पर बैठे किसानों के नारों की गर्जना और बढ़ते जा रही थी। हजारों की संख्या में बच्चे, बूढ़े, महिलाएं और जवान इस रैली की तैयारी में जुटे हुए थे, लेकिन मजाल कि आपको किसी प्रकार की धक्का-मुक्की से दोचार होना पड़े। सभी शालीनता से और बराबर एक-दूसरे की मदद के रूप में साथ दे रहे थे।

बुलंदशहर से पिछले 24 दिन से डटे और अब अपने  ट्रैक्टर पर बैठ रेली में जाने के लिए आतुर शाहरूख ने डाउन टू अर्थ से कहा कि हम हर हाल में सफल होंगे, सरकार चाहे जितनी कोशिश कर ले हमें बहकाने की, हम किसी के बहकावे में न आने वाले। वह कहते हैं कि मुझे मालूम है कि इस रैली में भी कई ऐसे असमाजिक तत्वों को सरकार ने अपनी ओर घुसेड़ दिया होगा ताकि वह इस रैली में गड़बड़ी कर सकें लेकिन हम इस मामले में पूरी तरह से सतर्कता बरत रहे हैं कि कोई भी संदिग्ध नजर आए तो हम उसे यहां से बाहर कर देंगे। जब उनसे पूछा गया है कि क्या इस रेली से लाभ होगा किसानों को तो उन्होंने कहा कि लाभ यही होगा कि सरकार पर हमारा दबाव और बढ़ेगा और उसने जो खेती के तीन काले कानून संसद में पास किए हैं उसे शीघ्र ही वापस लेगी।

यही नहीं इस रैली से हमारी अटूट एकता भी प्रदर्शित होगी। इस गहमा-गहमी के बीच सड़क किनारे ही 65 वर्षीय गायत्री देवी अपनी दो साथियों के साथ  बैठी अपने ट्रैक्टर का इंतजार कर रहीं थीं। पूछने पर गायत्री देवी ने बताया कि हम मेरठ से यहां धरना स्थल पर पिछले डेढ़ माह से आए हुए हैं और जब तक नहीं जाएंगे तब तक सरकार हमारी बात नहीं मान लेती। आप जानती हैं कि कौन से खेती के बिल के बारे में आप लोग आंदोलन कर रहे हैं? इस पर वह तपाक से और गुस्से में कहती हैं कि अरे भाई सरकार हमारी हाड़तोड़ मेहनत को कमाई को देश के पूंजीपतियों के हवाले करने पर उतारू है। अब इस देश में विपक्षी पार्टी तो है नहीं कि वह हमारी अवाज उठाए ऐसे में अब हमें ही अपनी आवाज उठाने के लिए इतनी दूर आना पड़ा है और सरकार जिस प्रकार से जिद पर अड़ी है वह यह अच्छा काम नहीं कर रही है। वह कहती हैं कि मालूम नहीं कि सरकार में बैठे नुमाइंदों को पिछले ढाई माह से धरने पर बैठे किसानों की आवाज क्यों नहीं सुनाई पड़ रही हैं। गाजीपुर मोड़ पर ही खड़े मुजफ्फरनगर से आए एम मोहम्मद ने कहा कि हमें तो पूरा यकीन है कि सरकार हमारी बात मान लेगी क्यों कि उसके पास इसके अलावा चारा भी नहीं है। वह यह बात जरूर कहते हैं कि आप लोग इसे किसान आंदोलन क्यों कहते हैं? यह तो जनआंदोलन है। आप देख रहे हैं कि कितना बड़ा लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा है इस रैली में भाग लेने के लिए।

स्थानीय किसान नेताओं का कहना था कि रैली 11 बजे के बाद ही शुरू होगी। लेकिन यह क्या साढ़े दस बजे ही लगभग 40 से 50 ट्रैक्टर चल पड़े। ऐसे में उनका देखी-देखा सभी ट्रैक्टर चल पड़े। फिर तो हजारों ट्रैक्टर एक-दूसरे के पीछे-पीछे हो लिए और उन पर बैठे किसान नारे लगाते हुए चल पड़े। यह रैली जब आनंद विकार मोड़ पर पहुंची तो वहां पहले से ही आए किसानों के ट्रैक्टर आनंद विहार(पूर्व निर्धारित मार्ग) की ओर न मुड़कर सीधे अक्षरधाम की ओर चलते गए। उनका देखीदेखी उनके पीछे आ रही रैली भी उनका अनुसरण् करते हुए आगे बढ़ते गए।

किसानों का का काफिला विनोद नगर मेट्रो स्टेशन पर जब रुका जब सड़क के दोनों किनारों पर उन पर फूल बरसाए जाने लगे। यहां फूल बरसाने का आलम यह  था कि कम से कम आधे किलोमीटर दूरी तक सड़कें फूलों से अटी पड़ीं थीं। अब इस रैली को अक्षरधाम पर पुलिस ने रोकने की कोशिश् की लेकिन कुछ ट्रैक्टर अक्षरधाम फ्लाईओवर पर चढ़ गए और फिर वही हुआ जैसे पिछले स्थानों पर होता आया कि उनका देखा देखी पीछे से आ रहे ट्रैक्टर भी आ गए। निजामुद्दीन ब्रिज के आगे पुलिस ने एक बार फिर से इस रैली को रोकने की भरसक की कोशिश की। पुलिस इन्हें कालेखां बस अड्डे की ओर तो नहीं मोड़ पाई लेकिन बड़ी संख्या में रैली में शामिल ट्रैक्टर रिंग रोड आईटीओ की ओर मुड़ गए।

ऐसे में पुलिस ने प्रगति मैदान के पास एक बार फिर से भारी भरकम पुलिस बल के साथ किसानों की इस रैली को रोकने में सफल हो गई। हालांकि इसके चलते कई बार किसानों और पुलिस के बीच जमकर बहस हुई। किसानों की मांग थी कि वे इंडिया गेट का चक्कर लगाकर वापस आ जाएंगे लेकिन पुलिस इस पर राजी न हुई। इसके बाद किसानों ने कहा कि हमें राजघाट तक जाने दिया जाए, हम वहां से वापस आ जाएंगे लेकिन पुलिस इस पर भी न मानी और आखिर में किसानों ने कहा कि हमें लाल किले तक जाने दिया जाए। बस इसी गहमागहमी में जब रैली पुलिस बल की ओर बढ़ने लगी तो पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया और यह झड़प लगभग आधे पौने घंटे तक चली इसके बाद रैली में शामिल ट्रैक्टर धीरे-धीरे यू टर्न लेकर वापस निजामुद्दीन ब्रिज होते हुए हाइवे नंबर 24 से वापसी करने लगे।

इस बीच इस रैली में शामिल कई किसान नेता रैली को मझधार में ही छोड़कर वापस धरने स्थल की ओर चल पड़े थे। अब यह बात साबित होते दिख पड़ रही थी यह किसान आंदोलन नहीं हैं बल्कि यह जनआंदोलन है। क्योंकि किसानों के ट्रैक्टर जब रैली से लौट रहे  थे तो बड़ी संख्या में आमजन सड़कों के किनारे खड़े हो कर उन्हें पानी की बोतलें दे रहे थे। इनमें से अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों के अलावा छोटीमोटी दुकान करने वाले दुकानदार तक शामिल थे।

सालों साल से देश कि शान कहे जाने वाली 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के मौके पर राजपथ की परेड देखने गाजीपुर, टिकरी, सिंघु बॉर्डर और फरीदाबाद आदि से लाखों की संख्या में आमजनों का हुजूम उमड़ता हुआ दिखाई पड़ता था लेकिन इस बार यह नजारा नदारद था। हुजूम तो था लेकिन इस बार यह हुजूम देशभर से आए किसानों का था और ये ट्रैक्टर रैली कर दिल्ली आकर अपनी बात सरकार से कहने की कोशिश की। और अपनी बात कहें या अपना संदेश दे सकने में वह काफी हद तक सफल भी रहे हैं।

सालों बाद मीडिया कर्मी 26 जनवरी की सुबह उठने पर इस पशोपेश में थे कि जाना कहां है?  क्योंकि आमतार पर गणतंत्र दिवस की परेड कवर करने राजपथ की ओर ही जाते थे लेकिन यह संभवत: ऐसा पहला मौका होगा जब मीडिया कर्मी सुबह उठते ही दिल्ली की सीमाओं की ओर दौड़ पड़े। क्योंकि इन सीमाओं पर डटे किसानों की ट्रैक्टर परेड जो होने वाली थी। रैली में शामिल किसान हरिवंश सिंह ने कहा कि इस बार की 26 जनवरी को देश में पहली बार “जय जवान -जय किसान” का नारा फलीभूत हुआ है। वह कहते हैं कि यह नारा आज से लगभग 65 साल पहले हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री ने दिया था और आज देश की जनता ने सुबह जय जवानों की बादशाहत देखी और दोपहर होते होते उसने जय किसानों की बादशाहत देखी।