कृषि

कपास पर शाप: कैसे बीटी कपास के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई गुलाबी सुंडी

किसानों का कहना है कि अब यह कीट अमेरिकन सुंडी से भी बड़ी समस्या बन गया है

Himanshu Nitnaware, Lalit Maurya

गुलाबी सुंडी यानी पिंक बॉलवर्म के हमलों के चलते 2000 के दशक से भारतीय किसानों को अपनी कपास की फसल से लगातार नुकसान झेलना पड़ रहा है। वैज्ञानिकों को पता चला है कि इस कीट ने आनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी कपास के प्रति भी प्रतिरोध विकसित कर लिया है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) में कीट विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख और कीट विज्ञानी गोविंद गुजर का इस बारे में कहना है कि 1996 में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में सफलता के बाद बीटी कपास को 2002 में भारत में पेश किया गया था।

इससे पहले, अमेरिकी बॉलवर्म (अमेरिकन सुंडी) कपास के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका था, क्योंकि इसने कीटनाशक सिंथेटिक पाइरेथ्रोइड्स, ऑर्गेनोफॉस्फोरस और कार्बामेट्स के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लिया था। इसकी वजह से 1985 से 2002 के बीच भारत के सभी 11 कपास उत्पादक राज्यों में किसानों को भारी नुकसान भी झेलना पड़ा था।

डाउन टू अर्थ से बात करते हुए गुजर ने बताया, “बीटी कपास, या बोल्गार्ड-I को बॉलवर्म की सभी तीनों प्रजातियों (अमेरिकी, चित्तीदार और गुलाबी सुंडियों) से बचाने के लिए पेश किया गया था। इसके लिए इसमें क्राय1एसी टॉक्सिन को भी शामिल किया गया है।“

उन्होंने आगे बताया कि, 2005 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने यह देखना शुरू किया कि क्या यह कीट बीटी कपास के प्रति प्रतिरोध विकसित कर रहे हैं। उसके एक साल बाद, अमेरिकी बॉलवॉर्म के खिलाफ प्रतिरोध को बढ़ाने के लिए बीटी कपास के आनुवंशिक कोड को क्राय2एबी जीन के साथ एनकोड किया गया था।

विशेषज्ञ का कहना है कि, "हालांकि 2008 में हमारी टीम को पहली बार गुजरात के अमरेली में गुलाबी सुंडी के असामान्य व्यवहार का पता चला। यह कीट बीटी कपास को खाने के बाद भी जीवित था, मतलब कि इसने बीटी कपास के प्रति भी प्रतिरोध विकसित कर लिया था।" उनका आगे कहना है कि, "2009-10 में हमारे वैज्ञानिक अध्ययन ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि गुलाबी सुंडी ने गुजरात के चार जिलों में क्राय1एसी जीन के खिलाफ भी प्रतिरोध विकसित कर लिया था।"

बीटी कपास के प्रति भी प्रतिरोध विकसित कर चुकी है गुलाबी सुंडी

सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च (सीआईसीआर), नागपुर के निदेशक वाईजी प्रसाद का कहना है कि 2014 में, वैज्ञानिकों ने पाया कि गुलाबी सुंडी ने क्राय2एबी जीन के प्रति भी प्रतिरोध विकसित कर लिया था।

प्रसाद के अनुसार, एक साल बाद, गुजरात ने पहली बार गुलाबी सुंडी के प्रकोप की सूचना दी, जबकि पंजाब से व्हाइटफ्लाई के प्रकोप के खबरें समाने आई थी। हालांकि उनके मुताबिक "उस समय तक गुलाबी सुंडी उत्तरी क्षेत्रों तक नहीं पहुंची थी।"

उन्होंने आगे बताया कि 2017-18 में, महाराष्ट्र और दक्षिणी राज्यों में बड़े पैमाने पर पिंक बॉलवर्म के संक्रमण की सूचना मिली थी। वहीं 2018-19 में, सिरसा के केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय स्टेशन से कीट के बोलार्ड-II के प्रति प्रतिरोधी होने की सूचना मिली थी। उसके बाद  2021-22 में, पंजाब और हरियाणा में गुलाबी सुंडी का प्रकोप दर्ज किया गया। " वहीं 2023 तक बीटी कपास के प्रति प्रतिरोधी यह गुलाबी सुंडी उत्तरी राजस्थान के कुछ जिलों सहित उत्तरी क्षेत्रों में भी फैल गई।"

पंजाब में मलोट के छापियांवाली गांव के किसान शीशपाल के मुताबिक उन्हें 2021 से गुलाबी सुंडी की समस्या के बारे में पता है। उनका कहना है कि, "मुझे भटिंडा के मनसा में इसके फैलने के बारे जानकारी मिली थी। यह बीटी कपास के प्रति भी प्रतिरोधी हो चुका है, लेकिन वास्तव में यह अमेरिकन सुंडी से भी ज्यादा बदतर है।"

उन्होंने आगे बताया कि, "अमेरिकन सुंडी के विपरीत, जो फसलों को बाहर से खाती है, गुलाबी सुंडी फसलों पर बीज के अंदर से हमला करती है।“ उनके मुताबिक शुरुआत में इसका पता लगाना मुश्किल है और हमें नुकसान तभी दिखता है जब कटाई का समय होता है। चूंकि यह बीज को अंदर से खाता है, इसलिए कोई भी कीटनाशक इन्हें नियंत्रित करने में मदद नहीं करता।

शीशपाल का कहना है कि यदि अमेरिकन सुंडी को नियंत्रित कर लें तो पैदावार के 40 फीसदी हिस्से को बचाया जा सकता है, जो लागत को कवर कर लेता है। लेकिन चूंकि गुलाबी सुंडी पूरी फसल को नुकसान पहुंचाती है, ऐसे में इसकी वजह से फसल की लागत से भी कहीं ज्यादा का नुकसान होता है।"

ऐसा इसलिए है क्योंकि जिन पौधों को इन कीटों ने खाया है उन्हें अगली बुवाई से पहले खेतों से पूरी तरह साफ करना पड़ता है। इसकी वजह से जमीन को तैयार करने में लगने वाले लागत आठ से दस हजार रुपए प्रति एकड़ बढ़ जाती है।

उनके अनुसार यह 2002 में बीटी कपास के आने के बाद से सबसे बड़ा नुकसान है। ऐसा लगता है कि हम 20 साल पीछे चले गए हैं, जब किसान अमेरिकी सुंडी से पैदावार को हुए नुकसान से जूझ रहे थे।