कृषि

कपास पर शाप: गुलाबी सुंडी के कारण आत्महत्या के कगार पर पहुंचे किसान, बीटी कपास को भी भारी नुकसान

भाग 1: डीटीई ग्राउंड रिपोर्ट से पता चला है कि उत्तर भारत में कीटों के चलते बार-बार होने वाले नुकसान से किसानों की परेशानियां बढ़ रही है

Himanshu Nitnaware, Lalit Maurya

यह पंजाब, हरियाणा और राजस्थान सहित उत्तर भारत में बीटी कपास पर गुलाबी सुंडी (पिंक बॉलवर्म) के हमलों और उसके प्रभावों को उजागर करने वाली श्रृंखला का पहला भाग है।

पंजाब, हरियाणा और राजस्थान सहित उत्तर भारतीय राज्यों में कपास की फसलें पिंक बॉलवर्म (पेक्टिनोफोरा गॉसीपिएला) के गंभीर हमले का सामना कर रही हैं। यहां तक कि आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट-प्रतिरोधी किस्म जिसे बीटी कॉटन (बोल्गार्ड- II) भी कहा जाता है, इन कीटों से सुरक्षित नहीं है।

हालांकि इस बीटी कॉटन को इन कीटों से बचाव के लिए ही डिजाइन किया गया था। दुर्भाग्य से, इन कीटों का आक्रमण सिर्फ फसलों को ही भारी नुकसान नहीं पहुंचा रहा, यह किसानों को भी आत्महत्या के कगार पर धकेल रहा है। गौरतलब है कि पिंक बॉलवर्म को गुलाबी सुड़ी या गुलाबी इल्ली कीट के नाम से भी जाना जाता है।

ऐसा ही कुछ 25 सितंबर, 2023 को, राजस्थान में श्री गंगानगर जिले के 23 एमएल गांव सामने आया। 40 वर्षीय शमशेर सिंह ने दोपहर 3.30 बजे अपना दोपहर का सामान्य भोजन सब्जी रोटी खाई, इसके बाद एक झपकी ली और अपनी नियमित चाय ली। उनके परिवार को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि यह आखिरी बार है जब वे उन्हें देख रहे हैं।

उनकी पत्नी, जसविंदर कौर और उनके तीन बच्चे, 17 वर्षीय बेटा जसविंदर और 11 और 14 साल की दो बेटियां, जिनका नाम जसप्रीत और पुष्पा कौर है, ने उनके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं देखा। वो शाम करीब साढ़े चार बजे अपनी मोटरसाइकिल से खेत के लिए निकले और ट्यूबवेल की कोठरी में जाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। 

किशोर जसविंदर की आखिरी याद में उनके पिता का निर्जीव शरीर है जो पंपसेट की रस्सी के सहारे लटक रहा था। उनके बेटे ने बताया कि, "शुरुआत में, हमने सोचा कि वह अपने किसी दोस्त से मिलने या खेत पर गए हैं। पर वो हमेशा की तरह शाम 5.30 से छह बजे तक घर नहीं पहुंचे, तो उन्हें चिंता होने लगी।"

जसविंदर ने अपने पिता को फोन करना शुरू किया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। जसविंदर ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया कि, "मैंने तुरंत अपने पड़ोसियों से मोटरसाइकिल मांगी और खेत की ओर भागा जहां मुझे मेरे पिता मृत अवस्था में मिले।"

बता दें कि शमशेर सिंह का परिवार कर्ज में डूबा था, जिसके आर्थिक दबाव के कारण उन्हें अपनी जान देनी पड़ी। इलाके के लोगों के मुताबिक, उनकी मौत करीब एक दशक से अधिक समय में जिले में किसान आत्महत्या की पहली घटना है। उनके बड़े भाई बलविंदर सिंह ने बताया कि शमशेर की समस्याएं तब शुरू हुई जब 15 सितंबर, 2023 को भारी बारिश के कारण उनके 16.24 एकड़ कपास के खेत बाढ़ में डूब गए। इससे उनकी जिंदगी में उथल-पुथल मच गई। आधी खेती पट्टे की जमीन पर थी, जबकि बाकी उनकी अपनी थी।

शमशेर सिंह का परिवार: (बाएं से) उनकी पत्नी जसविंदर कौर, 17 वर्षीय बेटा जसविंदर सिंह और उनका भाई बलविंदर सिंह। फोटो: विकास चौधरी/सीएसई

बलविंदर ने याद करते हुए कहा कि, “बारिश के बाद वो चिंतित लग रहा था और वो और मैं नुकसान का जायजा लेने के लिए उसके साथ खेत में गए।" लेकिन इतना ही कमी नहीं था, जब 24 सितंबर को शमशेर अपने खेतों पर वापस गए, तो उन्होंने पाया कि, बारिश से हुए नुकसान के अलावा, पूरी फसल पिंक बॉलवर्म (पीबीडब्ल्यू) से संक्रमित थी। उनके भाई ने बताया, "उसे अहसास हुआ कि उसकी  पूरी फसल बर्बाद हो गई है, और जो नुकसान हुआ है वो उसके कर्ज में इजाफा करेगा जो पिछले तीन वर्षों से बढ़ता जा रहा था।"

पिछले वर्षों में, शमशेर ने हमेशा की तरह कपास लगाया था, लेकिन पिंक बॉलवर्म के संक्रमण के चलते उन्हें 2021 में नुकसान उठाना पड़ा था। 2022 में, कपास के खेतों पर सफेद मक्खी के हमलों के चलते एक बार फिर फसल खराब हो गई जिससे एक बार फिर से नुकसान उठाना पड़ा। दुर्भाग्य से, 2023 में एक बार फिर पिंक बॉलवर्म के कारण उनकी फसल एक बार फिर बर्बाद हो गई। बता दें कि सफेद मक्खी की कई प्रजातियां कपास पर हमला करती हैं। जो आम तौर पर पौधे की पत्तियों के निचले हिस्से को खा जाती हैं।

शमशेर की पत्नी जसविंदर कौर का कहना है कि, तीन साल में उन पर करीब आठ लाख रुपए का कर्ज हो गया था। “हम पर किराना दुकानदार, साहूकार, बैंक और कई अन्य लोगों का पैसा बकाया है। मेरी सास को सांस की तकलीफ है, जिसपर अतिरिक्त खर्च करना जरूरी हो गया। रबी सीजन में हुए सरसों और गेहूं पर हम , हम बमुश्किल गुजारा कर रहे हैं।"

कौर के अनुसार, सिंह ने कभी भी अपनी चिंताओं या कर्ज के बारे में उनसे बात नहीं की। वह खुश रहते और हमेशा की तरह परिवार के साथ बातचीत करते। उन्होंने बताया कि 25 सितंबर को भी उन्होंने कोई अजीब व्यवहार नहीं किया था। हालांकि शमशेर सिंह के भाई बलविंदर ने बताया कि 15 सितंबर के बाद से, शमशेर अक्सर अपने खेत को हुए नुकसान और आर्थिक दिक्कतों के बारे में चर्चा करते थे। यहां तक कि उन्होंने आस-पड़ोस के अपने दोस्तों और सामाजिक समारोहों के दौरान भी अपनी दिक्कतों को साझा किया था।" हम सभी ने उसे सलाह देने की कोशिश की,'' उन्होंने कहा कि, ''मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह इस हद तक जाएगा।''

ग्रामीण किसान मजदूर समिति के जिला अध्यक्ष हरजिंदर मान का कहना है कि, "चिंता की बात यह है कि इलाके के कई अन्य किसान भी इसी तरह के संकट में हैं।" उन्होंने बताया कि, "महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के विपरीत, जहां किसानों की आत्महत्याएं आम हैं, इस क्षेत्र में कर्ज के कारण शायद ही कोई आत्महत्या होती है। इस क्षेत्र में ऐसे मामले कम ही देखने को मिलते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां के किसान परंपरागत रूप से घाटे का सामना करने और कुछ वर्षों के भीतर उससे उबरने में सक्षम हैं।"

लेकिन बार-बार होने वाले नुकसान ने पूरी कहानी बदल दी है और किसान ऐसे आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं जिनका अनुभव उन्होंने पहले कभी नहीं किया था।

मान ने समझाया, "एक दशक से भी अधिक समय में कर्ज के कारण यह संभवतः पहली किसान आत्महत्या है, लेकिन दुख की बात है कि इसके आखिरी होने की सम्भावना नहीं है। कई किसान मेरे पास पहुंचे हैं, और भारी नुकसान पर अपनी व्यथा सुनाई है। मैं उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि उनके जीवन का यह बुरा दौर अगले सीजन में दूर हो जाएगा।"

इस सीजन में, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में किसानों को उनकी फसलों में लगी गुलाबी सुड़ी की वजह से भारी नुकसान झेलना पड़ा है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च (सीआईसीआर) के निदेशक वाईजी प्रसाद के मुताबिक, हरियाणा और पंजाब में यह नुकसान करीब 65 फीसदी होने का अनुमान है, जबकि राजस्थान में स्थिति और भी ज्यादा खराब है। राजस्थान सरकार का दावा है कि नुकसान 90 फीसदी तक हो सकता है और आठ अक्टूबर 2023 को राहत कोष के रूप में 1,125 करोड़ रुपये देने की घोषणा की गई है।

बर्बाद फसलें, 90 फीसदी तक हुआ नुकसान 

जिन किसानों से डीटीई ने बात की और उनके खेतों का दौरा भी किया, उन्होंने बताया कि कम से कम 90 फीसदी नुकसान हुआ है। हालात यह हैं कि कई किसानों ने तो खराब पैदावार के कारण कपास की पहली कटाई भी नहीं की और कहा कि मजदूरों ने खेतों में काम करने से इनकार कर दिया है। ऐसे में गंभीर संक्रमण के चलते किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है, उन पर कर्ज का बोझ कहीं ज्यादा बढ़ गया है। नतीजन वे आत्महत्या की कगार तक पहुंच गए हैं।

पंजाब में मौजागढ़ के एक अन्य किसान अश्विनी कुमार का कहना है कि वो बहुत दुखी और निराश महसूस कर रहे हैं। उन्होंने बताया, "मैंने स्थानीय पंचायत से 50,000 रुपए प्रति एकड़ पर आठ एकड़ जमीन पट्टे पर ली थी। इस पूरी जमीन पर मैंने कपास बोया था लेकिन अब सब खत्म हो गया।"

कुमार ने बताया कि, "यह लगातार दूसरा साल है जब उन्हें भारी नुकसान झेलना पड़ा है। उनके पास अब दूसरी फसल बोने के लिए भी पैसा नहीं बचा है। उन्हें उपज बेचकर 80,000 रुपए कमाने की उम्मीद थी, लेकिन अब उन पर छह लाख रुपए का कर्ज हो गया है।“

गगनदीप सिद्धू, जो राजस्थान के हनुमानगढ़ में ग्रामीण किसान मजदूर समिति (जीकेएस) के ब्लॉक अध्यक्ष हैं, ने इस बात पर जोर दिया कि क्षेत्र के किसान 2017 से लगातार गुलाबी बॉलवर्म (पीबीडब्ल्यू) और सफेद मक्खी के संक्रमण से होने वाले नुकसान से जूझ रहे हैं।

सिद्धू का कहना है कि, "लगातार होते नुकसान ने किसानों को आर्थिक और मानसिक रूप से तोड़ दिया है। वे छोटे रबी सीजन में हुई सरसों और गेहूं की फसल से मुश्किल से गुजारा कर रहे हैं। लेकिन अब किसान कर्ज में डूबने लगे हैं। अगर मौसम साथ दे तो भी उन्हें इससे उबरने में कम से कम चार से छह बरस लगेंगे।''