कृषि

कोरोनावायरस का साइड इफेक्ट: किसान के लिए कितना कष्टदायक होगा लॉकडाउन

DTE Staff

अनिल कुमार 

पहले मौसम की मार और अब कोरोना के प्रकोप ने देशभर में खेती-किसानी को संकट में डाल दिया है। 21 दिनों तक देशभर में लॉकडाउन जीवन बचाने के लिए बेहद आवश्यक है, लेकिन ऐसा होने से सबसे अधिक मार किसान पर भी पड़ने वाली है। गन्ना किसानों को पेराई सीजन का अंतिम दौर होने की वजह से गन्ना खेतों में खड़ा रहने की चिंता सताने लगी है। वहीं, गेहूं खरीद की तैयारियों में जुटी सरकार अब कोरोना की रोकथाम में जुट गई हैं। एक अप्रैल से गेहूं खरीद शुरू होनी थी, लेकिन अब तक यह तय नहीं किया गया है कि यह खरीद कैसे होगी।

इस बार फसल की शुरुआत में देशभर के किसानों को बेहतर मानसून की वजह से अच्छी फसल की आस बंधी थी। इससे किसान ही नहीं, केंद्र और राज्य सरकारें भी गदगद थीं। रिकॉर्ड तोड़ चीनी के उत्पादन के आंकड़ों से मिल मालिक, किसान और सरकार की बांछे खिली हुई थीं। गेहूं व अन्य दलहन की फसलों के बंपर उत्पादन से खुद को किसान मालामाल समझने लगे थे, लेकिन मौसम की बेरुखी और अब कोरोना ने किसानों की आशाओं पर कुठाराघात कर दिया है। सरकार की उम्मीदों पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है।

एक सप्ताह बाद से बाजार में गेहूं, सरसों, मटर, मूंग, मसूर, चना और प्याज आदि की आवक शुरू होनी है। इससे पहले उनके सामने गेहूं की कटाई की समस्‍या आने वाली है। अधिकांश गेहूं कटाई मशीनें पंजाब और हरियाणा से आती हैं, लॉकडाउन में उनका न आना किसानों के सामने नई मुसीबत बनकर खड़ा है।

किसान के पास दो ही विकल्प हैं या तो उसका भंडारण करे या बिचौलियों के हाथों औने-पौने दाम पर बेच दे। ओलावृष्टि वाले इलाकों में उसकी फसल पहले से ही 30 से 40 फीसदी तक चौपट हो चुकी है। इसका गणित इस बात से समझा जा सकता है कि इस बार सरसों का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) सरकार ने 4,425 रुपये निर्धारित किया है लेकिन हकीकत ये है कि राजस्थान और अलवर की मंडियों में उसके दाम गिरकर 3,600 रुपये प्रति कुंतल आ चुके हैं। यही हाल चने का भी हो रहा है। महाराष्ट्र और लातूर की मंडी में चने के दाम गिरकर 3,650 रुपये प्रति कुंतल आ गए हैं जबकि चने का एमएसपी 4,875 रुपये प्रति कुंतल निर्धारित किया गया है।

यहां कारण साफ है कि कोरोना की वजह से सभी देशों में बाकी वस्तुओं के साथ खाद्यान्न तक का आयात-निर्यात ठप सा हो गया है। फिलहाल 21 दिन तक देश में बंदी है, यह स्थिति कब तक चलेगी इसकी पुष्ट जानकारी किसी के पास नहीं है। दलहन और तिलहन के रेट एमएसपी से कम होने की वजह से किसानों को ही इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा। इसी के साथ चावल, कपास, मांस, रबर व अन्य कृषि जिंसों के निर्यात और कीमतों पर दबाव बढ़ा है। चाय की पत्ती ईरान और चीन न जा पाने की वजह से इसके 30 फीसदी से अधिक दाम गिर चुके हैं।

अफवाहों के चलते चिकन, मछली और अंडे से लोगों के परहेज करने की वजह से इनकी कीमतें जमीन पर आ चुकी हैं। इसकी वजह से मुर्गी पालन और मछली पालन में लगे लाखों किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। हालात ये है कि पॉल्र्टी उत्पादों की मांग कम होने से इन स्थानों पर भोजन के रूप में खपत होने वाले उत्पाद जैसे मक्का और सोयाबीन के दाम भी गिर चुके हैं। मांस का निर्यात रुकने की वजह से यहां के किसानों को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है।

दुग्ध उत्पादक किसानों के लिए भी लॉकडाउन बुरी खबर लेकर आया है। दूध वितरण में बाधा आने की वजह से इसकी कीमत भी गिरने की आशंका से दूध उत्पादक सहमे हैं। एक दूसरे राज्य या जिले में दूध ले जाने वाले दूधियों पर पाबंदी की वजह से उन्हें दूध का कोई मूल्य नहीं मिलने से घाटा ही उठाना पड़ेगा। ऐसे में चारे की कीमतें भी बढ़ने से उन्हें दोहरी मार झेलने को तैयार रहना होगा। सबसे ज्यादा संकट शहरों की डेयरियों में चारे का होने की संभावना है जिससे दूध उत्पादन महंगा और उसकी वितरण व्यवस्था गड़बड़ाने से उन्हें खामियाजा उठाना पड़ सकता है।

जाहिर है जब उत्पादन ठप हो जाएगा तो इससे बेरोजगारी बढ़ेगी, खेतिहर मजदूरों के सामने भी समस्या होगी। लोगों की क्रय शक्ति कम हो जाएगी। इससे कृषि उत्पादों की मांग और दाम दोनों पर जबरदस्त असर पड़ेगा। इतना जरूर होगा कि ऐसे में बिचौलियों के अधिक सामान का भंडारण करने की वजह से मुनाफाखोरी और कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा जिससे दैनिक उपयोग की कृषि आधारित वस्तुओं फल, सब्जी व अन्य खाद्य उत्पादों के दाम महंगे होना भी स्वाभाविक है।

यही वजह है कि भारतीय किसान यूनियन समेत कई किसान संगठनों ने भी किसानों को इस संकट से उबारने के लिए सभी प्रकार के बिल एवं ऋणों की वसूली पर रोक लगाने की मांग उठानी शुरू कर दी है। साथ ही छोटे किसानों एवं मछुआरों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करने की भी अपील की है। उन्होंने सब्जियों और कृषि आपूर्ति श्रृंखला को चिकित्सा आपूर्ति के समान शीर्ष प्राथमिकता देने की वकालत की है।

भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने इन सब मांगों के अलावा ग्रामीण बेरोजगारों को मॉस्क और सेनेटाइजर बनाने के लिए इनके सहायता समूह बनाने की पुरजोर वकालत की है। उनका तर्क है कि शहरों से गांव पलायन करने वाले बेरोजगारों को काम भी मिलेगा और आर्थिक मंदी से लड़ने का उन्हें एक हथियार भी मुहैया हो जाएगा।

खाद्यान्न की उपलब्धता एक बड़ी राहत

राहत की बात ये है कि राशन दुकानों के माध्यम से वितरण के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से एक साथ तीन महीने का अनाज उधार पर उठाने की छूट केंद्र की ओर से दी गई है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फिलहाल सरकार के पास 435 लाख टन खाद्यान्नों के अधिशेष भंडार हैं, जिनमें से 272.19 लाख टन चावल और 162.79 लाख टन गेहूं है। मौजूदा समय में, सरकार देश में पांच लाख राशन की दुकानों के माध्यम से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत प्रत्येक लाभार्थी को प्रति माह पांच किलोग्राम सब्सिडी वाले खाद्यान्न की आपूर्ति करती है। कोरोना संकट की घड़ी में गरीबों को अनाज उपलब्ध कराने की केंद्र व राज्य सरकारों की पहल से असर ये होगा कि अत्यधिक खाद्यान्न भंडारण की समस्या से भी निजात मिलेगी और देश में खाद्यान्न का संकट भी नहीं होगा। हालांकि अब इस खाद्यान्न के वितरण की पारदर्शी व्यवस्था ज्यादा मायने रखेगी।