कृषि

सहकारिता मंत्रालय: न स्टाफ न ऑफिस, बजट मांगा 3250 करोड़, मिला 900 करोड़

संसदीय समिति की रिपोर्ट में उजागर हुआ सहकारिता मंत्रालय का हाल

Raju Sajwan

देश में सहकारिता आंदोलन को नई दिशा देने के लिए मोदी सरकार द्वारा बनाए गए नए सहकारिता मंत्रालय में न तो अब तक पूरा स्टाफ है और न ही स्टाफ के बैठने की जगह। बल्कि सहकारिता मंत्रालय ने बजट 2022-23 के लिए 3,250 करोड़ रुपए की मांग की थी, लेकिन आम बजट में केवल 900 करोड़ रुपए की घोषणा की गई।

सहकारिता मंत्रालय की ताजा स्थिति की जानकारी कृषि, पशुपालन एवं खाद्य प्रसंस्करण पर गठित संसदीय समिति की 42वीं रिपोर्ट में सामने आई है। यह रिपोर्ट24 मार्च 2022 को संसद में रखी गई। यह रिपोर्ट सहकारिता मंत्रालय के डिमांड फॉर ग्रांट (2022-23) पर आधारित थी।

सहकारिता के क्षेत्र में संभावनाओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने अलग सहकारिता मंत्रालय का गठन किया। इसका फैसला 6 जुलाई 2021 को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया। इसका मकसद देश में सहकारिता आंदोलन को और अधिक मजबूती करना है और इसके लिए अलग प्रशासनिक, कानूनी और पॉलिसी फ्रेमवर्क तैयार करना है। पहले सहकारिता विभाग कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय के अधीन था।

अलग हुए सहकारिता मंत्रालय की जिम्मेवारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह को दी। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि डिपार्टमेंट ऑफ एक्सपेंडिचर ने सहकारिता मंत्रालय के लिए 185 पद स्वीकृत किए हैं। जबकि केबिनेट सचिवालय ने एक सचिव, एक अतिरिक्त सचिव, दो संयुक्त सचिव और 1 सीअरसीएस की पोस्ट की मंजूरी दे दी है। सहकारिता मंत्रालय लगभग कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से बात कर रहा है कि एक्सपेंडिचर विभाग द्वारा मंजूर किए गए पदों के अनुसार अधिकारियों की नियुक्ति की जाए।

संसदीय समिति को बताया गया कि कार्मिक विभाग में उपलब्ध स्टाफ की कमी को देखते हुए इस प्रक्रिया में थोड़ा सा समय लग रहा है। मंत्रालय से संबंधित अधिकारी इस बारे में लगातार संपर्क कर रहे हैं।

यह भी बताया गया कि अभी अधिकारियों के पास बैठने के लिए पर्याप्त जगह भी नहीं है। मंत्रालय ने सीजीओ कांप्लेक्स में अटल अक्षय ऊर्जा भवन में जगह आवंटित की है और भवन का निर्माण अभी अंतिम चरण में है। बावजूद इसके अधिकारियों के बैठने के लिए हर संभव इंतजाम किए जा रहे हैं।

कमेटी ने सहकारिता मंत्रालय ने अगले पांच साल का विस्तृत रोडमैप बताने को कहा तो मंत्रालय ने बताया कि सहकारिता की समृद्धि की ओर विजन पर काम किया जाएगा। सहकारिता आंदोलन को मजबूत किया जाएगा। नई पॉलिसीज बनाई जाएंगी और सहकारिता विभाग के अधिकारी कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।

अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए मंत्रालय ने एक एक्शन प्लान तैयार किया और 3,250 करोड़ रुपए के सालाना बजट की आवश्यकता जताई। इसके तहत पेक्स (प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी) के डिजिटाइजेशन पर 500 करोड़ रुपए, शिक्षा एवं प्रशिक्षण पर 250 करोड़ रुपए, सहकारी संस्थाओं के लिए क्रेडिट गारंटी फंड पर 1,000 करोड़ रुपए, सहकार से समृद्धि योजना पर 1,500 करोड़ रुपए खर्च करने का प्लान था।

सहकारिता मंत्रालय ने संसदीय समिति को बताया कि वित्त वर्ष 2022-23 के लिए मंत्रालय का यह पहला स्वतंत्र बजट था, लेकिन डिपार्टमेंट ऑफ एक्सपेंडिचर ने केवल 900 करोड़ रुपए ही अप्रूव किए हैं। लेकिन नई योजनाओं के लिए और अधिक बजट की जरूरत है।

मंत्रालय की ओर से संसदीय समिति को यह भी बताया गया कि देश में काम कर रही 63 हजार पेक्स के डिजिटाइजेशन को लेकर पहले ही बड़े स्तर पर काम चल रहा है। पिछले पांच साल में 2516 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं।

संसदीय समिति की इस रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ने बताया कि 31.3.2022 तक मंत्रालय में सेंक्शन पदों की संख्या 91 है और 31 मार्च 2023 तक 198 है, जबकि अभी मंत्रालय में कुल 43 कर्मचारी हैं। संसदीय समिति ने मंत्रालय से कहा कि कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने के लिए अपने प्रयास तेज किए जाएं।

संसदीय समिति ने कहा कि एक ओर मंत्रालय ने साल 2022-23 के लिए 3,250 करोड़ रुपए का बजट मांगा था, जबकि यह भी बताया कि 2021-22 में मंत्रालय का संशोधित बजट (आरई) 403.30 करोड़ रुपए खर्च का था तो यह बात चौंकाने वाली है कि मंत्रालय ने 3,250 करोड़ रुपए की मांग क्यों की?

हालांकि वित्त मंत्रालय ने फिर भी 2022-23 के लिए सहकारिता मंत्रालय का अनुमानित 900 करोड़ रुपए रखा है। हालांकि संसदीय समिति ने इस पर संतुष्टि जताई कि मंत्रालय ने विस्तृत बजट तैयार किया है, लेकिन समिति ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को अपना मासिक खर्च प्लान तैयार करना चाहिए।

समिति ने इस पर भी हैरानी जताई कि सहकारिता मंत्रालय को वर्ष 2021-22 के लिए संशोधित बजट में 403.30 करोड़ रुपए का प्रावधान किया, बावजूद इसके मंत्रालय ने केवल 96.99 करोड़ रुपए ही खर्च किए, जो केवल एक स्कीम पर खर्च किए गए।

भारत में सहकारिता का इतिहास 100 साल से भी अधिक पुराना है। सबसे पहले 1904 में सहकारिता की औपचारिक पहल शुरू हुई। पहली कॉपरेटिव क्रेडिट सोसायटीज एक्ट 1904 में बना, लेकिन यह केवल ऋण सहकारी समितियों तक ही सीमित था। लेकिन आजादी के बाद सहकारी क्षेत्र ने काफी विस्तार किया और देश की अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती चली गई।

1963 में नेशनल कॉपरेटिव डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनसीडीसी) का गठन किया गया। इसके चलते सहकारी संस्थाओं के माध्यम से फसल कटाई के बाद की गतिविधियों में काफी तेजी आई।

1981 में नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) की स्थापना की गई। जो किसानों को फसल ऋण उपलब्ध कराती हैं। इसके बाद सहकारिता के क्षेत्र में बहुत तेजी आई।

1950-51 में जहां 1.81 लाख सहकारी संस्थाएं थी, आज उनकी संख्या बढ़ कर 8.54 लाख हो चुकी है।

वहीं सहकारी संस्थाओं के सदस्यों की संख्या 1.55 करोड़ से बढ़ कर 2.75 करोड़ हो गई। यानी कि आज के दिन भारत में लगभग 404 परिवारों पर एक सहकारी संस्था है।

देश में दो तरह की सहकारी संस्थाएं है। जो सहकारी संस्था राज्य स्तर पर काम करती हैं, वे राज्य सरकार के अंतर्गत आती है। जबकि कई राज्यों में काम करने वाली संस्थाएं मल्टी स्टेट  कॉ-परेटिव सोसायटीज एक्ट 2002 के तहत केंद्र सरकार के अंतर्गत आती हैं।

कमेटी को बताया गया कि अब सामाजिक आर्थिक जीवन से संबंधित उत्पादन, वितरण और उपभोग से जुड़ी सभी गतिविधियों में सहकारिता की पहुंच हो चुकी है। केवल खेती बाड़ी ही नहीं, बल्कि लगभग हर क्षेत्र में सहकारिता के माध्यम से काम हो रहे हैं। कृषि उत्पाद की बिक्री के मामले में तो सहकारी क्षेत्र की हिस्सेदारी एक तिहाई से अधिक है।

सहकारिता मंत्रालय के अधिकारियों ने कमेटी को बताया कि सहकारिता क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं भी बहुत अधिक हैं। अभी डेयरी, कृषि ऋण, कृषि विपणन, कृषि प्रसंस्करण, मत्स्य पालन, हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट, उद्योग, श्रम, खाद, मेडिकल, बिजली, ट्रांसपोर्ट टूरिज्म, आवास, चीनी, उपभोक्ता, फल एवं सब्जी क्षेत्र से जुड़ी लगभग 8.54 लाख सहकारी संस्थाएं काम कर रही हैं।

सहकारी क्षेत्र में लगभग 13.3 प्रतिशत प्रत्यक्ष नौकरियां हैं, जबकि 10.91 प्रतिशत स्वरोजगार हैं।