कृषि

धान की सीधी बुआई कर रहे किसान इन बातों का रखें ध्यान

कोरोनावायरस और लॉकडाउन की वजह से धान की रोपाई के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं, इसलिए किसान सीधी बुआई कर रहे हैं

Raju Sajwan

कोरोनावायरस संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से खेतिहर मजदूर अपने गांव-घर लौट गए हैं। इससे खरीफ की बुआई के लिए मजदूरों की कमी पड़ गई है। ऐसे में जहां कुछ बड़े किसान अपनी बसें भेज कर प्रवासी मजदूरों को वापस लाने का प्रयास रहे हैं, वहीं दूसरे किसान नए-नए रास्ते ढूंढ़ रहे हैं। खासकर धान की बुआई करने वाले किसानों ने सीधी बुआई का रास्ता अपनाया है।

सीधी बुआई में कम से कम लोगों की जरूरत पड़ती है, जबकि इसमें पानी भी कम इस्तेमाल होता है। पानी की बढ़ती समस्या को देखते हुए इससे पहले कई राज्य सरकारें किसानों को सीधी बुआई करने की सलाह देती रही हैं, लेकिन किसानों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। इस बार किसान धान की सीधी बुआई कर रहे हैं। लेकिन यह काम आसान नहीं है। सीधी बुआई करने पर धान की फसल को खरपतवार से नुकसान की बहुत आशंका होती है। यही वजह है कि केंद्रीय कृषि मंत्री की ओर से हाल ही में किसानों के नाम पर जारी चिट़्ठी में इस बात का विशेष उल्लेख किया गया है।

इस चिट्ठी में कहा गया है कि इस वर्ष कई क्षेत्रों में धान की सीधी बुआई भी की जा रही है। इससे सिंचाई जल एवं मानव श्रम की बचत होती है, लेकिन किसानों को खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई गुड़ाई को प्राथमिकता देनी चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर खरपतवरनाशी का प्रयोग भी किया जा सकता है। धान में पानी खड़ा रहने की स्थिति में नील-हरित शैवाल अथवा अजौला का प्रयोग अवश्य करें। फसल में कीट प्रबंधन के लिए नीम के तेल के प्रयोग के साथ-साथ ट्रायो कार्ड व फिरोमेन ट्रैप का प्रयोग करना चाहिए। फसल के पास प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें।

चिट्ठी में पंजाब के किसानों को सलाह दी गई है कि सीधे बोये गए धान में 130 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ तीन बराबर टुकड़ों में बुआई के 4, 6 और 9 सप्ताह के बाद प्रयोग करें। फास्फोरस और पोटाश तभी दिए जाएं, जब मिट्टी की जांच में इन तत्वों की कमी पाई गई हो। रोपित धान में मिट्टी की जांच के अनुसार उर्वरक का प्रयोग करें। नाइट्रोजन का उपयोग पर्ण रंग चार्ट (सीएलसी) के अनुसार विवेक से करें। बासमती धान में 55 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ तीन बार में दें, बुआई के 3, 6 और 9 सप्ताह बाद प्रयोग करें।

हरियाणा के किसानों को भी सलाह दी गई है कि धान की सीधी बुआई में खरपतवार प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। धान की सीधी बुआई वाले खेतों में जहां पौधों की संख्या कम है, वहां पुन बीज की बुआई करने की जरूरत है। किसानों से कहा गया है कि खरपतवार निगरानी करें और इनके प्रबंधन के लिए खरपतवारनाशियों की उपयुक्त मात्रा का प्रयोग करें। धान की सीधी बुआई की सफलता के लिए खरपतवार प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण क्रिया है।

झारखंड के धान उत्पादक किसानों से कहा गया है कि ऊंची भूमि में धान की सीधी बुआई वंदना, वीरेंद्र, अंजलि, सहभागी आदि किस्मों से पूरी करें। लंबी अवधि के धान की  पौधशाला निम्न किस्मों के साथ लगाएं, जैसे- स्वर्णा महसूरी, राजेंद्र महसूरी, बीपीटी-5204 आदि। जिससे जुलाई में समय पर रोपाई कर अच्छा उत्पादन लिया जा सके। बुआई से पहले धान का बीजोपचार ट्राईकोडरमा विरडी 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या फंफूदनाशक फॉसटाइल एआाई डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से करें। धान की 400 वर्ग मीटर पौधशाला की क्यारी के लिए 100 किग्रा कंपोस्ट, 2.5 किग्रा यूरिया, 6 किग्रा एसएसपी और 1.5 किग्रा एमओपी की अनुशंसा की गई है। इससे एक हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जा सकती है।

आंध्रप्रदेश : खरपतवार प्रबंधन के लिए सीधी बुआई की गई धान में 48 घंटे में 200 ग्राम पानी में बुआई से पहले खरपतरवार नाशी प्रिटिलाइक्लोर प्रति 400 मिलीलीटर प्रति एकड़ या पाइरोजोसल्फ्यूरॉन इथाइल 80 ग्राम ऑक्सााडियार्गल 35 ग्राम प्रति एकड़ दर से प्रयोग करें।

केरल के किसानों को सलाह दी गई है कि शुष्क/गीले क्षेत्रों मं धान की सीधी बुआई के खेतों में मिट्टी की अम्लीयता के अलावा अधिमानत चूना या डोलोमाइट 2 किलोग्राम प्रति सेंटीमीटर के रूप में प्रारंभिक जुताई के साथ देना चाहिए। दो सप्ताह के बाद अगली जुताई के दौरान गोबर की खाद 2 टन प्रति एकड़ का प्रयोग  करे, जो धान आधारित फसल प्रणाली की उत्पादकता को बढ़ाएगा।