हिमाचल मंत्रिमंडल ने भांग की खेती के पायलेट प्रोजेक्ट का मंजूरी दी है 
कृषि

“भांग की खेती का स्वागत लेकिन बहुत कुछ किया जाना बाकी”

हिमाचल के स्थानीय लोगों के अनुसार, पारंपरिक रूप से उगाई जा रही भांग की खेती को एनडीपीएस कानून से प्रतिबंधित करना अंतरराष्ट्रीय दबाव का नतीजा है, अब वे देश खुद भांग की खेती कर रहे हैं। लेकिन भारत अब भी गलतफहमी का शिकार है

Bhagirath

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में 24 जनवरी 2025 को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए भांग (कैनबिस) की खेती के पायलेट प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी गई।

मंत्रिमंडल के अनुसार, कांगड़ा जिले के पालमपुर में स्थित चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय और सोलन जिले के नौनी में स्थित डॉ. वाईएस परमार बागवानी विश्वविद्यालय संयुक्त रूप से अध्ययन कर भविष्य में भांग की खेती का मूल्यांकन और सिफारिश करेंगे। कृषि विभाग को इस पहल के लिए नोडल विभाग नामित किया गया है।

इस फैसले से हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और मणिपुर के बाद चिकित्सीय और औद्योगिक उपयोग के लिए भांग की नियंत्रित खेती की स्वीकृति देने वाले राज्यों में शामिल हो गया है।

हिमाचल प्रदेश में भांग का पौधा प्राकृतिक रूप से उगता है। भारत में भांग की खेती स्वापक औषधि और मन: प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम, 1985 के तहत प्रतिबंधित है। अफीम के विपरीत इसकी कानूनी खेती के लिए कोई सरकारी नीति नहीं बनाई गई है।

एनडीपीएस कानून के बावजूद हिमाचल प्रदेश में साल 2000 से पहले तक भांग की खेती नियमित व स्वतंत्र रूप से होती थी, लेकिन इसके बाद हुई सख्ती ने इसकी खेती बंद कर दी। हालांकि प्रदेश के कई जिलों में चोरी छुपे इसकी खेती जारी है।

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के खलवाहण गांव के पूर्व प्रधान और ग्रामीण कामगार संगठन के अध्यक्ष संतराम डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय शराब लॉबी ने भांग को बदनाम कर एनडीपीएस कानून में शामिल करवा दिया। वह बताते हैं कि एनडीपीएस कानून बनने के करीब डेढ़ दशक बाद तक हिमाचल प्रदेश में घर-घर में इसकी खेती होती थी। यह गिरदावरी और राजस्व रिकॉर्ड में भी दर्ज है। उन्हें याद है कि जब वह अक्टूबर 2000 में गांव के प्रधान थे, तब पुलिस ने उनके गांव सहित आसपास के गांवों में लगी थी 80 प्रतिशत भांग की खेती नष्ट कर दी थी और लोगों को खूब डराया धमकाया था।

वह बताते हैं कि भांग की खेती को नशे से जोड़कर नष्ट कर दिया जिससे ग्रामीणों की आजीविका भी नष्ट हो गई। वह बताते हैं कि नशे के अतिरिक्त भांग के बहुत से उपयोग हैं और पौधे से सभी हिस्सों का आर्थिक मूल्य है।

लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के मुताबिक, कैनबिस को आमतौर पर फाइबर, बीज, बायोमास या अन्य दोहरे उद्देश्य वाली फसल के रूप में उगाया जाता है। भांग के वैश्विक बाजार में 25,000 से अधिक उत्पाद शामिल हैं।

एनबीआरआई के अनुसार, हाल के वर्षों में भांग के पौधे ने वैश्विक स्तर पर अपनी औषधीय और औद्योगिक क्षमता दिखाई है। कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, फ्रांस, इटली, हंगरी, चीन, डेनमार्क, अन्य यूरोपीय देश, ऑस्ट्रेलिया आदि जैसे कई देश भांग की खेती में अग्रणी हैं और दुनिया भर में इसके उत्पादों के निर्माता हैं। इस पौधे का उपयोग औद्योगिक और औषधीय उद्देश्यों दोनों के लिए किया जाता है। एनबीआरआई के अनुसार, वर्तमान में इस फसल को “ट्रिलियन डॉलर की फसल” माना जाता है। पौधे में 100 से अधिक कैनाबिनोइड्स मौजूद हैं जिनमें से टीएचसी और सीबीडी प्रमुख हैं। टीएचसी साइकोएक्टिव है जबकि सीबीडी गैर-साइकोएक्टिव यौगिक है। पौधे में उच्च टीएचसी (>0.3 प्रतिशत) की उपस्थिति के कारण इसे एक मादक फसल माना जाता है। संतराम कहते हैं कि इसके नशे के रूप में इस्तेमाल प्रतिबंधित कर अन्य इस्तेमाल को प्रोत्साहन देना चाहिए क्योंकि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ा है।   

संतराम बताते हैं कि भांग खूबियों और आर्थिक महत्व को देखते हुए हमने इसकी खेती को पुन: शुरू कराने के लिए लंबा आंदोलन चलाया लेकिन सरकार ने हमारी मांग पर ध्यान नहीं दिया। कई बार विधानसभा में इसके लिए प्रस्ताव भी पारित किया गया लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ।

हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह कहते हैं कि मंत्रिमंडल का ताजा फैसला औद्योगिक घरानों के दबाव का नतीजा है। वह बताते हैं कि इसके स्थानीय बीज “बिजो” का हम परंपरागत रूप से इस्तेमाल करते रहे हैं। नब्बे के दशक के मध्य तक हर परिवार खेत के एक हिस्से में इसे उगाता था। इससे फाइबर निकाला जाता था और बीज का इस्तेमाल कढ़ी बनाने में होता है। स्थानीय स्तर पर नशे के रूप में इसका इस्तेमाल बहुत कम लोग करते थे। राज्य में पर्यटन बढ़ने के बाद नशे के लिए इसका चलन बढ़ा।  

गुमान सिंह के अनुसार, जिन यूरोपीय और अमेरिकन लोगों के दबाव में एनडीपीएस लागू किया, उन्होंने खुद अपने देशों में इसे शुरू कर दिया है। लेकिन भारत अब भी गलतफहमी का शिकार है। हमारे देश में तो भांग पीने की परंपरा बहुत पुरानी है। वह बताते हैं कि कैनबिस को कानूनी वैद्यता मिलती चाहिए। जहां तक नशे के रूप में उसके इस्तेमाल की बात है तो उसे नियंत्रित करने के उपाय होने चाहिए। वह बताते हैं कि कारपोरेट के दबाव में इसका पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है, क्योंकि उद्योगों को इसमें करोड़ों का फायदा नजर आ रहा है।

संतराम के अनुसार, सरकार ने भले ही औद्योगिक दबाव में यह फैसला लिया है, पर हम इसका स्वागत करते हैं। लेकिन हम चाहते हैं कि यहां के स्थानीय बीज को नष्ट न किया जाए क्योंकि इसका बहुत महत्व है।