मौसम की बेरूखी का असर हिमाचल प्रदेश के किसान और बागवानों के ऊपर भी हुआ है। पिछले दो माह में हिमाचल प्रदेश में केवल 12.7 मिलीमिटर बारिश हुई है। साथ ही इस बार अचानक बढ़ी गर्मी ने भी पिछले कई सालों का रिकार्ड तोड़ दिया है।
कम बारिश और अचानक बढ़ी गर्मी की वजह से प्रदेश के किसान बागवानों का 40 फीसदी से अधिक का नुकसान हो चुका है। वहीं अगर आगे भी ऐसे ही हालात बने रहते हैं तो इनका नुकसान और अधिक बढ़ सकता है। जिसे देखते हुए प्रदेश के किसान-बागवान हिमाचल प्रदेश को सूखाग्रस्त राज्य घोषित करने की मांग कर रहे हैं।
इस बार सर्दियों के महिनों दिसंबर और जनवरी में अच्छी बारिश और बर्फबारी हुई थी और प्रदेश के किसान बागवान अच्छी पैदावार की आशा लगाकर बैठे थे, लेकिन मार्च और अप्रैल माह में कम बारिश के चलते किसान-बागवान निराशा से भर गए हैं।
हिमाचल प्रदेश में अकेले सेब बागवानी का सालाना 5 हजार करोड़ रुपए का कारोबार है। इसके साथ सब्जियां, अनाज फसलें और अन्य फलों को लेकर कुल 8 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार होता है और प्रदेश में 69 प्रतिशत लोग कृषि व बागवानी क्षेत्र से सीधे तौर रोजगार पाते हैं। ऐसे में इस साल किसान-बागवानों के सामने आजीविका को लेकर संकट खड़ा हो गया है।
जुब्बल क्षेत्र के बागवान प्रताप सेहटा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस बार मौसम में आए अचानक बदलावों का बागवानी में बहुत गहरा असर देखने को मिला है।
उन्होंने बताया कि सेब और अन्य खुमानी, आडू, चैरी, शकरपारा, प्लम और अन्य गुठलीदार फलों का फ्लावरिंग सीजन जो डेढ माह तक चलता था वो तापमान में आई अचानक वृद्धि के कारण 20 दिनों तक सिमट कर रह गया। इस बार फ्लावरिंग तो बहुत हुई लेकिन तापमान में अधिक वृद्धि की वजह से बागीचों में नमी जल्दी से चली गई। जिसकी वजह से फ्रूट फालिंग की समस्या देखी जा रही है। जिससे पैदावार पर असर पडेगा।
शिमला के बागवान तुलसी राम का कहना है कि इस बार अच्छी पैदावार के आसार थे, इसलिए बागवानों ने सेब और अन्य फलों को ओलों से बचाने के लिए ऐंटीहेल नेट भी लगाए थे, लेकिन मौसम की बेरूखी ने किसानों को नुकसान कई गुणा बढ़ा दिया। उन्होंने मांग की है कि सरकार किसान-बागवानों के नुकसान का आकलन कर मुआवजा जारी करे।
हिमाचल किसान सभा के अध्यक्ष संजय चौहान ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हिमाचल प्रदेश में सूखे की स्थिति बन चुकी है और सरकार को चाहिए कि वे किसान-बागवानों के नुकसान का आकलन कर उन्हें मुआवजा जारी करे।
डॉ यशवंत सिंह परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालयए नौणी के प्रसार विभाग से संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत बागवानी विशेषज्ञ सत्य प्रकाश भारद्वाज ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इससे पहले मार्च अप्रैल में ऐसी स्थिति कभी देखी नहीं गई है जब प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग उठी हो। उन्होंने बताया कि हिमाचल में मार्च में बर्फबारी होती थी और कई बार तो अप्रैल में भी बर्फबारी देखी गई है।
बागवानी और जल शक्ति विभाग मंत्री महेंद्र सिंह ने प्रदेश में सूखे की स्थिति को देखते हुए बागवानी को भारी नुकसान होने की बात कही। उन्होंने कहा कि कम बारिश की वजह से प्रदेश में 500 से अधिक पेयजल और सिंचाई परियोजनाएं प्रभावित हुई हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की है।
सेब के नए पौधों पर खतरा
सेब के बागीचों में बागवानों द्वारा लगाए नए पौधे सूखने लगे है। हर साल लाखो रुपए खर्च कर बागवान नई प्लांटेशन करते है, लेकिन सूखे के कारण अब यह पौधे सूख रहे हैं। बागवानों का कहना है कि 6500 से 7000 हजार फीट की ऊंचाई से नीचे के इलाकों में तापमान काफी ज्यादा हो गया है।
मौसम विज्ञान केंद्र शिमला की ओर से दिए गए डाटा के अनुसार मार्च माह में 95 फीसदी कम बारिश हुई है। जो वर्ष 2008 के बाद सबसे कम आंकी गई है। वहीं तापमान ने पिछले कई सालों को रिकार्ड तोड़ते हुए मार्च में अधिकतम तापमान 38.7 डिग्री रहा। मौसम विज्ञान केंद्र के डाटा के अनुसार प्रदेश के 12 जिलों में से केवल एक जिला कुल्लू में बारिश दहाई के आंकड़े 11.2 एमएम तक पहुच पाई है।
वहीं अप्रैल माह में वर्ष 2004 के बाद सबसे कम 89 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई। पूरे अप्रैल माह में केवल 7.3 एमएम दर्ज की गई जिसकी वजह से प्रदेश में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई है। अप्रैल में अधिकतम तापमान को लेकर कई रिकॉर्ड बने हैं। जिला ऊना में 12 वर्षों बाद अप्रैल में सबसे अधिक पारा दर्ज किया गया। यहां अधिकतम तापमान 43.2 डिग्री सेल्सियस रहा। इससे पूर्व 2010 में अप्रैल के दौरान ऊना का तापमान 43.2 डिग्री रहा था। इसके अलावा अप्रैल माह में हिमाचल प्रदेश में हीट वेव की तीन घटनाएं देखी गई हैं।
कृषि निदेशक डॉ एनके धीमान ने कहा कि प्रदेश में सूखे के आकलन के लिए कृषि विभाग ने टीमें गठित कर फील्ड पर भेज दी हैं। उन्होंने बताया कि गेहूं को 10 और सब्जियों को 25 प्रतिशत नुकसान हुआ है। उन्होंने बताया कि सबसे अधिक शिमला, सोलन और मंडी जिला में देखा गया है।