एक नई रिसर्च से पता चला है कि चींटियां फसलों को बचाने में हानिकारक कीटनाशकों की तुलना में कहीं बेहतर विकल्प हो सकती हैं। प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी: बायोलॉजी में प्रकाशित इस विश्लेषण के मुताबिक कीटों को मारने और फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए चीटियां कहीं ज्यादा बेहतर उपाय हैं।
ब्राजील, अमेरिका और स्पेन के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस शोध के मुताबिक चीटियों को प्राकृतिक कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में किए 52 अन्य अध्ययनों का विश्लेषण किया है और यह जानने का प्रयास किया है कि कैसे प्राकृतिक उपायों की मदद से किसान कीटों की रोकथाम कर सकते हैं।
देखा जाए तो पिछले कुछ दशकों में किसान पैदावार बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में व्यावसायिक कीटनाशकों के उपयोग पर जोर दे रहे हैं। हालांकि पिछले शोधों में सामने आया है कि इस तरह के कीटनाशकों के कुछ बुरे परिणाम भी सामने आ सकते हैं, जैसे इनकी वजह से जहां मधुमक्खी जैसे अन्य परागणकों में कमी आ रही है।
साथ ही इनसे पैदा हो रहा प्रदूषण पर्यावरण और इंसानी स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बनता जा रहा है। ऐसे में दुनिया भर के वैज्ञानिक आज प्राकृतिक कीटनाशकों के उपयोग की संभावनाओं को तलाश रहे हैं। ऐसी ही एक सम्भावना चीटियों में मौजूद है। जो पौधों के स्थान पर फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खाती हैं।
कीटनाशकों से भी सस्ता विकल्प हैं चींटियों की कुछ प्रजातियां
शोध से पता चला है कि चीटियां एक शिकारी जीव हैं जो उन कीटों का शिकार करती हैं जो फल, बीजों और पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं जिनसे पैदावार में गिरावट आ जाती है। देखा जाए तो दुनिया भर में चीटियों की 17,000 से ज्यादा ज्ञात प्रजातियां हैं। जो अंटार्कटिका को छोड़कर लगभग सभी महाद्वीपों पर पाई जाती हैं। इनकी इतनी विविधता आमतौर पर कीटों की एक विस्तृत श्रंखला के खिलाफ कहीं ज्यादा सुरक्षा प्रदान करती हैं।
इतिहास पर नजर डालें तो कीटों से निपटने में चीटियों के उपयोग का एक लंबा इतिहास रहा है। उदाहरण के लिए चीन में खट्टे फलों के उप्तादक सदियों से इन पेड़ों में कीटों को नियंत्रित करने के लिए चींटियों का उपयोग कर रहे हैं।
इस रिसर्च में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूके और ब्राजील सहित कई देशों में संतरा, आम, सेब और सोयाबीन सहित 17 फसलों में कीटनाशकों के तौर पर चीटियों के उपयोग का अध्ययन किया है। पता चला है कि यदि इनका उचित प्रबंधन किया जाए तो चींटियां कीट नियंत्रण में अत्यंत उपयोगी हो सकती हैं और फसलों की पैदावार को बढ़ा सकती हैं। वहीं पता चला है कि कीटनाशकों की तुलना में चींटियों की कुछ प्रजातियां तो बहुत कम लागत में कहीं ज्यादा प्रभावी होती हैं।
इस रिसर्च से यह भी पता चला है कि आंशिक छाया में उगाई जाने वाली फसलों में कीटों को रोकने में चींटियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। ब्राजील के शोधकर्ताओं ने जिन्होंने चींटियों की 26 प्रजातियों पर अध्ययन किया है, जिनमें से ज्यादातर प्रजातियां पेड़ों पर रहती हैं और पौधों या जमीन पर घोसला बनाती हैं उन्होंने कृषि वानिकी और छाया में उगने वाली फसलों पर सबसे अच्छा काम किया था। ऐसा शायद इसलिए हैं क्योंकि उनके घोसलों और भोजन के लिए बेहतर परिस्थितियां मौजूद हैं।
हालांकि शोधकर्ताओं के मुताबिक कृषि में चींटियों की भूमिका अभी तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि वे भी फसलों के लिए समस्या पैदा कर सकती हैं। आमतौर पर माइलबग्स, एफिड्स और व्हाइटफ्लाइज जैसे कीट, जो हनीड्यू नामक एक मीठा तरल पैदा करते हैं, चींटियों के आसपास उनका होना आम बात है। इसकी वजह यह है कि इन कीटों द्वारा पैदा करने वाले शहद का चींटियां सेवन करती हैं बदले में इनकों शिकारियों से बचाती हैं।
इसके बावजूद दुनिया भर में कीटों को रोकने के लिए इनका उपयोग किया जा रहा है, जोकि कारगर भी साबित हुआ है। कनाडा के जंगलों में लगने वाले कीटों की रोकथाम से घाना में कोको, नाइजीरिया में फसलों, तंजानिया में आम, स्पेन में नाशपती, अमेरिका में सोयाबीन, वियतनाम में काजू और भारत में फूलगोभी आदि मामलों में कीटों को रोकने के लिए चींटियों का उपयोग प्राकृतिक कीटनाशकों के रूप में किया गया था।
देखा जाए तो चींटी जैसे इन जीवों और किसानों के बीच सदियों से नाता रहा है। जो लम्बे समय से एक दूसरे की जरूरतों को पूरा करते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा इंसान और प्रकृति के बीच के इस नाजुक रिश्ते को बिगाड़ रही है।
फसलों में कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग पैदावार तो बढ़ा रहा है लेकिन उसकी कीमत हमें पर्यावरण और अपने स्वास्थ्य की एवज में चुकानी पड़ रही है। ऐसे में यह जरुरी है कि केमिकल युक्त कीटनाशकों का उपयोग सीमित किया जाए और पैदावार बढ़ाने के लिए आर्गेनिक फार्मिंग और प्राकृतिक कीटनाशकों के उपयोग जैसे विकल्पों को बढ़ावा दिया जाए।