इलेस्ट्रेशन : योगेंद्र आनंद 
कृषि

सदी के अंत तक आधे रह जाएंगे खेत, तब कहां से आएगा अनाज?

खेती की जमीन कम हो रही है। किसान बुजुर्ग हो रहे हैं और युवाओं में खेती के प्रति रूचि नहीं दिखती। ऐसी स्थिति में क्या हालात बनेंगे?

Richard Mahapatra

दुनियाभर में खेत घटते जा रहे हैं और किसान बुजुर्ग हो रहे हैं। वैश्विक स्तर पर किसानों की औसत आयु 55 वर्ष है जो नौकरी करने वाली आबादी की सेवानिवृत्ति आयु के करीब है। ठीक इसी समय युवाओं में खेती को एक पेशे के रूप में अपनाने की रुचि घटती जा रही है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के आंकड़ों के अनुसार, 1991 में दुनियाभर में कुल रोजगार में लगभग 43 प्रतिशत हिस्सेदारी कृषि क्षेत्र की थी। 2023 में यह घटकर 26 प्रतिशत हो गई है।

भारत की जनगणना 2011 के अनुसार औसतन रोजाना लगभग 2,000 किसान खेती छोड़ रहे हैं। वर्ल्ड फार्मर्स ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष अर्नोल्ड प्यूश पेस ड एलिसैक ने चेतावनी देते हुए कहा है, “बहुत से लोग जल्द ही नौकरी खो देंगे या बेरोजगार रह जाएंगे।”

कृषि एक आधारभूत आर्थिक गतिविधि है। यह कई मायनों में अद्वितीय भी है। जमीन इसकी नींव है जो सीमित संसाधन के तौर पर देखी जाती है। इसके बहुत से अन्य प्रतिस्पर्धी उपयोग भी हैं।

कहा भी जाता है कि भूमि का मालिक होना पृथ्वी के एक हिस्से पर मालिकाना हक जैसा है। खेती का सीधा संबंध जलवायु से है और जलवायु परिवर्तन ने फसलों के चक्र को बाधित कर दिया है।

ऐसे समय में जब खाद्यान्न की मांग जनसंख्या वृद्धि और उपभोग के कारण बढ़ रही है, तब खेती की अपनी सीमाएं हैं। यह श्रम-साध्य कार्य है, जिसे आज की युवा पीढ़ी अपनाना नहीं चाहती। कहने का मतलब यह है कि हमारे खाद्य उत्पादन का यह पेशा अभूतपूर्व चुनौतियों से जूझ रहा है।

इस संकट के केंद्र में है भूमि की उपलब्धता। एक सवाल यह भी है कि क्या हमारे पास खेती के लिए पर्याप्त जमीन है? या फिर बढ़ती खाद्य मांग को देखते हुए हमें और अधिक खेतों की आवश्यकता है?

वर्तमान में पृथ्वी का लगभग एक-तिहाई हिस्सा खेती के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है और यह विस्तार हजारों वर्षों में हुआ है।

“आवर वर्ल्ड इन डेटा” की डिप्टी एडिटर और साइंस आउटरीच की प्रमुख हन्ना रिची ने वैश्विक कृषि भूमि से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है।

वह कहती हैं, “कृषि भूमि का यह विस्तार अब समाप्त हो चुका है। हजारों वर्षों बाद हमने उच्चतम स्तर पार कर लिया है और हाल के वर्षों में वैश्विक कृषि भूमि का उपयोग घटने लगा है।” वह इसे पृथ्वी के साथ मानव संबंधों का ऐतिहासिक क्षण कहती हैं।

ऐसे हालात में दुनिया के खेती का भविष्य क्या होगा? दुनिया में कुल खेतों की संख्या और उनके भविष्य को लेकर आंकड़ों की कमी है।

अमेरिका की कोलोराडो यूनिवर्सिटी के “बेटर प्लेनेट लेबोरेटरी” के जिया मेहराबी ने पहली बार इस दिशा में गणना की है। उन्होंने 1960 से लेकर 2100 तक हर साल खेतों की संख्या और उनके आकार का अनुमान लगाया है। 

नेचर सस्टेनेबिलिटी  पत्रिका में प्रकाशित उनके अध्ययन के अनुसार, दुनिया में खेतों की संख्या 2020 में 616 मिलियन से घटकर 2100 में 272 मिलियन रह जाएगी। इसका कारण बताते हुए वह कहते हैं, “जैसे-जैसे किसी देश की अर्थव्यवस्था बढ़ती है, लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के लिए लोग कम रह जाते हैं।”

यह गिरावट उच्च, उच्च मध्यम और निम्न मध्यम आय वाले देशों में सदी के अंत तक जारी रहेगी। निम्न आय वाले देशों में खेतों की संख्या 2070 तक बढ़ेगी, उसके बाद घटने लगेगी। हालांकि इस अवधि में खेतों का औसत आकार दोगुना हो जाएगा।

उनका अध्ययन यह भी कहता है, “अगर वैश्विक कृषि भूमि स्थिर रखी जाए तो खेत का औसत आकार 2050 तक लगभग 10 प्रतिशत और सदी के अंत तक दोगुना हो जाएगा।”

क्या यह हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा है? मेहराबी इसका उत्तर देते हुए कहते हैं, “वर्तमान में हमारे पास लगभग 600 मिलियन खेत हैं जो दुनिया की 8 अरब आबादी का पेट भर रहे हैं।

सदी के अंत तक हमारे पास आधे किसान होंगे जो और अधिक लोगों को खाना खिलाएंगे। हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम कैसे शिक्षा और सहायता प्रणाली को बेहतर बनाकर इन किसानों को सहयोग करें।”

हालांकि वह जैव विविधता और खाद्य आपूर्ति को नुकसान को लेकर चिंतित हैं। उनके पिछले अध्ययन में यह पाया गया था कि दुनिया के सबसे छोटे खेत कुल कृषि भूमि का सिर्फ 25 प्रतिशत घेरते हैं, लेकिन वे दुनिया का एक-तिहाई भोजन पैदा करते हैं।

अंतत: यह कहा जा सकता है कि भले ही खेतों का एकीकरण और उत्पादकता बढ़े, लेकिन खेतों की कुल संख्या में गिरावट खाद्य आपूर्ति को प्रभावित तो करेगी।