रबी के मौसम में कई राज्यों में उर्वरकों की जबर्दस्त किल्लत के बाद भी केंद्र सरकार ने यूरिया और पोषण तत्व (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम यानी एनपीके) आधारित सब्सिडी में भारी कटौती की है। ऐसे में आशंका है कि अगले वित्त वर्ष में भी यूरिया और एनपीके की भारी कमी रह सकती है और किसानों की परेशानी बढ़ सकती है।
केंद्र सरकार ने बजट 2022-23 में यूरिया की सब्सिडी के लिए 63,222.32 करोड़ रुपए और पोषक तत्व आधारित सब्सिडी के लिए 42,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। यूरिया की सब्सिडी 2021-22 संशोधित बजट अनुमान 75,930.32 करोड़ रुपए से 12,708 करोड़ रुपए कम है। यानी कि लगभग 17 प्रतिशत की कमी की गई है। इसी तरह पोषण आधारित सब्सिडी 2021-22 के बजट अनुमान 64,192 करोड़ से 22,192 करोड़ रुपए कम है। इसमें लगभग 35 प्रतिशत की कमी की गई है।
हालांकि अगर हम 2021-22 के बजट अनुमान से 2022-23 के बजट अनुमान की तुलना करें तो यूरिया और एनपीके की सब्सिडी में इजाफा नजर आता है। सरकार ने 2021-22 के बजट अनुमान में यूरिया की सब्सिडी 58,767.68 करोड़ तय की थी और पोषक तत्व आधारित सब्सिडी के लिए 20,762 करोड़ रुपए निर्धारित किए थे। इस लिहाज से देखें यूरिया की सब्सिडी में करीब 4,500 करोड़ की वृद्धि और एनपीके की सब्सिडी में दाेगुनी बढ़त नजर आती है। पिछले वर्ष उर्वरकों की भारी किल्लत हुई और सरकार को सब्सिडी में इजाफा करना पड़ा जिसकी झलक संशोधित अनुमानों में मिलती है।
रासायनिक उर्वरकों में सब्सिडी पिछले कुछ वर्षों से लगातार कम की जा रही है। 2020-21 में यूरिया सब्सिडी पर वास्तविक खर्च 90,549.27 करोड़ रुपए था जबकि पोषक तत्व आधारित सब्सिडी 37,372.47 करोड़ रुपए थी। ये आंकड़े बताते हैं कि 2020-21 के वास्तविक खर्च के मुकाबले यूरिया पर मौजूदा सब्सिडी में 27,000 हजार करोड़ से अधिक कमी हुई है जबकि पोषक तत्व आधारित सब्सिडी में करीब 4,600 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है।
पिछले दो वर्षों में यूरिया और पोषक तत्व आधारित उर्वरकों की कमी कई राज्यों में देखी गई है। उर्वरकों की कमी के चलते कई जगह से किसानों के विरोध प्रदर्शन की खबरें भी खूब आईं। किसान कई दिन, दिन-रात लाइनों में लगे रहे, फिर भी उन्हें उर्वरक नहीं मिले।
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में डाउन टू अर्थ ने अक्टूबर में किए दौरे के दौरान पाया था कि महोबा जिले में यूरिया की भारी किल्लत के चलते किसानों की बुवाई पिछड़ गई। उर्वरकों की कमी के चलते पांच किसानों की मौत ने भी इस मामले को तूल दिया। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उर्वरकों की कमी राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। उर्वरकों की सब्सिडी में भारी कमी आने वाले दिनों में किसानों की परेशानी का सबब बन सकती है।