कोरोनाकाल के दौरान आर्थिक अस्थिरता को स्थिरता देने वाले कृषि क्षेत्र को बजट 2021-2022 से निराशा हाथ लगी है। एक तरफ किसान यूनियनों की तरफ से खेती-किसानी पर सरकारी सहायता तंत्र को मजबूत करने की मांग और आंदोलन जारी है, वहीं दूसरी तरफ सरकार कृषि क्षेत्र का भविष्य निजी हाथों में बेहतर मान रही है। इसकी झलकी बजट में साफ-साफ दिख रही है। मसलन किसानों को सहायता देने वाली योजनाएं हो या फिर उनकी उपज के लिए बढ़े हुए दर वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी, दोनों ही मामलों में बजट में कुछ ठोस नहीं ऐलान किया गया।
सरकार ने बजट भाषण में भले ही कहा हो कि कृषि क्षेत्र उसकी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर है। लेकिन आंकड़ों में यह दिखाई नहीं दे रहा। वित्त वर्ष 2021-22 के कुल 34 लाख करोड़ से ज्यादा के बजट में कृषि और सहायक गतिविधियों की हिस्सेदारी बढ़ने के बजाए घट गई है। बजट में कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए वित्त वर्ष 2020-2021 में कुल 1.54 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान (कुल बजट में 5.1 हिस्सेदारी) किया गया था जबकि वित्त वर्ष 2021-2022 के बजट प्रावधान में यह घटाकर 1.48 लाख करोड़ (कुल बजट में 4.3 फीसदी की हिस्सेदारी) किया गया है। 1.2 फीसदी का अंतर आया है।
इतना ही नहीं, यह माना जाता है कि सरकार बजट में जो भी घोषणाएं करती है वह वास्तविक खर्च नहीं होता। बल्कि संशोधित बजट में जरूरत के हिसाब से बजट बढ़ाया या घटाया जा सकता है। इस लिहाज से सहायक गतिविधियों को हटाकर सिर्फ डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, को-ऑपरेशन ऑफ फॉर्मर्स के बजट का आकलन करें तो वित्त वर्ष 2020-2021 के बजट में कृषि क्षेत्र के लिए कुल 1.34 लाख करोड़ रुपये की घोषणा हुई थी, जबकि संशोधित बजट के तहत 1.16 लाख करोड़ बजट का प्रावधान किया गया। वास्तविकता में यह संशोधित बजट वित्त वर्ष 2020-2021 में भी मिला या नहीं, यह बाद में पता चलेगा। एक चीज स्पष्ट है कि संशोधित बजट में पहले ऐलान के प्रावधान से भी कम बजट कर दिया गया। इस बार के बजट में 2021-2022 के लिए डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, को-ऑपरेशन एंड फॉर्मर्स का बजट अनुमान 1.23 लाख करोड़ रुपए का ही है, जिसका संशोधन और वास्तविक बजट अलग हो सकता है।
किसान संगठन लगातार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को पहले की तरह कानूनीजामा पहनाने की मांग और आंदोलन कर रहे हैं लेकिन सरकार ने सिर्फ यह आश्वसान दोहराया है कि किसानों को दिया जाने वाला एमएसपी जारी रहेगा। किसानों को मदद सुनिश्चित करने वाली सरकार की अहम योजनाओं में बजट में बड़ी गिरावट आई है। मार्केट इंटरवेंशन स्कीम और प्राइस सपोर्ट स्कीम (एमआईएस-पीएसएस) और प्रधान मंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम-आशा) के तहत एमएसपी को लागू करने को सुनिश्चित करती हैं। लगातार बीते दो वर्षों से इसमें गिरावट आई है।
वित्त वर्ष 2021-2022 के तहत बजट में एमआईएस-पीएसएस योजना के लिए कुल 1500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है जबकि वित्त वर्ष 2019-2020 में 3000 करोड़ रुपए की तुलना में 50 फीसदी की कमी है। जबकि पीएम आशा योजना के लिए इस बार बजट में 400 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में 1500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था।
जय किसान आंदोलन, एलाएंस फॉर सस्टेनबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) और रायतू स्वराज्य वेदिका ने संयुक्त रूप से आम बजट पर अपनी टिप्पणी में कहा कि एमएसपी से कम मूल्य पर अनाज बेचने के कारण किसानों को प्रतिवर्ष 50,000 करोड़ रुपए सालाना का नुकसान होता है।
वहीं, किसानों को उनकी उपज की बिक्री के लिए सबसे जरूरी कृषि बाजारों की उपलब्धता है। जबकि कृषि बाजारों की सरंचना के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत 900 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। किसान संगठनों ने बजट विश्लेषण को लेकर अपनी टिप्पणी में कहा कि आत्म निर्भर भारत के तहत एक लाख करोड़ रुपए का एग्री फंड घोषित किया गया था, जबकि उसमें से कुछ खर्च नहीं हो पाया।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी सरकार की कई अहम और महात्वाकांक्षी योजनाओं पर बजट में चुप्पी रही है। किसानों के खातों में सालाना 6000 रुपए भेजने वाली पीएम किसान सम्मान निधि की तुलना बीते वित्त वर्ष के संशोधित बजट से करें तो कोई बदलाव नहीं किया गया है।
29 जनवरी, 2021 को पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि कुल 14 करोड़ किसानों में 2020-2021 के दिसंंबर तक पीएम किसान सम्मान निधि कुल 9 करोड़ किसानों तक ही पहुंची। बटाई और किराए की खेती करने वाले किसानों के लिए योजना के विस्तार पर कुछ नहीं कहा गया।
ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय समूह सदस्य किरण कुमार विस्सा ने डाउन टू अर्थ से कहा कि फसलों के बीमा पर किसानों को और मजबूती मिलनी चाहिए क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। यदि किसानों की समस्याओ को सुलझाने के लिए व्यापक व्यवस्था नहीं होगी तो किसान न सिर्फ संकट में जाएंगे बल्कि उनपर कर्ज का गहरा संकट भी बढ़ जाएगा।
उन्होंने कहा कि फसल बीमा पाने वाले किसानों की संख्या भी धीरे-धीरे घट रही है, जो फंड आवंटित किया जा रहा है वह भी किसानों के लिए उपयोगी नहीं है। सरकार के मुताबिक 2020-2021 में दिसंबर तक 70 लाख किसान फसल बीमा का लाभ ले पाए जबकि यह संख्या 12 करोड़ किसान परिवारों की तुलना मे ंबहुत छोटी है।