तकरीबन एक लाख हेक्टेयर जमीन पर फैले बिहार के टाल क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से जलजमाव के कारण अच्छी फसल नहीं हो पा रही है। फोटो: राहुल कुमार गौरव 
कृषि

बिहार : तमाम सरकारी प्रयास के बावजूद 'दाल के कटोरे' में दाल की खेती पर संकट

बिहार का टाल क्षेत्र लगभग एक लाख हेक्टेयर में फैला है, जहां दाल की खेती होती है

Rahul Kumar Gaurav

“हम भी उसी क्षेत्र से आते हैं। जलजमाव की वजह से खेती नहीं करने के कारण वहां के किसानों की स्थिति भुखमरी जैसी हो रही है। समस्या अत्यंत गंभीर है। एकमात्र फसल उभरता हैं,जिस पर उसकी निर्भरता है। जल्दी से इस पर काम कीजिए।” बिहार विधानसभा सदन में दिसंबर 2021 को तत्कालीन बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा 'दाल का कटोरा' कहे जाने वाला 'मोकामा टाल' के बारे में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री संजय झा को यह बात कहें।

बिहार की राजधानी पटना से करीब 90 किलोमीटर दूर बिहार के चार जिला पटना, नालंदा, लखीसराय और शेखपुरा के एक लाख हेक्टेयर से भी अधिक जमीन पर फैला हुआ मोकामा टाल क्षेत्र बिहार में दाल की खेती का प्रमुख केंद्र माना जाता है। 'मोकामा टाल में भारी मात्रा में दाल खासकर मसूर,चना,मटर और राई दाल का उत्पादन होता है। मोकामा देश के मसूर की दाल के उत्पादन का देश में दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।

तकरीबन एक लाख हेक्टेयर जमीन पर फैला यह टाल क्षेत्र गंगा का प्राकृतिक जल संरक्षण क्षेत्र है। प्रत्येक साल बारिश के मौसम में पूरे इलाके में आठ से दस फीट की ऊंचाई तक पानी जमा हो जाता है, जो बारिश खत्म होने के बाद लगभग सितंबर या अक्टूबर महीने में स्थानीय नदी हरोहर के जरिये गंगा नदी में पहुंच जाती है। इसके बाद किसान इस जमीन पर दलहन और तिलहन की ही खेती करते हैं। हालांकि इस टाल क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से जलजमाव के कारण अच्छी फसल नहीं हो पा रही है। खेती पर निर्भर रहने वाले यहां के अधिकांश किसानों की जलजमाव के कारण खेती मारी जाती है।

दाल के कटोरा से दाल क्यों गायब?

बंटी पाठक मोकामा की रहने वाले हैं और पेशे से लेखक है। वह बताते हैं कि, "पूरे साल जमीन पर पानी रहने की वजह से यह इलाका काफी उपजाऊ हो जाता है। अभी भी खाद और सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। इसलिए पैदावार भी काफी होता है। हालांकि पिछले 7-8 सालों से पानी जमा रहने की वजह से कई एकड़ में खेती भी नहीं हो पाती है। नेताओं के द्वारा वादा किया जाता है कि टाल क्षेत्र में दो-तीन फसल लगाया जाएगा। लेकिन स्थिति यह हैं कि एक फसल भी नहीं लग पा रहा है। जो हमारा नदी पर खेत था,उसे सरकारी ठेकेदारों ने नाला बना दिया है। उद्योग नहीं रहने के कारण सिर्फ युवा पलायन कर रहे हैं, खेती नहीं रहेगा तो पूरा घर को पलायन करना पड़ेगा।"

इस पूरे इलाका में किसानों का मुद्दा उठाने वाले किसान प्रणव शेखर शाही कहते हैं कि, “सरकारी अनदेखी इस समस्या का मुख्य कारण है। टाल योजना के लिए करोड़ों रुपया आता हैं,लेकिन उसका होता क्या है? बिहार सरकार ने टाल बेहतर बनाने के लिए खूब बजट दिया, लेकिन धरातल पर कुछ बदलाव दिख ही नहीं रहा है। गाद के कारण गंगा की ऊंचाई बढ़ गई है, जिस वजह टाल का पानी अब गंगा में रफ्तार के साथ नहीं जा पा रहा है। टाल से जल निकास का परम्परागत स्त्रोत बन्द हो चुका है।”

वहीं कई स्थानीय लोगों के मुताबिक टाल से लगते हुए इलाकों में रोड निर्माण भी जल निकासी नहीं होने का कारण है। पानी जिस रास्ते से निकलता था वहां इस सरकार ने पुल बनाया जहां से पानी निकल ही नहीं सकता है।

स्थानीय किसान नेताओं के मुताबिक लगभग 500 से अधिक गांवों की 20 लाख से अधिक की आबादी के आजीविका में मोकामा टाल का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बड़ा हाथ है। कृषि विशेषज्ञ केमुताबिक 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर के बीच दलहनी फसलों की बुआई का उचित समय माना जाता है। ऐसे में जलजमाव के कारण फसलों की बुआई समय से नहीं होने के कारण हजारों एकड़ खेत परती रह जाते हैं। साथ ही विलम्ब से बुआई के कारण फसल की लागत भी नहीं निकल पाती है। किसान पिछले एक दशक से यह परेशानी झेल रहे हैं। पानी की निकासी की कोई मुकम्मल व्यवस्था अब तक नहीं हुई है।

इस साल की स्थिति 

स्थानीय किसान मोहित सिंह बताते हैं कि,”मोकामा और घोसवरी प्रखंड अंतर्गत आने वाले टाल क्षेत्र के करीब 60 से 70 फीसदी इलाके से बाढ़ का पानी निकल चुका है। लखनचंद,औंटा और मराँची टाल के इलाके में अभी भी पानी है। हालांकि अगले 10-15 दिनों में मरांची टाल को छोड़ अन्य इलाकों से भी पानी निकल जाने की उम्मीद की जा रही है। छठ महापर्व के बाद बुआई शुरू होने की उम्मीद है। कुछ जगह बुआई चल रही थी लेकिन मौसम देखकर उन्होंने बुवाई रोक दी थी।”

मरांची टाल के निवासी किसान इस वर्ष फिर निराश हैं। अभी भी मरांची टाल में काफी पानी जमा है। यहां के निवासी रविंद्र बताते हैं कि, “पिछली बार भी लगभग 700 से 800 एकड़ जमीन में खेती नहीं हुई थी। इस बार भी अभी तक एक महीने बुआई होने की उम्मीद नहीं लगती है। मौसम ने साथ दिया तो दिसंबर में बुआई हो सकती है।”

स्थानीय किसान राहुल शर्मा बताते हैं कि, “इस साल बरसात की शुरुआत टाल क्षेत्र में बाढ़ से हुई जबकि उस वक्त बिहार का बाकी इलाका सूखा झेल रहा था। बरसात के बाद भी वह इलाक़ा जलमग्न रहा क्योंकि बेमौसम बरसात ने दुबारा बाढ़ की स्थिति पैदा कर दी। दाल की बुआई का समय निकल रहा हैं लेकिन टाल क्षेत्र में खेत में पानी भरा है या नहीं तो मिट्टी पानी से तर होने के कारण बुआई के लिए तैयार नहीं है। दाना चक्रवात के कारण हुई बारिश ने हालात को और ख़राब कर दिया है। अगर हालात जल्द नहीं सुधरे तो इस बार शायद इलाके के कुछ इलाकों में दाल की बुआई नहीं हो पाएगी। जिस साल वहाँ दाल का उत्पादन नहीं हो पाता है किसानों की कोई आमदनी नहीं होती।”

मोकामा के एक किसान नाम ना बताने की शर्त पर रहते हैं कि, “बहुत पहले इस इलाके में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ दुर्व्यवहार हुआ था। उसके बाद उन्होंने नाराज होकर कहा था कि वे यहां के लोगों से चिनिया बदाम (मुंगफली) बेचवायेंगे। पता नहीं यहां की स्थिति का जिम्मेदार कौन है?” मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यहां से सांसद भी रह चुके है।