बिहार के सुपौल जिला के कोसी तटबंध के भीतर वाले पंचायत बलवा के बद्रीनाथ महतो लगभग 3 बीघा (एक बीघा में 20 कट्ठा जमीन) जमीन पर मूंग की खेती कर रहे हैं। 2 मई के शाम तक उन्हें इस बात का भरोसा था कि मूंग की फसल लागत से अच्छा मुनाफा देगी। फिर एकाएक रात 10.00 बजे से जो बारिश शुरू हुई वह रात के 03:00 बजे तक पड़ती रही। रात भर की बारिश ने बद्रीनाथ महतो के तैयार फसल को बर्बाद कर दिया।
"पिछले साल यूरिया और डीएपी की कमी की वजह से गेहूं की फसल बहुत ही कम हुई है। जहां पिछले साल एक कट्ठा में 40 किलो गेहूं होता था, वहीं इस बार सिर्फ 10 किलो गेहूं की खेती हुई। मूंग की फसल पर बहुत भरोसा था। जहां 3 बीघा में कम से कम 60 मन मूंग की खेती होती थी। वहीं अब बारिश के कारण 10 मन मूंग से ज्यादा नहीं निकल पाएगा।" बद्रीनाथ महतो बताते है।
बद्रीनाथ महतो की तरह ही बिहार के सुपौल जिला के वीणा बभनगामा पंचायत के बांके बिहारी मंडल हर साल तकरीबन 20 बीघा में दलहन के नाम पर मूंग की फसल लगाते हैं। बांके बताते हैं कि, "20 बीघा मूंग की खेत में 12 से 13 बीघा खेत धरातल से नीचे हैं। जहां इस बारिश के बाद मूंग नहीं हो पाएगा। वहीं बांकी बचे 8 बीघा में आधी से अधिक फसल तो पानी में डूब गई और जो बची है उसमें ज्यादा पानी लगने की वजह से कीड़े लग गए या फूल काले पड़ गए। शायद अब लागत निकल जाए वही काफी है। कोसी सीमांचल और मिथिलांचल का ज्यादातर इलाका मूंग दाल पर ही निर्भर रहता है। यहां कोई और दाल की खेती ना के बराबर होती है।"
सहरसा जिला स्थित महिषी गांव के बबलू पासवान बताते है कि एक तो गेहूं की खेती रूला रही थीं अब मूंग खेती के लिए मेहनत पानी और पूंजी बेकार चली गई। इस बात की चिंता हैं कि धान रोपने के लिए पूंजी कहां से लाएंगे? बबलू पासवान बटाईदार किसान हैं, उनके पास खुद की बिल्कुल जमीन नहीं है। बीज औऱ खाद का पूरा पैसा लगाने के बाद उन्हें आधी फसल मिलती। लेकिन अब वो भी गई।
राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय समस्तीपुर पूसा के कृषि वैज्ञानिक डॉ शंकर झा बताते हैं कि इस साल कोसी इलाके में मूंग की फसल तो अच्छी थी, लेकिन लगातार आए दो बारिश ने फसल को बर्बाद कर दिया। पूरे बिहार के किसानों को गेहूं की फसल में भारी नुकसान हुआ था और अब मूंग भी अचानक मौसम में हो रहे परिवर्तन की वजह से खराब हो गई।
वह कहते हैं कि कोसी और सीमांचल प्रदेशों में बरसात के समय हर साल बाढ़ आती है। इसी वजह से निचले इलाकों के किसान हजारों हेक्टेयर जमीन में मूंग की खेती करते हैं। क्योंकि मूंग की फसल बाढ़ आने के वक्त से काफी पहले ही तैयार हो जाती है और किसानों की इससे अच्छी कमाई भी हो जाती है। साथ ही अगर 40 डिग्री के आसपास तापमान हो तो मूंग में दाने अच्छे लगते हैं और उनकी बढ़वार भी सही होती है। लेकिन दो-तीन दौर में हुई बारिश के कारण तापमान में गिरावट आई हैं। बारिश उसी समय हो रही थी, जब मूंग में दाने लगने का समय होता है। बारिश के बाद नमी ने मूंग में दाने नहीं लगने दिए और अब तो पौधे भी पीले पड़ने लगे हैं।
मौसम विभाग के मुताबिक मधुबनी जिला और कोसी इलाके में 41.6 mm बारीश हुईं.. वहीं सीमांचल इलाके में मध्यम स्तर की बारिश दर्ज की गई है।
वहीं दलहन वैज्ञानिक एसबी मिश्र के मुताबिक बिहार में हर साल तकरीबन 1 लाख 20 हजार हेक्टेयर में मूंग की खेती की जाती है। इसमें से कितनी खराब हुई है, अभी कहा नहीं जा सकता।