कृषि

धान खरीद में पिछड़ा बिहार, केवल पांच फीसदी ही हो पाई खरीद

किसानों ने कहा कि पैक्स जो खरीद करता है, उसका भुगतान देरी से होता है

Rahul Kumar Gaurav

बिहार में एक नवंबर से धान की खरीदी शुरू हो चुकी है। 463 पैक्स (प्राथमिक कृषि ऋण समितियां) और करीब 500 व्यापार मंडल के माध्यम से इसकी खरीददारी की जा रही है। सरकार ने 45 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा है। लेकिन 13 दिसंबर 2023 तक 2.74 लाख मिट्रिक टन धान की खरीद हुई है। 

बिहार कृषि विभाग के मीडिया प्रभारी पंकज कुमार बताते हैं कि इस बार धान की बिक्री करने को इच्छुक किसानों को ऑनलाइन निबंधन कराना जरूरी किया गया है। इस काम में उत्तर बिहार के किसान कुछ सुस्त दिख रहे है। दक्षिण बिहार के किसान ऑनलाइन निबंधन कराने में आगे चल रहे है। वहीं, उत्तरी बिहार को इस साल बाढ और सुखाड़ दोनों ने प्रभावित किया है।

एक अधिकारी के मुताबिक सीतामढ़ी जिले के कई पंचायतों में एक भी किसानों ने धान बेचने के लिए निबंधन नही किया। इनमें परिहार प्रखंड की बबूरबान, बथुआरा और धनहा पंचायत भी शामिल हैं।

बथुआरा पंचायत के सत्यम कुमार बताते हैं कि, "पैक्स में धान बेचने पर 2 से 3 महीने में पैसा मिलता है। जबकि गांव में व्यापारी खुद आकर अनाज को ले जाता है और तुरंत पैसा दे देता है। पैक्स में अपने अनाज को खुद ले जाइए रजिस्ट्रेशन करवाइए बहुत झंझट है। खासकर हम बटाइदार किसानों के लिए तो ज्यादा ही।"

बिहार में छात्रों और किसानों के लिए काम कर रही युवा हल्ला बोल संस्था के संस्थापक अनुपम बताते हैं कि, "बिहार में मंडी कानून होना चाहिए जिससे किसानों को फसल का उचित मूल्य मिल सके। बिहार में अधिकांश ऐसे किसान हैं जिनके पास दो से तीन बीघा खेत है।

एपीएमसी मंडियों को हटाने से इन किसानों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ा है। किसानों के पास अनाज रखने की जगह की कमी है। सरकारी कागजों में फंसना नहीं चाहते हैं। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन वगैरह उनके बस में नहीं है। पैसा भी बहुत लेट से मिलता है। इसलिए मजबूरन कम दामों में व्यापारियों को अनाज बेचना पड़ता है।"

बिहार सरकार ने पराली प्रबंधन को लेकर नियम बनाया है कि पराली जलाने वाले किसानों से पैक्स धान नहीं खरीदेगा साथ ही डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से मिलने वाली कृषि योजना का लाभ भी नहीं मिलेगा। कृषि विभाग ने सभी जिलाधिकारी को भी आदेश दिया है कि फसल कटनी से पहले कंबाइन हार्वेस्टर मालिक और संचालक के साथ इस विषय पर बैठक कर फसल अवशेष नहीं जलाने का निर्देश दिया जाए। 

सहरसा जिला स्थित बनगांव के नंदन खां का लगभग तीन बीघा खेत में खेती करते हैं। वो बताते हैं कि इतने दिनों से खेती करने के दौरान पिछले साल सिर्फ सरकार को धान बेचा। उसका भी रुपया बहुत लेट से आया था। पिछले 2 सालों से सुखाड़ ने तो परेशान किया। साथ ही, यूरिया और डीएपी नहीं मिलने की वजह से ज्यादा दाम में खरीदना पड़ा था। एक तो किस वैसे ही नुकसान में है। ऐसे में पराली प्रबंधन वाली मंहगी मशीन आखिर क्यों खरीदेगा? किसान अपनी खेती करे कि पराली प्रबंधन करे। 

नंदन खां के छोटे भाई रंजन खां अपनी तीन बीघा खेती के अलावा लगभग दो बीघा बटाइदारी खेती भी करते है। वो बताते हैं कि कोई किसान पराली खुशी मन से खेत में नहीं जलाता है लेकिन हमारे पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है। ऐसे भी बिहार के अधिकांश किसान व्यापारी को ही धान बेचते हैं। सरकार के इस आदेश का नुकसान चंद बड़े किसानों को है जिसकी पहुंच सरकारी कागजों तक है।

सुपौल में किसानों की हक की बात करने वाले स्थानीय नेता लक्ष्मण झा कहते हैं कि इसके लिए सिर्फ किसान को जिम्मेदार क्यों ठहराया जाय? बिहार से सारे मजदूर पलायन कर चुके हैं। धान काटने के वक्त किसानों को गेहूं रोपने की जल्दी रहती है। पैक्स के तरफ से मशीन की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है।