बीजेंद्र प्रसाद ने इस साल साढ़े चार बीघे में धान की खेती की है। अभी तक उनका धान खलिहान में ही पड़ा हुआ है, लेकिन सरकार के नये फरमान से वह चिंता में पड़ गये हैं।
बिहार सरकार ने 6 जनवरी को एक अधिसूचना जारी कर कहा है कि प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटी (पैक्स) व व्यापार मंडलों के जरिये धान की खरीद 31 मार्च की जगह अब 31 जनवरी तक ही की जाएगी। इस साल बिहार में 6491 पैक्स व व्यापार मंडलों के जरिये धान की सरकारी खरीद हो रही है। खाद्य व आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने डाउन टू अर्थ को खरीद की अवधि घटाने की पुष्टि की है, लेकिन ऐसा फैसला क्यों लिया गया है, इस बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा।
नालंदा जिले के हिलसा प्रखंड के मिर्जापुर पंचायत निवासी बीजेंद्र ने डाउन टू अर्थ को बताया, “खरीद की समयसीमा कम कर देने से बहुत परेशानी होगी। हम अभी तक एक किलो धान भी पैक्स के जरिये नहीं बेच पाये हैं। मेरा धान अभी खलिहान में ही है। उसे लाकर पुआल अलग करना होगा। चूंकि बारिश भी हो गई है, तो धान में नमी ज्यादा है। उसे सुखाने में भी वक्त लगेगा। जिस तरह सरकार ने अचानक समय सीमा घटा दी है, मुझे मजबूर होकर स्थानीय व्यापारियों को ही धान बेचना होगा।”
गौरतलब है कि इस साल सरकार ने किसानों से 45 लाख मेट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए 15 नवंबर से खरीद शुरू की गई थी और 31 मार्च तक धान खरीदा जाना था। पिछले साल अप्रैल तक धान की खरीद की गई थी। इस साल अचानक खरीद की अवधि घटा देने के सरकारी फैसले ने बीजेंद्र जैसे बिहार के सैंकड़ों किसान परेशान हो गए हैं। बहुत सारे किसान धान की नमी कम हो जाने के बाद पैक्स व व्यापार मंडलों में बिक्री करने का मन बना चुके थे। यही वजह भी रही कि अब तक धान अधिप्राप्ति की रफ्तार काफी सुस्त थी।
पटना जिले के मोकामा में संचालित एक पैक्स के अध्यक्ष मनोज कुमार ने डाउन टू अर्थ से कहा, “हर पैक्स को धान खरीद का एक निश्चित लक्ष्य दिया जाता है। लेकिन मार्च तक खरीदने का लक्ष्य था, इसलिए किसान भी निश्चिंत थे। मेरे यहां खरीद का जितना लक्ष्य था, उसके मुकाबले महज 5 प्रतिशत ही खरीद हो सकी है।”
“अब तारीख घटा देने से किसान हड़बड़ी में नमीयुक्त धान ही बेचेंगे, इससे उन्हें सही कीमत नहीं मिल पायेगी और आखिरकार किसानों को नुकसान उठाना होगा,” उन्होंने कहा।
अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य सचिव राजेंद्र पटेल ने कहा, “अभी तक अधिकांश किसानों का धान खलिहान में ही पड़ा हुआ है। सरकार के इस फैसले से किसानों को मजबूर होकर स्थानीय व्यापारियों को औने-पौने कीमत पर धान बेचने को मजबूर होना पड़ेगा।”
“सरकार को तो चाहिए था कि वह ज्यादा से ज्यादा धान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद लेती, लेकिन उल्टे सरकार ने ऐसी व्यवस्था की है कि किसान एमएसपी पर धान बेच ही नहीं पायेंगे,” उन्होंने कहा।
अब तक 20% धान की ही हो सकी खरीद
बिहार सहकारिता विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक, 7 जनवरी तक 9,14,492.196 मेट्रिक टन धान की ही खरीद हो पाई है, जो लक्ष्य (45 लाख मेट्रिक टन) का करीब 20% है। अभी तक लगभग 1 लाख 20 किसानों से ही धान खरीदी जा सकी है। नालंदा, रोहतास, गया और औरंगाबाद में सबसे ज्यादा खरीद की गई है।
इस बार भी लक्ष्य से कम होगी खरीद
बिहार में हर साल औसतन 80 लाख मेट्रिक टन धान का उत्पादन किया जाता है, लेकिन सरकार 50 प्रतिशत से भी कम धान खरीदने का लक्ष्य रखती है।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले 6-7 सालों में सरकार कभी भी धान की खरीद लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई है। वर्ष 2013-2014 में सरकार ने 24 लाख मेट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन 11.15 लाख मेट्रिक टन धान ही खरीद सकी थी। इसी तरह वर्ष 2014-2015 में 24 लाख मेट्रिक टन धान की खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन 19.01 लाख मेट्रिक टन धान खरीदा था।
साल 2015-2016 में 27 लाख मेट्रिक टन धान की खरीद करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन सरकार 18.23 लाख मेट्रिक टन धान ही खरीद सकी थी। वर्ष 2016-2017, 2017-2018, 2018-2019 में सरकार ने 30-30 लाख मेट्रिक टन धान की खरीद करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन क्रमशः 18.42 लाख, 11.84 लाख और 14.16 लाख मेट्रिक टन धान ही खरीद सकी थी। वर्ष 2019-2020 में भी सरकार लक्ष्य से कम ही धान खरीद सकी थी।
ऐसे में माना जा रहा है कि इस साल भी धान की सरकारी खरीद लक्ष्य के मुकाबले कम हो सकती है क्योंकि पिछले लगभग दो महीनों में सरकार लक्ष्य का महज 20 प्रतिशत धान ही खरीद सकी है। और अब धान खरीद के लिए तीन हफ्ते ही बचे हुए हैं।