कृषि

बिहार: सिंचाई के साधन न होने से खेती छोड़ रहे किसान, पलायन को मजबूर हुए युवा

बिहार के गया जिले के एक गांव के किसानों का कहना है कि साल दर साल बारिश कम होती जा रही है और भूजल स्तर में गिरावट आई है

DTE Staff

बिहार के गया जिले के गांव उचला में सिंचाई की सुविधा नहीं होने के कारण किसान कृषि कार्य से विमुख हो रहे हैं। रोजगार के दूसरे साधन न होने के कारण गांव के लोगों के पास पलायन के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। 

जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर और प्रखंड मुख्यालय बांके बाजार से करीब 13 किमी दूर यह गांव रौशनगंज पंचायत के अंतर्गत है।

लगभग 350 परिवारों की आबादी वाले इस गांव में उच्च वर्ग और अनुसूचित जाति की मिश्रित आबादी है।  दोनों ही समुदाय के अधिकांश परिवार खेती पर निर्भर हैं, लेकिन जहां उच्च वर्ग के लोगों को कृषि से जुड़ी सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं, जबकि आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े परिवारों को कृषि संबंधित कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

इस संबंध में अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले गांव के एक किसान मोहन दास कहते हैं कि उनके पास बहुत कम क्षेत्र में कृषि योग्य जमीन है। जहां पीढ़ियों से उनका परिवार इस पर खेती कर रहा है, इससे इतनी उपज हो जाया करती है कि परिवार को अनाज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उपज लगातार घटती जा रही है।

मोहन कहते हैं कि बिहार के अन्य जिलों की तुलना में गया सबसे अधिक गर्म और सबसे अधिक ठंडा जिला है, जिसका सीधा प्रभाव कृषि पर पड़ता है। हालांकि वर्षा की पर्याप्त मात्रा कृषि संबंधी रुकावटों को दूर कर देती है। लेकिन पिछले कुछ सालों से बदलते पर्यावरण का प्रभाव कृषि पर भी पड़ने लगा है। 

मोहन के मुताबिक अब पहले की तुलना में वर्षा कम होने लगी है। ऐसे में फसलों की सिंचाई की जरूरत पड़ने लगी है, लेकिन आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि सिंचाई का खर्च उठाया जा सके। 

एक अन्य किसान छोटे राम कहते हैं कि अब उनके लिए कृषि घाटे का सौदा बनता जा रहा है, बारिश की कमी के कारण अब हर साल खेतों में सिंचाई आवश्यक हो गई है. जिसके लिए पंप और डीजल का खर्च बहुत अधिक हो जाता है।

वह कहते हैं कि यह हमारे पूरे बजट से बाहर की बात होने लगी है। अब हमारे लिए खेती की लागत निकालना भी मुश्किल होता जा रहा है। 

गांव के दूसरे किसान सुकेश राम कहते हैं कि कृषि से इतना अधिक घाटा होने लगा है कि अब वह अपने बच्चों को इससे अलग रोजगार तलाशने की सलाह देने लगे हैं। जमीन के छोटे से टुकड़े पर संयुक्त परिवार का गुजारा संभव नहीं है।

उन्होंने बताया कि पीढ़ियों से उनका परिवार भी जमीन के मात्र कुछ टुकड़े पर खेती करता है, लेकिन संयुक्त परिवार में खाने वाले करीब 35 लोग हैं, जो अपनी जमीन पर उगे अनाज से पूरी नहीं हो पाती है और उन्हें अब बाजार से खरीदना पड़ता है।

एक किसान मंगल दास का कहना है कि उच्च वर्ग के लोगों के लिए सिंचाई के लिए पंप और महंगे डीजल का इंतजाम करना मुश्किल नहीं होता है। गांव के आर्थिक रूप से संपन्न सभी परिवार सिंचाई के लिए पंप का इंतजाम कर लेते हैं, लेकिन हम जैसे गरीबों के लिए यह बहुत मुश्किल होता है।

पिछले कुछ सालों से गांव में कृषि के लायक पर्याप्त वर्षा नहीं हो रही है, ऐसे में किसानों के लिए पंप के माध्यम से सिंचाई करना एकमात्र रास्ता रह जाता है। यदि किसान इसके माध्यम से सिंचाई नहीं करेंगे तो उनकी फसल सूख जाएगी। 

वह बताते हैं कि गया और उसके आसपास की जिलों और उसके गांवों में भूजल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। ऐसे में सिंचाई के लिए पंप में डीजल भी अधिक खर्च हो रहा है। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ने लगा है।

मंगल बताते हैं कि इसकी वजह से आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की नई पीढ़ी अब कृषि कार्य को छोड़कर रोजगार की तलाश में दिल्ली, कलकत्ता, मुंबई, सूरत, मुरादाबाद लुधियाना और अमृतसर जाने लगी है।

नई पीढ़ी का कृषि से विमुख होना एक ओर जहां चिंता का विषय है वहीं ऐसा लगता है कि यदि वह यह नहीं करेंगे तो परिवार का पेट कैसे पालेंगे? कृषि से उनकी उम्मीदें अब खत्म होने लगी हैं।

जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से इस समस्या का हल संभव है।  इसके अतिरिक्त नाबार्ड और अन्य कई योजनाओं के माध्यम से भी यह समस्या हल हो सकती है, लेकिन उसे जमीनी स्तर पर लागू करने की जरूरत है, ताकि उचला और उसके जैसे अन्य गांवों के गरीब किसानों का खेत भी सिंचाई की कमी के कारण प्रभावित न हो।

(साभार: चरखा फीचर)