कृषि

बिना जोर-जबरदस्ती के ऐसे बंद हुआ 'भारत'

दिल्ली पुलिस ने धरने पर बैठे किसानों तक आम आदमी को पहुंचने ही नहीं दिया

Anil Ashwani Sharma

“हर तरफ बस एक ही बात कही जा रही है कि सब ओर खुला हुआ है, कहीं भी बंद कर असर नहीं दिख रहा। लेकिन मैं पिछले 13 दिन से सफदरजंग अस्पताल रोज अपनी आंख दिखाने के लिए आता था। सड़क से लेकर अस्पताल तक इतनी भीड़ होती थी कि डेढ़ से दो घंटे लग जाते थे, लेकिन सुबह न तो सड़क पर जाम मिला और न ही अस्पताल में।" दिल्ली की सड़कों पर टैक्सी चलाने वाले 74 वर्षीय विरेंदर सिंह ने यह बात कही।

विरेंदर सिंह ने कहा, "क्या इसे भारत बंद का असर नहीं माना जाना चाहिए। क्या बंद उसे कहते हैं जब कोई राजनीतिक पार्टी का गुंडा डंडा लेकर आए, हम सबों के साथ मारपीट करे या इसे कहते हैं जब आदमी स्वयं ही अपने आप ही इस बंद का मौन समर्थन कर अपने धंधे-पानी को रोककर घर में बैठ जाए।"

शायद आंदोलन कर रहे किसान भी यही चाह भी रहे थे। भारत बंद का एक और असर राजधानी के कश्मीरी गेट बस अड्डा पर दिखा। पूरे 24 घंटे भरा रहने वाले बस अड्डे पर काफी कम भीड़ थी। फुटपाथ पर कुछ दुकान जरूर लगी हुई थी, लेकिन रामअधीर ने अपनी दुकान (बिस्कुट-नमकीन) जरूर अपने झोले में समेट ली थी। जब उनसे एक राहगीर ने नमकीन का पैकेट मांगा तो उन्होंने कहा, भई अभी मेरी दुकान बंद है और अभी डेढ़ बज रहे हैं यानी डेढ़ घंटे और बंद रहेगी।

रामअधीर से जब डाउन टू अर्थ ने पूछा कि आपने क्यों बंद कर रखी है? इस पर उसने कहा कि मैं नरेला में रहता हूं और वहां से रोज कमाने खाने आता हूं लेकिन पिछले 10-12 रोज से मेरे घर के आसपास लोग बड़ी संख्या में पास के सिंधु बॉर्डर जाते हैं और आंदोलन करने वाले किसानों को पानी और अन्य आवश्यक चीजें जुटा कर देने को कोशिश करते हैं। मैं चूंकि दिनभर तो अपनी झोले वाली दुकान बंद नहीं रख सकता लेकिन फिर भी मैंने सोचा कि चलो 11 से तीन बजे तक तो मैं बंद रख ही सकता हूं। लेकिन जब आपने दुकान बंद कर रखी है तो तब यहां क्यों बैठे आप किसी छांव वाली जगह पर जाकर आराम किजिए। इस पर वह कहते हैं, भई फुटपाथ पर दुकान लगाता हूं। यह जगह मौके की है इसीलिए बैठा हूं कि तीन बजे तो मैं अपनी दुकान फिर से खोलूंगा।

अकेले विरेंदर और राम अधीर ही ऐसे नहीं शख्स थे कि इस भारत बंद का समर्थन करते हों। सरकार तो आम लोगों को किसानों के पास जाने ही नहीं दे रही है। तभी तो आज गाजियाबाद और नोएडा के छोटे-बड़े गली-कूचों के सभी रास्तों पर पुलिस ने बैरिकेटिंग लगा रखी थी। चांदनी चौक, दरियागंज, दिल्ली गेट और और हर समय पूरी सड़क को घेर लेने वाली लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल  की भीड़ आज गायब है। हालांकि इन सभी जगहों पर दुकान अवश्य खुली हैं लेकिन ग्राहक के नाम पर नील बटे सन्नाटा पसरा हुआ है।

चांदनी चौक के पास के जैन मंदिर के नीचे खड़े बैटरी रिक्शे वाले आपस में एक-एक सवारी के लिए भिड़े हुए हैं। क्योंकि आज कोई सवारी ही नहीं मिल रही है। इसी प्रकार से डीटीसी की सभी बसें दोड़ रही हैं लेकिन सवारी न के बराबर। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इसे शांतिपूर्वक भारत बंद कहा जाता है। विरेंदर कहते हैं कि बंद का ही असर है कि कि आज सुबह से ही सरकार के मंत्री कुछ न कुछ इस बंद को लेकर नकारात्मक टिप्पणी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। इसे ही बंद का असर कहते हैं। अंत में उन्होंने कहा कि हर सुबह से लेकर दोपहर होने तक मैं 16 से 17 सौ रुपए की कमाई कर लेता था लेकिन आज आपको मिलाकर अब तक मेरे जेब में केवल 674 रुपए ही आए हैं। यही है बंद का शांतिपूर्वक असर।