कृषि

ऐसे बैक्टीरिया जो खुद नाइट्रोजन का उत्पादन कर पौधों को बेहतर उपज में मदद करते हैं

Dayanidhi

यह लगभग हर तीसरा व्यक्ति जानता है कि पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से मिट्टी से पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं। अब बात यह आती है कि पौधे भी मिट्टी में तत्वों को छोड़ते हैं, इसके बारे में बहुत कम जानकारी है। यह पौधों के उगने और उनके विकास को बहुत आसान बनाता है। अध्ययन में कहा गया है कि फसलों की ऐसी नई किस्मों को बढ़ावा मिल सकता है जिनको बहुत कम उर्वरकों की आवश्यकता होती है।     

शोधकर्ताओं ने मक्के की कई किस्मों का अध्ययन किया है, उनकी उपज में काफी अंतर पाया गया हैं। इस खोज में एक एंजाइम, फ्लेवोन सिंथेज़ 2 पाया गाया है। इंस्टीट्यूट ऑफ क्रॉप साइंस के डॉ. पेंग यू बताते हैं कि हमने जो उच्च उपज वाली मक्के की इनब्रेड लाइन 787 किस्म का अध्ययन किया, उसमें इस एंजाइम की बड़ी मात्रा पाई गई हैं। यह इस एंजाइम का उपयोग फ्लेवोनोइड समूह के कुछ अणुओं को बनाने और उन्हें मिट्टी में छोड़ने के लिए करता है।

इंस्टीट्यूट ऑफ क्रॉप साइंस एंड रिसोर्स कंजर्वेशन (आईएनआरईएस) के प्रोफेसर डॉ. फ्रैंक होचोलडिंगर बताते हैं कि फ्लावोनोइड एंजाइम अपने आधार पर फूल और फल को रंग देते हैं। मिट्टी में हालांकि, वे एक अलग तरह से काम करते हैं, वे सुनिश्चित करते हैं कि जड़ों के आसपास बहुत विशिष्ट बैक्टीरिया जमा हों। ये सूक्ष्मजीव बदले में, इन जड़ों पर अगल-बगल की शाखाओं का गठन करते हैं, जिन्हें दूसरे दर्जे के या लेटरल जड़ कहा जाता है। ये जड़े मक्के के पौधे को पर्यावरण से अधिक नाइट्रोजन को अवशोषित करने में मदद करता है, इसका मतलब है कि पौधे तेजी से बढ़ते है, खासकर जब नाइट्रोजन की आपूर्ति कम होती है।

शोधकर्ता ने प्रयोगों के द्वारा दिखाया कि पौधे का विकास कितनी अच्छी तरह से होता है। उन्होंने यह एलएच93 (LH93) के साथ मक्के की किस्म का उपयोग करते हुए किया, जो आमतौर पर कमजोर पौधों की पैदावार करता है। हालांकि, यह तब बदल गया जब उन्होंने इस किस्म को बैक्टीरिया युक्त मिट्टी में लगाया जहां इनका  प्रदर्शन लाइन 787 में पहले से बढ़ा था जिसने एलएच93 (LH93) से काफी बेहतर प्रदर्शन किया। यह प्रभाव तब खत्म हो गया जब वनस्पति विज्ञानियों ने बीज बोने से पहले मिट्टी को कीटाणुरहित बना दिया। इससे पता चलता है कि समृद्ध बैक्टीरिया वास्तव में तेजी से पौधों के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं।  

शोधकर्ताओं ने एक अन्य प्रयोग किया जिसमें वे यह प्रदर्शित करने में सफल रहे कि सूक्ष्मजीव वास्तव में दूसरे  दर्जे के या लेटरल जड़ों के विकास को बढ़ावा देते हैं। यहां, उन्होंने एक मक्के की किस्म का उपयोग किया था जो म्युटेशन के कारण दूसरे दर्जे के या लेटरल जड़ों का निर्माण नहीं कर सकता है। हालांकि, जब उन्होंने जीवाणु (बैक्टीरिया) के साथ मिट्टी को पहले की तरह मिला दिया, तो म्युटेशन से जड़ों की शाखाएं विकसित होने लगी। यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि यह प्रभाव कैसे आता है। इसके अतिरिक्त, माइक्रोबियल के साथ मक्के ने नाइट्रोजन की कमी का बेहतर मुकाबला किया।

यू कहते है कि पौधों की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन इतना महत्वपूर्ण है, कि किसान कृत्रिम रूप से उर्वरक डालकर मिट्टी में इसकी मात्रा बढ़ाते हैं। हालांकि, कुछ उर्वरक बारिश के साथ खेतों से बह जाते हैं या भूजल में प्रवेश करते हैं। यह वातावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड या अमोनियम गैस के रूप में भी प्रवेश कर सकता है, जहां यह ग्रीनहाउस को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों के उत्पादन के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अगर हम ऐसी फसलों का उत्पादन करते हैं जो बैक्टीरिया की मदद से अपने नाइट्रोजन उपयोग में सुधार कर सकते हैं, तो हम पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में सफल हो सकते हैं।

नेचर प्लांट में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चलता है कि पौधे मिट्टी की उन स्थितियों को बेहतर करने में मदद करते हैं जहां उनका विकास होता हैं, यह भी उन तरीकों से जो अंततः उन्हें फायादा पहुंचाते हैं। हालांकि, अब तक पौधों के प्रजनन में इस पहलू को नजरअंदाज किया गया है।