बिहार का भागलपुर क्षेत्र धान व मक्के की खेती के लिए जाना जाता है। जिले के अमरपुर गांव के किसान दिलीप कुमार ने बताया कि इस बार तो नहीं लेकिन पिछले साल (2018) हमारे यहां मक्के में दाने नहीं आए थे। इसकी शिकायत स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र में की थी। इस पर ब्लॉक के कृषि अधिकारी अपनी टीम लेकर आए व जांच कर सैंपल ले गए। उन्होंने बताया था कि जांच लैब से कराकर बताएंगे। लेकिन उसके बाद उन्होंने हमें हमारी नुकसान हुई फसल का मुआवजा तो दे दिया, लेकिन उस अनजान “कीट” के बारे में कुछ भी नहीं बताया। वहीं,जब इस संबंध में राज्य के कृषि निदेशक आदेश तितरमारे से पूछा गया तो उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया कि बिहार में एफएडब्ल्यू (फॉल आर्मीवर्म) एकाध जगह पर देखा गया है। वह कहते हैं, “राज्य के बेगूसराय जिले में मक्के की फसल के एक छोटे हिस्से पर एफएडब्ल्यू देखा गया था। इसकी रोकथाम के लिए उचित कार्रवाई हो चुकी है।” वह मानते हैं कि एफएडब्ल्यू का मिलना गंभीर बात है। इसके लिए बिहार में इस पर निगरानी रखने के लिए ब्लॉक स्तर से लेकर जिला व राज्य स्तर पर समितियां बनाई हैं।”
ध्यान रहे, बिहार देश में मक्के का सबसे बड़े उत्पादक राज्यों में से एक है। राज्य में एफएडब्ल्यू उपस्थिति दर्ज हो चुकी है। इस बात की पुष्टि पटना स्थित आईसीएआर रिसर्च कॉम्प्लेक्स फॉर ईस्टर्न रीजन के कीट विज्ञानी मोहम्मद मोनबरुल्लाह ने भी की है। उन्होंने कहा कि पटना जिले के मोकामा ताल क्षेत्र में एफएडब्ल्यू पाए गए थे। कुछ किसानों ने इसकी शिकायत की थी। इसलिए दिल्ली के वैज्ञानिकों की एक उच्च स्तरीय समिति ने कुछ महीने पहले मोकामा ताल क्षेत्र में एफएडब्ल्यू की उपस्थिति की पुष्टि की थी। हालांकि बिहार के समस्तीपुर स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कीटविज्ञानी एके मिश्रा ने बताया कि अभी तक उनके पास राज्य में एफएडब्ल्यू का पता चलने की कोई जानकारी नहीं है। लेकिन मिश्रा ने कहा कि पिछले महीने (फरवरी, 2019) भारतीय कृषि अनुसंसाधन परिषद (आईसीएआर) प्रमुख त्रिलोचन महापात्र के निर्देशों के बाद जल्द ही सभी जिला कृषि अधिकारियों से लेकर कृषि विज्ञान केंद्र के नोडल अधिकारियों को एफएडब्ल्यू का पता लगाने के संबंध में सूचना देने के लिए नोटिस अवश्य भेजा गया है।
“यह अब तक का सबसे बड़ा कीट हमला है”
फॉल आर्मीवर्म के आहार में मक्का सहित पौधों की 300 प्रजातियां शामिल हैं
बी.एम. प्रसन्ना
एफएडब्ल्यू का प्रसार अभूतपूर्व रहा है और किसी कीट के मामले में ऐसा नहीं देखा गया है । हमने व्हीट ब्लास्ट या मेज लीथल नेक्रोसिस जैसी महामारियों का सामना किया है। लेकिन पिछले सभी मामलों में घटनाएं कुछ देशों तक और एक ही फसल तक सीमित थीं। एफएडब्ल्यू के मामले में खतरा काफी बड़ा है, चाहे इसकी चपेट में आई फसलों की संख्या हो या कुल क्षेत्रफल। एफएडब्ल्यू जुलाई, 2018 में भारत पहुंचा और कर्नाटक,आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की खरीफ व रबी दोनों फसलों पर एकसाथ हमला कर दिया। अब यह बंग्ला देश ,श्रीलंका, म्यांमार, दक्षिण चीन और वियतनाम में फैल गया। भारत का उत्तर-पश्चिम का हिस्सा अब तक इसकी पहुंच से बाहर है। एफएडब्ल्यू को मक्का सर्वाधिक पसंद है लेकिन इसके आहार में 300 पौधों की प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें सब्जियां और सजावटी पौधे भी शामिल हैं। इस कीट की घुसपैठ रोकने के लिए हर देश को चाहिए कि वह आयातित माल को प्रभावी ढंग से अलग-अलग करे। यूरोपीय देशों में पिछले कुछ वर्षों में सजावटी पौधों पर एफएडब्ल्यू अंडे देखे गए हैं। एफएडब्ल्यू एक बार किसी देश में प्रवेश कर जाए तो फिर इसे रोकना नामुमकिन है। लगातार निगरानी एवं किसानों के बीच एफएडब्ल्यू के प्रति जागरूकता पैदा करके इसके प्रभाव को कम जरूर किया जा सकता है। अमेरिका एफएडब्ल्यू को नियंत्रित करने में सफल रहा है क्योंकि वहां 90 प्रतिशत मक्का की खेती आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) है। ब्राजील, अर्जेंटीना और चिली भी ऐसा ही कर रहे हैं। एफएडब्ल्यू बीटी मक्के के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर चुका है, जिसके नतीजतन एक नई हाइब्रिड किस्म लाई जा रही है। अफ्रीका में बीटी मक्के का उपयोग नहीं होता और वहां इस कीट ने अकेले 2017-2018 के दौरान 2 अरब रुपए मूल्य की फसल को नुकसान पहुंचा चुका है।
(लेखक गैर-लाभकारी संस्था सीआईएमएमवाईटी के ग्लोबल मेज प्रोग्राम के निदेशक व मक्का पर सीजीआईएआर के शोध कार्यक्रम के निदेशक हैं)