हमारे गांव के लोगों ने इस बार सोयाबीन, मक्का और धान की फसल लगाई थी। पिछले साल फसल देखकर इस बार मक्के की फसल भी काफी मात्रा में लगाई गई थी। तीनों में से कोई भी फसल ठीक से नहीं हो पाई। स्थिति इतनी खराब है कि नवंबर महीने में भी बारिश हो रही है। सोयाबीन पूरी चौपट हो गई। खेतो में मक्के का नामोनिशान नहीं बचा है। धान से थोड़ी बहुत उम्मीद थी लेकिन फसल के तैयार होने के समय हो रही बारिश ने इसे भी खराब कर दिया। मैंने ऐसी प्राकृतिक आपदा नहीं देखी है। मैं सरपंच होने के साथ-साथ खुद भी छोटा किसान हूं। मैंने तीन एकड़ में सोयाबीन की फसल लगाई थी। फसल में 5 से 6 हजार रुपए प्रति एकड़ की दर लागत लगी है लेकिन वह एक हजार भी नहीं निकाल पाई। कुछ फसल में फफूंद लग गई तो कुछ पौधों में फलियां ही नहीं आईं। जिसमें फलियां आई उसमें खड़ी फसल में अंकुरण हो गया। जब फसल काटी गई तो पता चला तीन एकड़ खेत में सिर्फ दो बोरे सोयाबीन निकला। खेत साफ करने तक का खर्चा नहीं निकल पाया। फसल ठीक होती तो 12 क्विंटल सोयाबीन निकलता। सरकार ने हमारे गांव में 60 से 70 फीसदी खेतों का सर्वे कराया है। पटवारी आकर किसानों के कागजात भी ले गए। उम्मीद है फसल बीमा का लाभ मिलेगा। हालांकि फसल बीमा या मुआवजे को लेकर हमारा अनुभव बहुत अच्छा नहीं है। तीन साल पहले फसल खराब होने पर मुआवजा मिला था लेकिन उसकी रकम इतनी कम थी कि लागत भी नहीं निकल सकी। फसल बीमा की स्थिति भी यही है। हमारे गांव के लोग अब तक बीमा का इंतजार ही कर रहे हैं और कर्ज में डूब रहे हैं। अब खेती पहले जैसी नहीं रही। हर साल कोई न कोई आपदा आ जाती है। हमारे गांव में किसी साल बारिश अधिक होती तो कभी सूखा पड़ता है। खेती करना काफी मुश्किल होता जा रहा है। इस आपदा के जिम्मेदार हम ही हैं। आखिर कुदरत भी कब तक सहे। नदी, नाले और तालाब सब तबाह हो गए हैं। खेती का तरीका बदल गया है। गाय-बैल सड़कों पर घूम रहे हैं और खेतों में मशीन लगी हुई है।
होशंगाबाद का क्षेत्र अधिक बारिश के लिए जाना जाता है लेकिन इस मॉनसून यह बारिश कई तरह से किसानों के लिए तबाही लेकर आई। हमारे जिले में अमूमन 50 इंच बारिश होती है, लेकिन इस बार 70 से 72 इंच बारिश हुई। मॉनसून देर से आने और अक्टूबर के अंत तक चलने की वजह से स्थिति अधिक खराब हुई। बारिश से उड़द और मूंग की फसल के साथ सोयाबीन की फसल पूरी तरह चौपट हो गई। उम्मीद थी कि धान की फसल ठीक हो जाएगी, लेकिन बारिश लंबी खिंचने की वजह से धान ठीक से आकार नहीं ले पाया और फसल की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। फसल बीमा और मुआवजा के माध्यम से आपदा में मदद देने की कोशिश किसानों के लिए काफी नहीं है। फसल बीमा में अब भी कई खामियां हैं और मैंने नीति आयोग की बैठक में कई बार इस समस्या पर बात की है। मुझे बीमा में जो कमी समझ आ रही है, वह इसका प्रीमियम का अधिक होना और फसल खराब होने की स्थिति में आसानी से इसका लाभ नहीं मिलना है। सिर्फ इस वर्ष ही नहीं बल्कि हर वर्ष कोई न कोई समस्या आती रहती है और जब तक किसानों को फसल की सही कीमत नहीं मिलेगी, वे परेशान होते रहेंगे। उदाहरण के लिए जब प्याज खेत से निकलता है तो किसान को एक से दो रुपए प्रति किलो कीमत मिलती है। हमारा जोर फसल का उत्पादन बढ़ाने पर है लेकिन उसकी सही कीमत देने पर नहीं। किसानों के लिए फसल की कीमत के अलावा दूसरी समस्या मौसम है। अब पहले की तरह मौसम किसानों के लिए अनुकूल नहीं है और हर बार मौसम असामान्य रहने लगा है। पहले चार-पांच वर्ष में एक बार मौसम की मार पड़ती थी लेकिन अब यह हर साल की बात हो गई है। मेरे खयाल से किसानों को नकदी फसल और उन्नत खेती की तरफ तेजी से बढ़ना होगा और मौसम के मुताबिक खेती करनी होगी। केंद्रीय स्तर पर सामुदायिक खेती करने की योजना पर भी काम हो रहा है, जिससे चार-पांच किसान मिलकर खेती करेंगे तो अधिक लाभ होगा।