कृषि

अनिल अग्रवाल डायलॉग 2020:  किसान की आमदनी पशुपालन से हो सकती है दोगुनी

अनिल अग्रवाल डायलॉग 2020 में अमूल के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने दुग्ध उत्पादन और जीविकोपार्जन के बारे में विस्तृत जानकारी दी

Manish Chandra Mishra

राजस्थान के अलवर में अनिल अग्रवाल एनवायरनमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में चल रहे अनिल अग्रवाल डायलॉग के दूसरे दिन अच्छे और बुरे खाने के साथ खाने का जलवायु परिवर्तन के बीच संबंधों पर चर्चा हुई। कार्यक्रम में खाने और उसके बाजार को लेकर भी विशेषज्ञों ने जानकारियां साझा की। अमूल के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने कहा कि भारत दूध का सबसे बड़ा बाजार हिने के साथ सबसे बड़ा उत्पादक है और यहां दुग्ध उत्पादन में विकास भी सबसे तेज हो रहा है। वह मानते हैं कि सिर्फ पशुपालन ही किसान की आमदनी पशुपालन से हो सकती है। उन्होंने एक महिला पशुपालक का उदाहरण से समझाते हुए कहा कि महिला ने एक गाय से पशुपालन की शुरुआत की और 20 साल में ही उसके पास 45 गाय है और अब वह एक साल में 33 लाख रुपए कमा रही है।

वह कहते हैं कि भारत में दुग्ध उत्पादन की स्थिति बतर्फ देखें तो 1971 की तुलना में इस वक्त उत्पादन 9 गुना बढ़ गया है। इस समय 10 करोड़ परिवार दुग्ध उत्पादन के काम से जुड़े हुए हैं। 

क्या पशुपालक जलवायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं?
सोढ़ी मानते हैं कि पशुपालन इस परिवर्तन के लिए पूरी तरह जिम्मेदार नहीं है। कृषि से केवल 10 प्रतिशत गैस उत्सर्जन होता है। उन्होंने कहा कि मांस के उत्पादन में कार्बन का उत्सर्जन अधिक होता है, लेकिन दुग्ध उत्पादन में यह काफी कम होता है। ऊर्जा उत्पादन में पशुपालन की भूमिका बताते हुए वह कहते हैं कि अमूल गोबर गैस पायलट प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है जिसमें लागत 5 हजार तक है। गैस के साथ खाद भी बनाया जाता है। इस प्रोजेक्ट में 2 गाय से 3 हजार रुपये महीना गोबर से कमाया जा सकता है। चुनौतियों के बारे में बताते हुए वह कहते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नई पीढ़ी पशुपालन के क्षेत्र में नहीं आना चाहती। इसके अलावा किसानों की आय दोगुनी होने की राह में मुक्त व्यापार संबंध एक बड़ा रोड़ा है।

अच्छा खाना के लिए बाजार की विविधता जरूरी

कृषि-विविधता और क्षमता निर्माण, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, नई दिल्ली की राष्ट्रीय सलाहकार शालिनी भूटानी ने खाने के बाजार पर जानकारियां साझा की। उनके मुताबिक जब खाने के बारे में लिखा जाता है तो खाने के खरीद फरोख्त की बात होती है , लेकिन अच्छा खाना क्या है उसकी चर्चा कहीं नहीं है। अच्छा खाना उपलब्ध कराने के लिए जरूरी नहीं की हर जगह बाजार खड़ा हो जाए और इसका एकीकरण हो जाए। जब खाने और बाजार की बात होती है तो हर तरफ प्रयास हो रहा है कि हर तरह के  बाजार को एक कर दें, जबकि बाजार की विविधता बरकरार रखने की कोशिश होनी चाहिए। गांव के हाट बाजार अच्छे खाने के स्त्रोत हैं।

उन्होंने सवाल उठाया,"अगर किसान की आमदनी दोगुनी करनी है तो अच्छी गुणवत्ता का खाना निर्यात करने होगा, लेकिन यहां यह सवाल उठता है कि क्या देश के लोग अच्छा खाना खा रहे हैं।" उन्होंने किसानों के अधिकार पर हावी होते बाजार का उदाहरण बीज पर किसानों से अधिकार छीनकर बाजार को देने के नियम आईपीआर एक्ट की बात की। उन्होंने कहा कि आज भी 60 प्रतिशत बीज किसान खुद ही बनाते हैं जो कि बीज के बाजार के लिए सबसे बड़ी चिंता है। हालांकि, आईपीआर एक्ट किसानों के प्राकृतिक अधिकार छीन रहे हैं और इस एक्ट के तहत 3500 प्रकार के बीजों से किसानों का अधिकार छिन चुका है। वह कहती हैं कि हमें राष्ट्रीय कृषि नीति की जरूरत है। 

पशु चिकित्सा वैज्ञानिक और खाद्य संप्रभुता गठबंधन की सदस्य सागरी रामदास ने छोटे किसानों की कम होती संख्या पर चिंता जताई।  वह कहती हैं कि वर्ष 1990 से पहके 90 प्रतिशत दूध छोटे किसानों से ओर से आता है लेकिन अब यह आंकड़ा 60 फीसदी तक सिमट गया है।