कृषि

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए महिला किसानों को मदद देगी आंध्र प्रदेश सरकार

आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा तीस जिलों की 71560 अनुसूचित जाति की महिला किसानों को दस हजार की सब्सिडी और ब्याज-मुक्त कर्ज दिया जाएगा

Shagun


आंध्र प्रदेश में सीमांत किसानों के बीच प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार 70 हजार से ज्यादा अनुसूचित जाति की महिला किसानों को आर्थिक मदद देगी।

इसके तहत उन्हें एक बार दस हजार की सब्सिडी और ब्याज-मुक्त कर्ज दिया जाएगा। इसके लिए राज्य के तीस जिलों की 71,560 महिला किसानों को चिन्हित कर लिया गया है, इनमें काश्तकार महिलाएं भी शामिल हैं। इसका मकसद उन्हें मौजूदा खेती से प्राकृतिक खेती की ओर ले जाना है, जिसमें निवेश की लागत कम होती है।

योजना के तहत सरकार फिलहाल इसे लागू कराने के लिए राज्य में फैले महिला स्वयं सहायता समूह मॉडल की मदद लेगी, जिससे राज्य के चुने गए तीस जिलों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा।

आंध्र प्रदेश, अनुसूचित जाति निगम के प्रबंध निदेशक हर्षवर्धन के मुातबिक, ‘हम इसकी शुरुआत प्रारंभिक तौर पर महिलाओं के साथ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हमारे यहां स्वयं सहायता समूहों का बेहतरीन ढांचा है। हमने ऐसी महिला किसानों की पहचान कर ली है, जो मौजूदा खेती से प्राकृतिक खेती की ओर जाना चाहती हैं। ये सभी किसान छोटी, सीमांत या भूमिहीन हैं, जिनके पास एक एकड़ या उससे भी कम जमीन है। मौजूदा खेती से प्राकृतिक खेती की ओर जाने में होने वाले इस बदलाव में मदद के लिए उन्हें दस हजार की मदद दी जाएगी। वे इसका इस्तेमाल बीज व जैव-उत्तेजक खरीदने और खेतों में पौधों के चारों ओर मिटटी की ढाल आदि बनाने में कर सकती हैं।’

वह आगे बताते हैं कि कर्ज की राशि के लिए किसानों को निजी तौर पर एक छोटी सी योजना, जिसे माइक्रो क्रेडिट प्लॉन (एमसीपी) कहते हैं, बनाकर पेश करनी होगी, जिसके आधार पर उन्हें ब्याज मुक्त कर्ज दिया जाएगा। उनके मुताबिक, ‘कर्ज की राशि में कोई ऊपरी सीमा तय नहीं की गई है हालांकि हमारे आकलन के हिसाब से यह औसतन चालीस हजार से पचास हजार रुपये के बीच होगी। ’

यह पहल आंध्र प्रदेश समुदाय प्रबंधित प्राकृतिक खेती (एपीसीएनफ) कार्यक्रम में एक और पड़ाव है, जिसके तहत सरकार का लक्ष्य 2030 तक पूरे राज्य की खेती को प्राकृतिक खेती में बदलना है।

प्राकृतिक खेती, खेती की वह विधि है, जिसमें रासायनिकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसमें बाहरी लागत की मदद के बिना परंपरागत खेती को बढ़ावा दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह छोटे किसानों के लिए ज्यादा उपयोगी साबित होगी क्योंकि यह उनकी मौजूदा खेती में लगने वाली लागत पर निर्भरता कम करती है।

परियोजना के तहत किसानों को एपीसीएनएफ को लागू करने के लिए नोडल एजेंसी रायथु साधिका संस्था द्वारा प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दिया जाएगा।

यह संस्था एक ओर तो कर्ज लेने के लिए एमसीपी बनाने में किसानों की मदद करेगी तो दूसरी ओर बाजारों के साथ तालमेल कर उनकी उपज को बिकवाने में भी उनका साथ देगी।

संस्था के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी रामाराव के मुताबिक, ‘छोटे और सीमांत किसानों में बड़ी संख्या अनुसूचित जाति के किसानों की है। प्राकृतिक खेती अपनाने से उनकी जुताई- बुवाई की लागत कम होगी और उनकी आय बढ़ेगी। हमने शुरू में महिला किसानों को ही इसलिए चुना क्योंकि स्वयं सहायता समूहों का यहां बेहतर तरीके से स्थापित नेटवर्क है और उनके साथ मिलकर हम क्षमता-निर्माण कार्यक्रम और प्रशिक्षण कार्यक्रम चला सकते हैं। फंड की उपलब्धता के आधार पर हम आगे दूसरे किसानों को भी योजना में शामिल करने के बारे में विचार करेंगे।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के ‘घरों की भूमि और पशुधन जोत व कृषि परिवारों की स्थिति का आकलन- 2019’ सर्वेक्षण के अनुसार, आंध्र प्रदेश में 12 फीसद किसान-परिवार, अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं। इनमें से एक बड़ा हिस्सा काश्तकार (ठेके पर काम करने वाले) किसान हैं।

सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के कार्यकारी निदेशक जीवी रामनजनेयुलु के मुताबिक, ‘’राज्य में 41 फीसदी से ज्यादा काश्तकार किसान हैं और उनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति के परिवार हैं। वे किसी योजना का फायदा नहीं ले पाते क्योंकि जमीन उनके नाम नहीं होती। यही वजह है कि वे नियमित खेती करने के काबिल नहीं हैं। इस लिहाज से यह योजना उनके लिए लाभदायक साबित होगी।’