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कृषि

नैनो यूरिया के बाद अब वैज्ञानिकों ने नैनो डीएपी के इस्तेमाल से पाई पैदावार और पौधों की ग्रोथ में कमी

नैनो डीएपी के इस्तेमाल के बाद गेहूं के दाने और भूसे में प्रोटीन उत्पादन के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा में भी गिरावट देखी गई

Shagun, Vivek Mishra

नैनो यूरिया के बाद अब नैनो डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) को भी कम प्रभावकारी पाया गया है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के वैज्ञानिकों द्वारा दो साल के क्षेत्रीय प्रयोग में पाया गया कि पारंपरिक नाइट्रोजन उर्वरक की तुलना में नैनो डीएपी जिन गेहूं के खेतों में इस्तेमाल की गई उनमें पैदावार में काफी कमी पाई गई है।

इसके साथ ही पौधों की ऊंचाई और गेहूं के दाने और भूसे में पोषक तत्वों की मात्रा में भी गिरावट देखी गई, जो प्रोटीन उत्पादन के लिए आवश्यक है।

पीएयू के इस शोध से पता चला कि नैनो यूरिया के लाभों के बारे में उठाई गई चिंताओं के समान नैनो डीएपी की दक्षता अभी भी अस्पष्ट है।

शोध के तहत पाया गया कि नैनो डीएपी के दो छिड़काव और फॉस्फोरस (आरडीपी) यानी पारंपरिक डीएपी की अनुशंसित खुराक के बिल्कुल भी इस्तेमाल न किए जाने से गेहूं के अनाज की उपज में 16.1 प्रतिशत की गिरावट आई।

पहले उपचार में यह पाया गया कि गेहूं की पैदावार 56.75 क्विंटल /हेक्टेयर से घटकर 47.61 क्विंटल हेक्टेयर रह गई।

वहीं, परिपक्वता के समय पौधे की ऊंचाई पहले परिदृश्य में 78.63 सेमी और दूसरे में 79.53 सेमी थी।

सरकार ने दावा किया कि नैनो डीएपी में 8 प्रतिशत नाइट्रोजन और 16 प्रतिशत फॉस्फोरस होता है, जो पारंपरिक डीएपी के 50 किलोग्राम बैग की जगह ले सकता है।

वहीं, उस परिदृश्य में उपज लगभग समान थी जहां 100 प्रतिशत आरडीपी को नैनो डीएपी के दो स्प्रे के साथ जोड़ा गया था।

यह शोध पीएयू के राजीव सिक्का, जीवनजोत धालीवाल और मनदीप कौर द्वारा 2022 और 2023 में किया गया। उन्होंने कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड द्वारा जारी नैनो डीएपी पर शोध किया। यह उन तीन कंपनियों में से एक है जिन्हें सरकार द्वारा नैनो डीएपी बनाने की अनुमति दी गई है। इसके अलावा जुआरी फार्म हब लिमिटेड और इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) को भी नैनो डीएपी बनाने की अनुमति दी गई है।

पीएयू के मृदा वैज्ञानिकों ने पीएयू लुधियाना के मृदा विज्ञान विभाग में स्थित अनुसंधान फार्मों में 12 विभिन्न परिदृश्यों के तहत नैनो डीएपी और पारंपरिक डीएपी का फोलिएर स्प्रे ( बढ़ते हुए पौधों में पत्तों पर किया गया स्प्रे) का मूल्यांकन किया। वैज्ञानिकों ने केवल पारंपरिक डीएपी और केवल नैनो डीएपी उपचारों के अलावा, इन दोनों को मिलाकर भी इस्तेमाल किया, जिसके बाद अनाज की उपज और पौधों की ऊंचाई की भी जांच की गई। जैसे 50 प्रतिशत या 75 प्रतिशत आरडीपी के साथ नैनो डीएपी के एक या दो स्प्रे किया गया।

जब नैनो डीएपी के दो छिड़काव किए गए तो पौधों में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कुल मात्रा 17.58 किलोग्राम/हेक्टेयर थी, जबकि पारंपरिक डीएपी के मामले में यह 26.60 किलोग्राम/हेक्टेयर थी।

यूरिया के बाद डीएपी देश में दूसरा सबसे अधिक खपत वाला उर्वरक है और इस प्रकार आयात को काफी हद तक कम करने, उर्वरक सब्सिडी बिल में कटौती करने और रासायनिक उर्वरकों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा तरल रूप में यूरिया को बढ़ावा देने वाला दूसरा उर्वरक है।

लगभग 1-12.5 करोड़ टन डीएपी की अनुमानित वार्षिक खपत में से, घरेलू उत्पादन लगभग 40 से 50 लाख टन हैऔर बाकी आयात किया जाता है।

2021 में, सरकार ने नैनो यूरिया लॉन्च किया था, लेकिन पारंपरिक दानेदार यूरिया का बेहतर विकल्प होने में इसकी वैज्ञानिक रूप से सिद्ध दक्षता के बारे में लगातार सवाल उठते रहे हैं।

पीएयू के मृदा विज्ञान विभाग के प्रमुख मृदा वैज्ञानिक सिक्का ने कहा “हमने नैनो डीएपी के साथ नाइट्रोजन और फॉस्फोरस पोषक तत्वों की मात्रा में कमी देखी। फॉस्फोरस एक पोषक तत्व है जो जड़ों के विकास को बढ़ावा देने में भी मदद करता है, इसलिए यदि जड़ें अच्छी तरह से विकसित नहीं हो रही हैं, तो वे नाइट्रोजन या अन्य पोषक तत्वों को ग्रहण करने में भी सक्षम नहीं होंगी। नैनो यूरिया के मामले में भी यही स्थिति थी। ”

नैनो यूरिया पर एक समान पीएयू शोध में पाया गया कि इसके उपयोग से गेहूं की उपज में 21.6 प्रतिशत की कमी और चावल की पैदावार में 13 प्रतिशत की कमी आई है।

इसके अलावा, जब नैनो यूरिया का उपयोग किया गया तो सालाना उपज में गिरावट आई। उन्होंने कहा, "इसका मतलब है कि हर साल कमी की मात्रा बढ़ती जाएगी, जो दर्शाता है कि मिट्टी खराब होती जा रही है।"