कृषि

उत्तर प्रदेश में चुनावी मुद्दा बना आवारा गौवंश

किसान रात दिन जागकर अपने खेतों की रखवाली लाठी डंडे से कर रहा है और सरकार को कोस रहा है

DTE Staff

महेश सेठ 

योगी सरकार के सत्ता संभालते ही अवैध बूचड़खानों के बंद करने के एलान के साथ ही गोवंश के वध पर सख्त कानून से प्रदेश में किसान इस वक्त परेशान है । आवारा पशु, जिसमें गाय ,बैल एवं बछड़े शामिल हैं खेतों मे खड़ी फसल सफाचट किए जा रहे है । किसान रात दिन जागकर अपने खेतों की रखवाली लाठी डंडे से कर रहा है और सरकार को कोस रहा है कि कानून तो बना दिया कि गौवंश की रक्षा की जाएगी, लेकिन राजनैतिक फायदे के लिए बनाए गये कानून आज किसानों के लिये सरदर्द साबित हो रहे हैं।

आजमगढ़ के लालगंज तहसील के खरवां गांव के किसान  दिनेश यादव भी आवारा गौवंश के खेत चरने की समस्या से खासे परेशान हैं।  वह कहते हैं कि दूसरे गांव के भी आवारा पशु खेत में खेत में खड़ी फसल चट कर जा रहे हैं और हम लोगों की कोई सुनने वाला नहीं है। क्या करे, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। गांव में जो लोग भी खेती कर रहे हैं, उनके सामने ये समस्या बडी विकराल है। हमारे गांव में लगभग चालीस प्रतिशत फसल इन आवारा गौवंश के कारण नष्ट हो गई है।नुकसान हो रहा है।  चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा है और इसका असर अबकी होने वाले लोकसभा चुनावों पर जरूर पड़ेगा।वोट मांगने वाले नेताओं के सामने यह सवाल जरूर पूछा जायेगा। 

यूपी के गाजीपुर जिले के एक गांव के किसान कई महीनों से दिन रात जाग रहे हैं, क्योंकि बेसहारा छोड़ दिये गए गौवंश का झुंड कहीं से भी आकर इनकी खडी फसल को सफाचट कर जा रहा है। समस्या यह है कि ये पशु भी इन किसानों के नहीं है। ये दूसरे गांव के पशुपालकों के है, जो इन्हें  दूध न देने के कारण या अन्य किसी कारणों से इन्हें छोड़ देते हैं और दूसरे गांव की ओर खदेड़ देते हैं।

वहीं मिर्जापुर जिले के जमालपुर गांव के किसान ओमप्रकाश सिंह बताते हैं कि फसल का करीब करीब पच्चीस प्रतिशत का नुकसान इन आवारा गौवंश द्वारा किया जा चुका है और अभी तक इनके रोकथाम के लिए कोई सिस्टम नहीं बना है।

दिन रात पहरेदारी जारी है। आमतौर पर इस क्षेत्र में मूंग, सब्जी,गेहूं, चावल की खेती की  जाती रही है लेकिन अगर इसी तरह नुकसान होता रहा तो किसान फसल नहीं लगाएं, क्योंकि प्राकृतिक नुकसान की तो भरपाई अगली फसल से की जा सकती है, लेकिन यह समस्या तो हर फसल के समय खड़ी है और इस का कोई निदान दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है और न ही कोई राजनीतिक दल इसपर कोई समाधान का रास्ता बता पा रहा है।

आगामी लोकसभा चुनावों में इसका असर जरूर देखने को मिलेगा।किसान सरकार की गौवंश के वध की इस व्यवस्था से नाराज हैं  क्योंकि उन्हें हर पहलू पर नुकसान हो रहा है, पहले तो वह दूध न देने वाली गाय ,भैंस ,बछड़ों को बेचकर कुछ पैसे कमा लेते थे, लेकिन अब तो सबकुछ बंद हो गया है, फसलों के नुकसान से स्थिति और भी खराब हो गई है।

आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या और किसानों को हो रहे नुकसान ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। एक समय था जब गाय बैल देश के किसानों की बडी पूंजी हुआ करते थे लेकिन क्या नौबत आ गई है कि यही गौवंश आज किसानों के दुश्मन बन गए हैं।जो किसान थोड़ा सक्षम हैं वे तो अपने खेतों में कटीली तार की बाड़ लगा रहे हैं, लेकिन जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं उन्हें ये आवारा गौवंश ज्यादा आर्थिक नुकसान पहुंचा रहे हैं।

मऊ जिले के किसान अरविंद आवारा गौवंश के द्वारा फसलों को हो रहे नुकसान की समस्या से खासे नाराज हैं वो कहते हैं कि पशुओं से अपनी फसल बचाने को लेकर खेती का र्खच बढ रहा है और किसान को उसका बढा मूल्य नहीं मिल रहा है इससे गाँव के किसानों में नाराजगी बढ रही है इसका सामना तो राजनेताओं एवं पार्टीयों को करना ही होगा।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के कृषि वैज्ञानिक डा.ज्ञानेश्वर चौबे, जो चौबेपुर गांव में ही रहते हैं बताते है कि यह समस्या तो बड़ी है, लेकिन अभी गांव के किसान खुलकर विरोध नहीं कर रहे है। प्रदेश और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार होने के कारण भी कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। फिर भी चुनाव में इसका असर दिख सकता है।