केंद्र में सत्ता हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने जुलाई 2014 में राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत की थी लेकिन पांच साल बाद भी यह योजना अपने मकसद से बहुत दूर है। यह योजना देसी गायों के संरक्षण, उनकी नस्लों के विकास, दुग्ध उत्पादन बढ़ाने और पशु उत्पाद की बिक्री समेत कई लक्ष्यों के साथ शुरू की गई थी।
कृषि मंत्रालय के अधीन पशुपालन और डेयरी विभाग ने 26 नवंबर 2018 को सूचना के अधिकार के माध्यम से बताया कि राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत बनने वाले 20 गोकुल ग्राम में से अब तक केवल 4 गोकुल ग्राम ही बने हैं। ये गोकुल ग्राम वाराणसी, मथुरा, पटियाला और तथावडे (पुणे) में बनाए गए हैं। विभाग ने यह भी बताया कि मिशन के लिए पिछले पांच साल में करीब 835 करोड़ रुपए जारी किए जा चुके हैं।
सूचना के अधिकार से प्राप्त दस्तावेजों पर आधारित “वादा फरामोशी” पुस्तक के मुताबिक, राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत दो राष्ट्रीय कामधेनू प्रजनन केंद्र बनाए जाने थे लेकिन अब तक एक केंद्र ही आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में बन पाया है।
31 जुलाई 2018 तक राष्ट्रीय गोकुल मिशन की प्रगति रिपोर्ट बताती है कि देश भर में नौ करोड़ दुधारू पशुओं में से सिर्फ 1.31 करोड़ पशुओं का ही हेल्थ कार्ड यानी नकुल स्वास्थ्य पत्र जारी किया जा सका है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत 2020-21 तक सभी नौ करोड़ दूधारू पशुओं का हेल्थ कार्ड जारी करने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन चार साल में 13 से 14 फीसदी दूधारू पशुओं का ही हेल्थ कार्ड जारी हो सका है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या निर्धारित अवधितक 100 फीसदी पशुओं को हेल्थ कार्ड दिया जा सकता है?
इतना ही नहीं, राष्ट्रीय गोकुल मिशन के माध्यम से सभी पशुओं का रजिस्ट्रेशन कर एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाए जाने की बात कही गई है। लेकिन जुलाई 2018 तक नौ करोड़ में से केवल 1.26 करोड़ पशुओं का ही रजिस्ट्रेशन हुआ।
पशुपालन और डेयरी विभाग की ओर से उपलब्ध कराई गई सूचना के मुताबिक, पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए देश भर में 10 आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) लेबोरेटरी बनाई गई हैं, जबकि लक्ष्य ऐसी 20 आईवीएफ लेबोरेटरी/ईटीटी (एम्ब्रायो ट्रांसफर टेक्नॉलजी) का था। यानी यह लक्ष्य भी 50 प्रतिशत ही पूरा हुआ है।
पुस्तक में लेखक संजॉय बासु, नीरज कुमार और शशि शेखर लिखते हैं, “गाय निश्चित तौर पर भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है, लेकिन पशुधन को लेकर कोई भी सरकार अब तक ठोस नीति नहीं बना सकी है। अलबत्ता गाय को राजनीति का केंद्र बनाकर देश का माहौल जरूर संवेदनशील बनाया जा रहा है।” लेखक आगे कहते हैं कि जो गाय करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी का जरिया बन सकती थी, उसे नफरत भरी राजनीति का माध्यम बना दिया गया है।