कृषि

59 फीसदी किसानों ने कहा, एमएसपी पर बने कानून: सर्वे

अपने बच्चों को भी किसान बनते देखना चाहते हैं 34 फीसदी किसान, जबकि 51 फीसदी ने माना उनके लिए फायदेमंद है खेती

Lalit Maurya

किसान और किसान संगठनों का एक वर्ग नए कृषि कानूनों का पुरजोर विरोध कर रहा है। इन नए अधिनियमों पर किसानों की राय जानने के लिए गांव कनेक्शन ने एक सर्वेक्षण किया था, जिसके नतीजे 'द एग्रीकल्चर फार्मर्स पर्सेप्शन ऑफ द न्यू एग्री लॉज' नामक रिपोर्ट के रूप में आज प्रकाशित किए हैं| इन कानूनों में अन्य बातों के साथ-साथ किसानों को खुले बाजार में अपनी फसल बेचने की आजादी देने का वादा किया गया है| आइये जानते हैं इस सर्वेक्षण में क्या कुछ निकलकर सामने आया है| 

सर्वे के अनुसार हर दूसरा किसान इन तीनों कानूनों का विरोध करता है, जबकि 35 फीसदी किसानों ने इन कानूनों का समर्थन किया है| हालांकि जिन 52 फीसदी किसानों ने इन कानूनों का विरोध किया है उसमें से 36 फीसदी को इन कानूनों के बारे में जानकारी ही नहीं है| इसी तरह इस कानून का समर्थन करने वाले 35 फीसदी किसानों में से 18 फीसदी को इनके बारे में कोई जानकारी नहीं है| ऐसे में उनकी राय कितनी मायने रखती है यह सोचने का विषय है| यह सर्वेक्षण 3 से  9 अक्टूबर के बीच देश के 16 राज्यों के 53 जिलों में किया गया था। 

57 फीसदी किसानों को डर है कि इन नए कानूनों के चलते वे अपनी उपज को कम कीमत पर खुले बाजार में बेचने को मजबूर हो जाएंगे| जबकि 33 फीसदी किसानों को डर है कि कहीं सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को ख़त्म तो नहीं कर देगी| वहीं 59 फीसदी किसानों की मांग है एमएसपी पर एक अनिवार्य कानून बनाया जाना चाहिए| एक और जहां छोटे और सीमान्त किसान (जिनके पास पाँच एकड़ से कम भूमि है) इन कानूनों का समर्थन करते हैं, वहीं दूसरी ओर बड़े किसान इन कानूनों के विरोध में हैं| 

28 फीसदी ने माना किसान विरोधी है मोदी सरकार

इस सर्वे में एक दिलचस्प बात यह सामने आई की जहां आधे से अधिक (52 फीसदी) किसान इन कानूनों के विरोध में हैं लेकिन उनमें से 36 फीसदी को यह नहीं पता की यह कानून क्या हैं| मोदी सरकार के विषय में 44 फीसदी किसानों की राय थी कि वो किसानों के हितेषी हैं जबकि 28 फीसदी का कहना था कि यह सरकार 'किसान विरोधी' है। एक अन्य सवाल के जवाब में जहां अधिकांश (35 फीसदी) किसानों ने माना कि मोदी सरकार को किसानों की चिंता है, जबकि लगभग 20 फीसदी ने कहा कि सरकार ने व्यापारिक घरानों और निजी कंपनियों का समर्थन किया है। 

क्या हैं वो तीनों विवादित कानून

गौरतलब है कि संसद के पिछले मानसून सत्र में तीन नए कृषि बिल पारित किए थे, जिसे बाद में 27 सितंबर को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद कानून का दर्जा दे दिया गया था| इसमें पहला कानून किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 है| इस कानून के तहत किसान अपनी उपज को कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) द्वारा निर्धारित बाजार यार्ड के बाहर भी बेच सकते हैं| यह नियम किसानों को उनकी उपज को बेचने की आजादी देता है|

दूसरा कानून किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) अनुबंध मूल्य एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 किसानों को पहले से ही तय मूल्य पर भविष्य की उपज को बेचने के लिए कृषि व्यवसायी फर्मों, प्रोसेसर, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों और बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ अनुबंध करने का अधिकार देता है। जबकि तीसरे कानून, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 का उद्देश्य अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज, और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाना और स्टॉक होल्डिंग सीमा को लागू करना है। 

सर्वेक्षण से पता चला है कि करीब 67 फीसदी किसानों को नए कृषि कानूनों के बारे में जानकारी है। जबकि दो-तिहाई को देश में चल रहे किसानों के विरोध के बारे में पता है। इस तरह के विरोध के विषय में उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के किसान कहीं अधिक जागरूक हैं| जहां इस बारे में 91 फीसदी किसानों को जानकारी है| जिसमें पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। वहीं पूर्वी क्षेत्र (पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़) में इस बारे में बहुत कम जागरूकता है| वहां 46 फीसदी से कम किसान इस बारे में जानकारी रखते हैं। 

इन कानूनों का समर्थन करने वाले 47 फीसदी किसानों का मानना है कि इन कानूनों की वजह से उन्हें देश में कहीं भी अपनी उपज बेचने की आजादी मिल जाएगी| जबकि इसके विपरीत इसका विरोध करने वाले 57 फीसदी किसानों का मानना है कि इन कानूनों की वजह से उन्हें खुले बाजार में कम कीमत पर अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर किया जाएगा| 

39 फीसदी किसानों का मत है कि नए कृषि कानूनों के चलते देश में मंडी / एपीएमसी प्रणाली पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगी| वहीं 46 फीसदी किसानों का मानना है कि इन कानूनों के चलते किसानों का शोषण करने वाली बड़ी और निजी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा। जबकि 39 फीसदी का कहना है कि इन कानूनों के चलते भविष्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी| 

लगभग 63 फीसदी किसानों का कहना है कि वो अपनी फसल को एमएसपी पर बेचने में कामयाब रहे थे| यह आंकड़ा दक्षिण क्षेत्र (केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश) में 78 फीसदी था| वहीं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश) में 75 फीसदी रहा| 36 फीसदी किसानों के लिए सरकारी मंडियां और एपीएमसी उपज बेचने का सबसे पसंदीदा माध्यम है। उत्तरपश्चिम क्षेत्र में करीब 78 फीसदी किसान इनके माध्यम से अपनी उपज बेचना पसंद करते हैं| 

जहां 36 फीसदी किसानों का मानना है कि नए कृषि कानूनों से उनकी स्थिति में सुधार आएगा, वहीं 29 फीसदी किसानों ने बताया कि उन्हें विश्वास है कि यह कानून 2022 तक उनकी आय को दोगुना करने में मदद करेंगे।