कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय के अधीन चल रहे कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग का बजट लगातार घट रहा है। संसद के बीते शीतकालीन सत्र में कृषि, पशुपालन एवं खाद्य प्रसंस्करण की संसदीय समिति की रिपोर्ट में यह बात सामने आई। कमेटी ने कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान की गिरती दशा पर नाराजगी भी जताई।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग द्वारा जो प्रस्ताव भेजा जा रहा है, उसके मुकाबले उसे कम फंड आवंटित किया जा रहा है। जैसे कि विभाग ने 2020-21 के अनुमानित बजट के लिए 10,650.17 करोड़ रुपए का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन विभाग को केवल 8362.52 करोड़ृ रुपए आवंटित किए गए। जबकि 2021-22 में 10,241 करोड़ के प्रस्ताव के मुकाबले 8513.62 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। इतना ही नहीं, जब 2020-21 का बजट रिवाइज किया गया तो आवंटित बजट (8397.71 करोड़ रुपए) को भी घटा कर 7762.38 करोड़ रुपए कर दिया गया।
समिति ने कहा कि विभाग को जो कुल फंड आवंटित हुआ है, उसमें से 70 से 75 प्रतिशत फंड वेतन और पेंशन पर खर्च किया जा रहा है, जबकि शेष 25 से 30 प्रतिशत फंड अलग-अलग स्कीम पर खर्च किया जा रहा है। 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में वेतन और अन्य स्थापना व्यय में वृद्धि की गई, जबकि स्कीम पर होने वाले खर्च में कमी की गई है।
2020-21 में स्कीम हेड पर होने वाले खर्च का अनुमानित बजट 2729 करोड़ रुपए था, लेकिन बजट रिवाइज करते वक्त इसे घटा कर 2305 करोड़ रुपए कर दिया गया। दिलचस्प यह है कि दिसंबर 2020 तक विभाग इसमें से केवल 1098.6 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाया।
इतना ही नहीं, 2021-22 में इस मद पर होने वाले खर्च घटा कर 2686 करोड़ रुपए कर दिया गया, जो पिछले तीन साल के मुकाबले सबसे कम था। कमेटी ने नाराजगी जताते हुए कहा कि कृषि अनुसंधान की विभिन्न योजनाओं की मदों पर खर्च बढ़ाने की बजाय लगातार कम किया जा रहा है। कमेटी ने कहा कि योजनाओं की मदों पर होने वाले खर्च में कमी नहीं की जानी चाहिए।
कमेटी ने इस बात भी चिंता जताई कि कोविड-19 की वजह से बजट एस्टिमेट में 15 प्रतिशत की कमी की गई और यह कमी केवल रिसर्च ग्रांट में की गई। कमेटी ने कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग से कहा कि वह इस मामले को गंभीरता से वित्त मंत्रालय के समक्ष उठाए।
विभाग ने कमेटी को बताया कि वित्त मंत्रालय की ओर से केश मैनेजमेंट गाइडलाइंस जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि हर तिमाही पर आवंटित बजट का 25 प्रतिशत की बजाय 20 प्रतिशत ही फंड निकाला जाए, लेकिन बजट बैठकों में इस मामले को उठाया गया और बजट में 7.17 प्रतिशत ही कमी की गई।
भारत में कृषि रिसर्च की अगुवाई नेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च सिस्टम करता है, जो अनुसंधान संस्थान, केंद्र व राज्य के कृषि विश्वविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय और कृषि कॉलेज की देखरेख करता है। इस समय देश में 103 शोध एवं शिक्षण संस्थान, 74 कृषि विश्वविद्यालय और 721 कृषि विज्ञान केंद्र हैं। जो शिक्षा के साथ-साथ रिसर्च का काम करते हैं। कमेटी ने निराशा जताई है कि इनके बजट आवंटन में 2018-19 से लगातार कमी की जा रही है।
2018-19 में बजट एस्टिमेट 618 करोड़ रुपए था, जिसे रिवाइज करके 525 करोड़ रुपए कर दिया गया। इसके बाद 2020-21 में बजट एस्टिमेट ही कम कर दिया गया। इस साल का बजट एस्टिमेट 480 करोड़ रुपए था, जबकि रिवाइज्ड एस्टिमेट 319 करोड़ रुपए कर दिया गया। यहीं नहीं 2021-22 में बजट एस्टिमेट में और कमी (355 करोड़ रुपए) कर दी गई।
यानी पिछले तीन साल में बजट आवंटन में लगभग 57 फीसदी की कमी की गई है। कमेटी ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि कृषि शिक्षा में बजट आवंटन में बहुत कमी कर दी गई है। कमेटी ने सिफारिश की है कि 2021-22 के बजट रिवीजन करते हुए इस मद पर आवंटन बढ़ाया जाए।
कमेटी ने यह भी नोट किया कि 2008-09 के मुकाबले 2020-21 में कृषि के अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में आवेदन करने वाले छात्रों और दाखिला लेने छात्रों बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है। विभाग ने कमेटी को बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) के दाखिले के लिए टेस्ट लिया जाता है। इस टेस्ट में केवल 15 प्रतिशत छात्र ही पास हो पाते हैं, जिन्हें आईसीएआर से संबद्ध विश्वविद्यालयों में दाखिला मिलता है। इसके अलावा राज्य स्तर पर भी एंट्रेस इग्जाम लिए जाते हैं।
कमेटी ने सुझाव दिया कि ऑल इंडिया लेवल पर कॉमन एडमिशन टेस्ट की व्यवस्था की जाए और साथ ही सभी कॉलेज-विश्वविद्यालयों में सीटों की संख्या बढ़ाई जाए। सरकार की ओर से जवाब दिया गया कि सभी कृषि विश्वविद्यालयों और संस्थानों में निर्धारित सीटों के लिए ऑल इंडिया एंट्रेस एग्जाम होता है। जो अंडर ग्रेजुएट कोर्स के लिए 15 प्रतिशत और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए 25 प्रतिशत है। चूंकि कृषि शिक्षा राज्य का विषय है, इसलिए शेष सीटें राज्यों द्वारा भरी जाती हैं।