कृषि

हर साल 40 फीसदी पैदावार को चट कर जाते हैं कीड़े, जलवायु परिवर्तन के साथ और बढ़ रहा है खतरा

जलवायु परिवर्तन के चलते न केवल फसलों पर कीड़ों का हमला बढ़ रहा है, साथ ही वो और आक्रामक भी बनते जा रहे हैं

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन के साथ फसलों पर कीड़ों का हमला बढ़ रहा है, यही नहीं जलवायु में आता बदलाव उन कीटों को और आक्रामक बना रहा है| जिससे खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है| यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र की मदद से किए गए एक अध्ययन में सामने आई है| यही नहीं यह कीट जंगलों और पारिस्थितिकी तंत्रों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं|

खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने जानकारी दी है कि दुनिया भर में हर साल करीब 40 फीसदी पैदावार को कीड़े नष्ट कर देते हैं| यही नहीं पौधों को लगने वाले रोगो से सालाना अर्थव्यवस्था को करीब 16 लाख करोड़ रुपए (22,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान पहुंच रहा है| वहीं यदि आक्रामक प्रजाति के कीटों की बात करें तो वो करीब 5.1 लाख करोड़ रुपए (7,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान पहुंचा रहे हैं| यही नहीं यह आक्रामक प्रजातियां जैविविधता के लिए भी एक बड़ा खतरा हैं|

इस शोध में फसलों को लगने वाले 15 कीटों का अध्ययन किया है जो जलवायु में आ रहे बदलावों के चलते और फैल रहे हैं या फिर भविष्य में फैल सकते हैं| वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि समय के साथ खतरा और बढ़ रहा है| उनके अनुसार यदि एक भी ऐसा साल आता है जब सर्दियां सामान्य से ज्यादा गर्म हो तो यह इन कीड़ों को फैलने और फसलों को नष्ट करने के लिए उपयुक्त माहौल पैदा कर सकती हैं|

इस रिपोर्ट को लांच करते हुए खाद्य और कृषि संगठन के महानिदेशक क्यू डोंग्यु ने कहा कि इस रिपोर्ट के निष्कर्ष हम सभी के लिए एक चेतावनी है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण इन कीड़ों का खतरा दुनिया भर में फैल सकता है और यह ज्यादा आक्रामक हो सकते हैं| यह अध्ययन इटली में ट्यूरिन विश्वविद्यालय की प्रोफेसर मारिया लोदोविका के द्वारा किया है जिसमें दुनिया भर के 10 शोधकर्ताओं ने सहयोग किया है|

रिपोर्ट के मुताबिक कीड़ों की फॉल आर्मीवर्म जैसी प्रजातियां, जो मक्का, ज्वार और बाजरा सहित कई अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं वो तापमान में हो रही वृद्धि के साथ पहले ही दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैल चुकी हैं। वहीं अन्य कीड़े जैसे रेगिस्तानी टिड्डियां उनमें भी बदलती जलवायु के साथ काफी बदलाव आ रहा है| जिसका असर इनके प्रवासी मार्गों और भौगोलिक वितरण पर भी पड़ रहा है जिसके भविष्य में बदलने की सम्भावना है| गौरतलब है कि यह कीट दुनिया के सबसे खतरनाक प्रवासी आक्रामक कीट हैं|

भारत पर भी बढ़ रहा है इन आक्रामक कीड़ों का हमला

फसलों पर जिस तरह से कीड़ों का खतरा बढ़ रहा है उससे भारत में भी फसलें सुरक्षित नहीं है| जिसका स्पष्ट उदाहरण 2018-19 में हुए फॉल आर्मीवर्म और 2019-20 में हुए टिड्डियों के हमले स्पष्ट  उदाहरण हैं जिन्होंने फसलों को अच्छा ख़ासा नुकसान पहुंचाया था|

विशेषज्ञों का मानना है कि फॉल आर्मीवर्म नाम के विदेशी कीड़े के लिए भारतीय जलवायु बेहद उपयुक्त है, इसलिए उसका प्रकोप बढ़ता जा रहा है| वहीं यदि टिड्डियों को देखें तो अकेले 2019 में इन्होने करीब 200 से भी ज्यादा बार हमला किया था| आमतौर पर देश में औसतन टिड्डी दल 10 से कम बार हमले करता है| 

टिड्डियों का एक झुंड कितना बड़ा हो सकता है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक टिड्डी दल में 10 अरब तक टिड्डियां हो सकती हैं, जोकि सैकड़ों किलोमीटर में फैल जाती हैं। वो एक दिन में 200 किमी तक की दूरी तय कर सकती हैं और अपने सामने आने वाले हर पेड़ पौधे को चट कर जाती हैं| 

यह किस कदर नुकसान पहुंचा सकती हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक व्यस्क टिड्डी का वजन करीब 2 ग्राम होता है जोकि हर रोज अपने वजन के बराबर ही फसलों को खा सकती है| एक वर्ग किलोमीटर में फैला टिड्डी दल करीब 35 हज़ार लोगों के खाने के बराबर फसलों और पौधों को चट कर सकता है|

शोधकर्ताओं के अनुसार यह बदलाव मुख्य रूप से खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा हैं जिसका सबसे ज्यादा असर छोटे किसानों पर पड़ने की सम्भावना है| साथ ही जो देश पहले ही खाने की कमी का शिकार हैं वहां इनसे खतरा कहीं ज्यादा बढ़ गया है|

श्री डोंग्यु के अनुसार सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पौधों का स्वास्थ्य बहुत मायने रखता है| ऐसे में जब जलवायु परिवर्तन कई तरह से फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है तो इसपर रोक लगाना बहुत मायने रखता है| इसके प्रभावों को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करने की जरुरत है क्योंकि यदि यह कीट एक देश पर हमला करते हैं तो इनका प्रभावी प्रबंधन अन्य देशों के लिए भी मायने रखता है|

शोधकर्ताओं के अनुसार जब पौधों की आधे से ज्यादा उभरती बीमारियां फसलों के व्यापार और उन्हें एक स्थान से दूसरी जगह ले जाने के कारण फैलती हैं, तो इनके प्रसार को रोकने के लिए बेहतर और उन्नत तरीके, साथ ही इनसे जुड़ी नीतियां भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं|