तीन दिन से क्यों पैदल चल रहे हैं आदिवासी, क्या हैं उनकी मांगें?

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में आदिवासियों से ली गई जमीन पर एक दर्जन से अधिक खदानें व आधा दर्जन थर्मल पॉवर स्टेशन बन चुके हैं
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के 36 गांवों में रह रहे आदिवासी तीन दिन की पदयात्रा कर रहे हैं। फोटो: राजेश गुप्ता
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के 36 गांवों में रह रहे आदिवासी तीन दिन की पदयात्रा कर रहे हैं। फोटो: राजेश गुप्ता
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छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में 39 से अधिक गांवों के आदिवासियों ने तीन दिवसीय पदयात्रा शुरू की है।

आदिवासियों की मांग है कि विकास के नाम पर उनकी जमीनों को सरकार ने हथिया लिया, लेकिन अब तक न तो पुनर्वास किया गया और न ही उचित मुआवजा दिया गया है। साथ ही, उन्हें उनकी जमीनों पर बनी खदानों व पावर प्लांटों से निकलने वाला प्रदूषण भी झेलना पड़ रहा है। रायगढ़ जिले में एक दर्जन से अधिक कोयले की खदानों और आधा दर्जन से अधिक थर्मल पावर स्टेशन स्थित हैं।  

आदिवासियों ने 21 फरवरी 2023 से अपनी लड़ाई शुरू करने से पहले हजारों की संख्या में संविधान का पाठ किया। यहां यह उल्लेखनीय है कि संविधान को आदिवासी धर्मग्रंथ से कम नहीं मानते। और इसका पाठ करके ही अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाते हैं। 

यह यात्रा आज यानी 23 फरवरी को देर रात प्रशासन को ज्ञापन सौंपने के बाद खत्म होगी। पदयात्रा का स्लोगन है- जब तक भूखा इंसान रहेगा-धरती पर तूफान रहेगा।

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तमनार घरघोडा धरमजयगढ क्षेत्र में जहां सबसे अधिक थर्मल पॉवर स्टेशन स्थित हैं। इसी के कारण यहां वायु प्रदूषण का कहर स्थानीय आदिवासियों पर टूट रहा है।

आदिवासियों का कहना है कि छत्तीगढ़ में पेसा (पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996) को ताक पर रख कर वन संसाधन, जल-जंगल-जमीन पर कब्जा, नए उद्योगों के लिए, खदानों के लिए कॉलोनी बनाने के लिए आदिवासियों को उनके जमीन से बेदखल किया जा रहा है।

यही नहीं] बड़ी संख्या में खदानों के कारण यहां की जैव विविधता भी खतरे में पड़ गई है। इसी दमन के खिलाफ यह पदयात्रा ग्राम पंचायत पेलमा से शुरू की गई। 

रायगढ़ जिले के कोयला प्रभावित क्षेत्र तमनार में सबसे अधिक छह कोयला खदानें हैं और कई थर्मल पॉवर स्टेशन हैं, साथ ही कई स्पंज आयरन प्लांट भी स्थित हैं। इसके प्रदूषण के कारण आदिवासी किसानों के खेत में व्यापक पैमाने पर डस्ट (धूल) उड़कर जा बैठती है।

ऐसे में उनकी उपज लगातार कम होते जा रही है। धान काली हो रही है, जिसके कारण यहां के सरकारी धान खरीदी केंद्रों में लेने से मना किया जा रहा है। किसान इसकी शिकायत कई बार जिला प्रशासन कर चुके हैं। प्रशासन की ओर से कोयला धोने के लिए कोल वाशरी तो लगाई गई है, लेकिन अब तक धान वाशरी नहीं लगाई गई है।

पदयात्रा के संयोजक राजेश त्रिपाठी बताते हैं कि जिले में पेसा कानून का जमकर उल्लंघन हो रहा है, ग्रामसभा की अनुमति के बिना आदिवासी ग्रामीणों की जमीनें ली जा रही हैं।

उनका कहना है कि लगभग ढाई दशक पूर्व जब यहां पर कोयला खदान और पॉवर प्लांट की शुरुआत की गई थी तब कंपनियों और सरकार द्वारा घोषणा की गई थी कि इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अलावा अच्छी सड़कें और तमाम सुवधाएं दी जाएंगी, मगर आज तक यहां के लोगों को रोजगार तो मिला नहीं, मिला तो बस जर्जर सड़कें और चारों ओर फैला हुआ वायु प्रदूषण।

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