दुनिया भर में प्राकृतिक आपदा से हर साल सीधे तौर पर औसतन 300 अरब डॉलर से अधिक की संपत्ति के नुकसान होने का अनुमान है। नुकसान में अन्य चीजों को जोड़ दिया जाए तो यह अनुमान बढ़कर 520 अरब डॉलर हो जाता है।
इन आपदाओं में एक बाढ़ भी है, इसके विनाशकारी प्रभावों से सबसे अधिक कम या मध्यम आय वाले देशों के लोग प्रभावित होते हैं।
एक नए अध्ययन के मुताबिक दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी भारी बाढ़ के खतरे में है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि गरीब देशों में रहने वाले लोग इसके कारण सबसे अधिक असुरक्षित हैं।
भारी वर्षा और तूफान के कारण आने वाली बाढ़ से हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं। घरों, बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्थाओं को अरबों डॉलर का नुकसान होता है।
बाढ़ के खतरे बढ़ रहे हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन अत्यधिक वर्षा और समुद्र के स्तर में वृद्धि के लिए जिम्मेवार है, इसके चपेट में आने वाली आबादी लगातार बढ़ रही है।
अध्ययन में समुद्र, नदियों और वर्षा से बाढ़ के खतरों के वैश्विक आंकड़ों के साथ-साथ विश्व बैंक से जनसंख्या वितरण और गरीबी के अनुमानों को देखा गया।
जिससे पता चला कि लगभग 1.81 अरब लोग या धरती पर रहने वाले 23 प्रतिशत लोग, 100 सालों में 1 बार आने वाली बाढ़ में 15 सेंटीमीटर से अधिक के सीधे संपर्क में हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि यह जीवन और आजीविका के नजरिए से विशेष रूप से कमजोर आबादी वाले लोगों के लिए भारी खतरा पैदा करेगा। कुल मिलाकर, बाढ़ की चपेट में आने वालों में से लगभग 90 प्रतिशत निम्न या मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
अध्ययन में यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि गरीबी में रहने वाले और गंभीर बाढ़ के खतरे में रहने वाले लोगों की संख्या पहले की तुलना में काफी अधिक है।
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि वैश्विक स्तर पर लगभग 9.8 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिक गतिविधि, 2020 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 12 प्रतिशत गंभीर बाढ़ के संपर्क में आने वाले इलाकों में स्थित है।
विश्व बैंक के जून रेंटस्लर और उनके सहयोगियों द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है, बाढ़ के सम्पर्क में आने वाली आबादी के गरीबी के स्तर के हिसाब से, पता चलता हैं कि कम आय वाले देश बाढ़ के खतरों के अनुपात में हैं, जबकि लंबे समय तक चलने वाले विनाशकारी प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।
बाढ़ के बढ़ते खतरे
अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि बाढ़ के संपर्क में आने वाले अधिकांश लोग (1.24 बिलियन), दक्षिण और पूर्वी एशिया में हैं, जिसमें चीन और भारत हैं, जो कि दुनिया भर के कुल भाग का एक तिहाई से अधिक हिस्सा है।
यह पाया गया कि लगभग 78 करोड़ लोग प्रतिदिन 5.50 डॉलर से कम आय पर जीवन यापन करते हैं, जो सौ सालों में एक बार आने वाली बाढ़ के खतरों में हैं।
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ आयरलैंड गॉलवे के थॉमस मैकडरमोट ने कहा कि शोध बाढ़ के खतरों और गरीबी के बीच प्रभाव का पहला वैश्विक अनुमान प्रदान करता है।
अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि पिछले अध्ययन अक्सर भूगोल या बाढ़ के खतरों के प्रकार पर सीमित थे और दुनिया भर में कितने लोग इससे प्रभावित हुए थे, इसे कम करके आंका गया था।
उन्होंने कहा जलवायु परिवर्तन और जोखिम भरे शहरीकरण पैटर्न से आने वाले वर्षों में इन खतरों के और बढ़ने की आशंका है।
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पता लगाने वाले वैज्ञानिकों के एक नेटवर्क ने ग्लोबल वार्मिंग के दुनिया के अधिकांश हिस्सों में अत्यधिक वर्षा को अधिक सामान्य और अधिक तीव्र बना दिया है।
बदलते मौसम ने इन क्षेत्रों में बाढ़ को और अधिक गंभीर बना दिया है, हालांकि वैज्ञानिक इस बात पर जोर देते हैं कि अन्य मानवजनित कारक भी इसमें अहम भूमिका निभाते हैं, जैसे भूमि उपयोग में बदलाव, इमारतें और बुनियादी ढांचे के निर्माण भी इसके लिए जिम्मेवार है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।