विज्ञापन से लेकर कार्यस्थल तक अक्सर यह माना जाता है कि पुरुष और महिलाएं मूल रूप से भिन्न हैं। हम सभी ऐसे लोगों को जानते हैं, जिनमें पुरुष और महिला व्यक्तित्व का सम्मिश्रण (उभयलिंगी) होता है। इन्हें स्टीरियोटाइप रूप से पुरुष या महिला माना जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस तरह के “मनोवैज्ञानिक उभयलिंगी” लंबे समय से बेहतर संज्ञानात्मक लचीलेपन (विभिन्न कार्यों या विचारों के बीच बदलाव की मानसिक क्षमता), सामाजिक क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य जैसे लक्षण प्रदर्शित करते हैं।
लेकिन मस्तिष्क से इसका क्या संबंध है? क्या वे लोग जो अपने व्यवहार में अधिक उभयलिंगी गुण प्रदर्शित करते हैं, अपने जैविक स्वभाव के विरुद्ध जा रहे हैं? क्या ये ऐसे काम कर रहे हैं जो उनके दिमाग के लिए अनुकूलित नहीं हैं? इस सवाल का जवाब लंबे समय से अज्ञात है कि क्या मस्तिष्क और उभयलिंगी होने के गुण के बीच कोई संबंध है। सेरेब्रल कोर्टेक्स जर्नल में प्रकाशित हमारा नया अध्ययन यह सुझाव देता है कि ऐसा होना आम है।
मनोवैज्ञानिक उभयलिंगी होना मनोवैज्ञानिक रूप से सुरक्षात्मक माना जाता है। उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि यह अवसाद और चिंता जैसी कम मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा है। इसे उच्च रचनात्मकता से भी जोड़ा गया है।
हम उन सभी लक्षणों से परिचित हैं, जो स्टीरियोटाइप रूप से पुरुष या महिला के रूप में वर्गीकृत हैं। उदाहरण के लिए, पुरुषों को भावनाओं को व्यक्त करने या परेशान होने पर रोने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है।
इसके बजाय उनसे कठिन, मुखर, तर्कसंगत और मानचित्र देखने जैसे दृश्यात्मक काम करने की उम्मीद की जाती है। दूसरी ओर, महिलाओं के बारे में माना जाता है कि ऐसी स्थिति में अक्सर वे अधिक भावनात्मक, दूसरों की देखभाल करने वाली और बेहतर भाषा का इस्तेमाल करती हैं।
लेकिन ये अंतर सामाजिक मानदंडों और अपेक्षाओं पर आंशिक रूप से खरे उतरते हैं। चूंकि हम सभी दूसरे के द्वारा पसंद किया जाना चाहते हैं, इसलिए हम पारंपरिक बने रहते हैं। यदि किसी लड़की को बताया जाए कि मुखर होना असभ्य है, तो वह इसे ठीक करने के लिए अपना व्यवहार बदल सकती है, जिससे उसके भविष्य के करियर विकल्प प्रभावित न हो। या फिर एक किशोर युवती को सैन्य या पुलिसिंग जैसे खतरनाक करियर के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है।
दिमाग में सेक्स
वैज्ञानिकों ने लंबे समय से इस बात पर तर्क-वितर्क किया है कि असल में विभिन्न नर और मादा दिमाग कैसे होते हैं। साहित्य में पुरुष और महिला दिमाग के बीच अंतर को लेकर काफी लिखा गया है। हालांकि, अन्य शोधकर्ताओं का तर्क है कि ये अंतर मामूली हैं। एक अध्ययन ने बताया है कि मनोवैज्ञानिक रूप से हममें से अधिकांश वास्तव में कहीं न कहीं एक ऐसी बीच की जगह पर होते हैं, जिसे रूढ़िवादी तरीके से हम “पुरुष” और “महिला” के रूप में जानते-समझते आए हैं।
लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि जो लोग इस बीच की अवस्था में होते हैं, वे दिमाग के साथ-साथ व्यवहार में भी अधिक उभयलिंगी होते हैं? इसकी जांच करने के लिए, हमने मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम और न्यूरोइमेजिंग डेटा का उपयोग करके एक ब्रेन रेंज बनाई। चूंकि नर और मादा दिमाग समान होते हैं, इसलिए अलग-अलग मस्तिष्क क्षेत्रों के बीच कनेक्टिविटी को अलग-अलग दिखाया गया है। हमने 9,620 प्रतिभागियों (4,495 पुरुष और 5,125 महिला) के दिमाग को चिह्नित करने के लिए इन कनेक्टिविटी मार्कर का उपयोग किया।
हमें पता चला कि दिमाग वास्तव में दो छोरों के बजाय पूरे रेंज में बंटा हुआ था। एक सबसैंपल में, लगभग 25 प्रतिशत दिमाग पुरुष के रूप में पहचाने गए, 25 प्रतिशत महिला के रूप में और 50 प्रतिशत रेंज के उभयलिंगी (एंड्रोजिनस) क्षेत्र में बंटे हुए थे। हमने पाया कि जिन प्रतिभागियों की मैपिंग इस रेंज के मध्य (एंड्रोजीनस) में थी, उनमें अवसाद और चिंता आदि जैसे मानसिक लक्षण दो छोरों की तुलना में कम थे।
ये निष्कर्ष हमारी इस परिकल्पना का समर्थन करते हैं कि ब्रेन एंड्रोजिनी (मस्तिष्क और तंत्रिका विज्ञान) की न्यूरोइमेजिंग अवधारणा मौजूद है, जो मनोवैज्ञानिक एंड्रोजिनी की तरह ही बेहतर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हो सकती है।
एंड्रोजिनी क्यों फायदेमंद है
बदलते वैश्विक परिवेश के अनुकूल नई चीजें सीखने के लिए हमें अपने आस-पास की दुनिया के प्रति चौकस रहने में सक्षम होना चाहिए। हमारे पास बेहतर मानसिक क्षमता और लचीलापन भी होना चाहिए और जीवन रणनीतियों की एक विस्तृत श्रृंखला को नियोजित करने में सक्षम होना चाहिए।
ये कौशल हमें बाहरी संदर्भ को तेजी से समझने और बेहतर निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं। ये हमें समय रहते अवसरों का लाभ उठाने और लचीला बनाने में मदद करते हैं। इसलिए, इन कौशलों के साथ एंड्रोजीनस दिमाग वाले लोगों के लिए फायदा अधिक है।
लेकिन ऐसा क्यों है? लगभग 20,000 प्रतिभागियों पर किए गए 78 अध्ययनों के मेटा-एनालिसिस से पता चला कि जो पुरुष विशिष्ट मर्दाना मानदंडों के अनुरूप होते हैं, उदाहरण के लिए दूसरों पर कभी भरोसा नहीं करते और महिलाओं पर बल प्रयोग करते हैं, उन्हें अन्य की तुलना में अवसाद, अकेलेपन, मादक द्रव्यों के सेवन समेत अधिक मनोरोग लक्षणों का सामना करना पड़ता है। वे कमजोर सामाजिक संबंध की वजह से खुद को अलग-थलग महसूस करते थे।
जो महिलाएं पारंपरिक सोच को मानते रहने की कोशिश करती है, उन्हें कीमत चुकानी होती है। हो सकता है कि उन्हें अपने सपनों की नौकरी से बाहर होना पड़े, क्योंकि इंडस्ट्री पर पुरुषों का वर्चस्व है। लेकिन, एंड्रोजीनस (उभयलिंगी) इंसान कुछ हद तक लिंग मानदंडों से प्रभावित नहीं होता।
इसका मतलब यह नहीं है कि स्पेक्ट्रम के बिल्कुल ही दूसरे छोर पर आने वाले लोगों के लिए कोई उम्मीद नहीं है। मस्तिष्क एक हद तक परिवर्तनशील है। यह संभावना है कि एंड्रोजीनस मस्तिष्क आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होता है। साथ ही दोनों के बीच बातचीत भी होती है। हमारे अध्ययन से पता चलता है कि लोगों की ब्रेन एंड्रोजिनी में जीवन के अलग-अलग चरणों में बदलाव हो सकते हैं।
आगे जीवन के विभिन्न चरणों में ब्रेन एंड्रोजिनी पर हो सकने वाले असर शिक्षा जैसे कारकों का इस पर होने वाले प्रभाव को लेकर और अधिक अध्ययन की आवश्यकता होगी। इसे देखते हुए हमने पाया कि एक एंड्रोजीनस ब्रेन बेहतर मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह जीवन भर स्कूल और कार्यस्थल में बेहतर प्रदर्शन प्रदान कर सकता है। हमें रूढ़ियों से बचने और बढ़ते बच्चों को संतुलित अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है।
(बारबरा जैकलीन साहाकियान क्लिनिकल न्यूरोसाइकोलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में प्रोफेसर हैं; क्रिस्टेल लैंगने कोगनिटिव न्यूरोसाइंस, यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च असोसिएट हैं; चियांग लुओ फूडान यूनिवर्सिटी में असोसिएट प्रिंसिपल इंवेस्टीगेटर ऑफ न्यूरोसाइंस हैं और यी झांग यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में विजिटिंग पीएचडी कैंडिडेट हैं। लेख द कन्वरसेशन से विशेष अनुबंध के तहत प्रकाशित)