पूरी दुनिया महामारी को थामने में जुटी हुई है। जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को छोड़कर, किसी भी दूसरी बीमारी या संक्रमण ने मौजूदा दौर में इस तरह दुनिया को बंधक नहीं बनाया था। अंटार्कटिका को छोड़कर सभी महाद्वीपों के 148 देशों में 1,68,019 मरीजों की पहचान हो चुकी है।
अमीर हो या गरीब, तकरीबन 40 करोड़ लोगों की गतिविधियां सीमित कर दी गई हैं और उन्हें जबरन आइसोलेशन (अलग-थलग) में रख दिया गया है। दूसरे देशों की यात्रा पर संपूर्ण प्रतिबंध लगाकर कम से कम पांच देशों ने व्यावहारिक रूप से खुद का आइसोलेशन कर लिया है। महामारी के खिलाफ लड़ाई में इसे कंटेनमेंट स्टेज (बीमारी का फैलाव रोकने का चरण) कहा जाता है।
लेकिन अदृश्य दुश्मन- कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) पहले ही हमारी पकड़ से निकल चुका है और बहुत तेजी से फैल रहा है। फरवरी के बाद से, चीन के बाहर मरीजों की संख्या में 15 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। 21वीं सदी की इस पहली नॉन-फ़्लू महामारी को नियंत्रित करने में हमारी लाचारी ने दहशत और भगदड़ बढ़ा दी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों में इसे रोक पाने को लेकर कोई ज्यादा उम्मीद नहीं है, लेकिन सवाल है कि क्या इसे अब रोका नहीं जा सकता है?
हम अभी भी नहीं जानते कि यह कब और कैसे जानवर से इंसान में आया, लेकिन हम अब निश्चित रूप से जानते हैं कि यह इंसान से इंसान में बहुत फुर्ती से जाता है। 1918 की सबसे खराब महामारी से सबक लेते हुए, हम सामाजिक प्राणियों को सामाजिक मेल-जोल से दूर रहने की सलाह दी जा रही है- औसतन 3 फुट की दूरी रखना- कोविद-19 के फैलाव को टालने का सबसे अच्छा तरीका है, रोकने का नहीं।
कोरोनावायरस हमारे लिए नया नहीं है, लेकिन कोविड-19 नया है। इस सदी में यह इस तरह का तीसरा है और इसका चरित्र वायरस के इस परिवार जैसा नहीं है।
माना जाता है कि कोरोनवायरस का कायांतरण मनुष्यों में अपना प्रसार बढ़ाने के लिए किया गया है: जान से मारने के लिए नहीं, बल्कि बीमार करने के लिए। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। कोविद-19 पहले के ऐसे दो संक्रमणों- सार्स और मर्स को मिलाकर हुई मौतों से ज्यादा लोगों को मार चुका है।
इसके लक्षण भी पुराने पैटर्न से अलग हैं। वे इतने हल्के होते हैं कि पता ही नहीं चलते और कई मामलों में बीमारी का पता चलने के बाद भी अदृश्य रहते हैं।
इसी के चलते इसका फैलाव बेलगाम है: जिनमें लक्षण नहीं दिखते, हम उनका इलाज नहीं करते या बीमारी को रोकने की कोशिश भी नहीं करते हैं। चीन में बीमारी फैलने के बाद, फौरन स्क्रीनिंग या बीमारी का पता लगाने के इंतजाम नाकाफी थे। चीनी कामगारों को नए साल की छुट्टी के फौरन बाद अफ्रीका में बिना स्क्रीनिंग आने की इजाजत दी गई थी।
यह हम सभी को महामारी का एक संभावित वाहक बनाता है, जिससे यह एकदम बेकाबू हो जाती है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में महामारी विज्ञान के प्रोफेसर मार्क लिप्सिच कहते हैं: “मुझे लगता है कि कुल मिलाकर अंत में यह काबू पाने लायक नहीं होगा।” चीन में महामारी के केंद्र और आसपास के 10 करोड़ लोगों को क्वारंटाइन (एकांत में रहना) के बाद छोड़े जाने पर, कोविद-19 दुनिया के बाकी हिस्सों में बहुत तेजी से फैला।
स्क्रीनिंग करने और बीमारी का पता लगाने के लिए दुनिया भर में कोशिशें तेजी से जारी हैं। इस बीच यूरोप, मध्य एशिया या कहीं एशिया में और अफ्रीकी देशों में कहीं भी बिना किसी सुराग के महामारी के नए केंद्र या सेकेंडरी हॉट-स्पॉट उभर सकते हैं।
इसका मतलब यह है कि दुनिया को हर संदिग्ध मरीज को ढूंढ़ने के लिए और मरीजों के साथ संपर्क में रहने वाले सभी लोगों को स्कैन करने के लिए एक और ज्यादा बड़ा और ज्यादा व्यापक नियंत्रण और निगरानी अभियान चलाना होगा। विकासशील देशों में बड़ी आबादी घने इलाकों में रहती है।
यह नियंत्रण और बीमार की पहचान के काम के असर को कम करता है, इस तरह कई चरणों में संक्रमण का मौका देता है, लगभग एक अनियंत्रित एटॉमिक चेन-रिएक्शन की तरह।
बाल रोग विशेषज्ञ टी. जैकब जॉन, जिन्हें माइक्रोबायोलॉजी और वायरोलॉजी में 25 साल से ज्यादा का व्यापक अनुभव है, कहते हैं: “एक साल में 60 फीसद से अधिक भारतीय आबादी संक्रमित हो जाएगी, क्योंकि संक्रमण अच्छी तरह से जड़ें जमा चुका होगा। इतनी बड़ी संख्या का दावा किए जाने का कारण यह तथ्य है कि मच्छर या जल-जनित संक्रमणों के उलट यह एक सांस का संक्रमण है।”
दुनिया में अब यह इस कदर फैल चुका है कि किसी भी दूसरे सर्दी और फ्लू की तरह एक आम सामुदायिक संक्रमण बन चुका है। इसे लेकर तर्क दिया जा रहा है कि इस तरह के हालात में लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाएगी, जिससे इससे लड़ने की क्षमता बढ़ेगी।
इसका एक मतलब यह भी है कि जब तक हम संक्रमण के इस स्तर तक पहुंचेंगे, कोविद-19 हजारों को शिकार बना चुका होगा।
सॉ स्वी हॉक स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के डीन यिक यिंग टीईओ कहते हैं -“जरूरी यह है कि यह समय के पैमाने पर कितना समय लेता है: चाहे छह-नौ महीने का समय लगे, जो कई स्वास्थ्य प्रणालियों को पूरी तरह बदल देगा, या कई वर्षों का जो स्वास्थ्य प्रणालियों को इसका सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार कर देगा।”
इटली और स्पेन में ऐसी हालत आ चुकी है, जबकि भारत और अफ्रीकी देश महामारी के कगार पर रहे हैं। जैसे ही वायरस फैलता है, पहले से ही दबाव का सामना कर रहा स्वास्थ्य क्षेत्र का बुनियादी ढांचा चरमरा जाएगा। ऐसे में स्थिति बेकाबू हो जाएगी और मौतों की संख्या बढ़ेगी।
इस तथ्य को लगभग स्वीकार कर लिया गया है कि हर साल दुनिया में फ्लू और सर्दी का मौसम आता है। उनमें से अधिकांश संक्रमण हैं जो अलग समय पर महामारी के रूप में सामने आए थे, लेकिन फिर धीरे-धीरे मौसमी हो गए।
क्या फिर वही दोहराया जाने वाला है? कुछ महामारी विशेषज्ञों का मानना है कि जल्द ही एक कोविद-19 सीजन भी होगा। लेकिन उससे पहले, इंसानी जिंदगियों की भारी कीमत चुकानी होगी।