लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस के ग्रांथम रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑन द क्लाइमेट चेंज एंड द एनवायरनमेंट, ऑक्सफोर्ड मार्टिन स्कूल और ट्रांज़िशन पाथवे इनिशिएटिव द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित शोध से पता चला है कि पेरिस समझौते के चार साल बाद भी अब तक ऊर्जा क्षेत्र के द्वारा इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। इसके अनुसार ऊर्जा क्षेत्र से सम्बन्ध रखने वाली दुनिया की कोयला, बिजली, तेल और गैस से जुडी शीर्ष 132 कंपनियों में से सिर्फ 13 ने अपने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को शून्य करने की प्रतिबद्धता जताई है। यह शोध कोयला क्षेत्र की 20, ऊर्जा से सम्बंधित 62, और तेल एवं गैस के कारोबार से जुड़ी 50 कंपनियों द्वारा सार्वजनिक रूप से दी गयी जानकारी पर आधारित है।
क्या है कंपनियों का मंतव्य
इसके अनुसार अब तक केवल तीन कोयला और खनन कंपनियों (बीएचपी बिलिंगटन, एक्सोकारो रिसोर्सेज, और साउथ32), नौ बिजली कम्पनियों (सीईजेड, ईडीएफ, एंडेसा, एनएल, ई ऑन, इबरड्रोला, नेशनल ग्रिड, ऑर्स्टेड और एक्सेल एनर्जी), और एक तेल एवं गैस उत्पादक कंपनी एनी ने एक तारीख तय की है, जब वह अपने कम से कम किसी एक व्यवसाय से हो रहे उत्सर्जन को बिलकुल बंद कर देंगे । इन 13 कंपनियों में से नौ के द्वारा एमिशन को पूरी तरह रोकने के लिए 2050 की तारीख तय की है, जबकि चार ने 2025 और 2030 की समय सीमा निर्धारित की है। हालांकि कंपनियों द्वारा जो प्रतिबद्धता जताई गयी है, उसकी सीमा भी भिन्न-भिन्न है। सभी 13 कम्पनियों ने उनके द्वारा सीधे तौर पर किये जा रहे उत्सर्जन को शून्य करने की योजना बनायीं है ।
इसमें सीधे तौर से किये गए उत्सर्जन से तात्पर्य कोयले, तेल और गैस के खनन से होने वाले और ऊर्जा के उत्पादन से होने वाले उत्सर्जन से है। जबकि केवल तीन कंपनियों ने अपने अप्रत्यक्ष उत्सर्जन को खत्म करने का वचन दिया है, जैसे कि उनके कार्यों के लिए बिजली के उपयोग से होने वाला उत्सर्जन, या फिर कंपनी द्वारा निकाले गए कोयले या गैस को अन्य कम्पनियों द्वारा जलाये जाने से होने वाले उत्सर्जन से है। रिपोर्ट के अनुसार केवल 20 फीसदी कंपनियां ही यह स्पष्ट रूप से मानती है कि नेट जीरो एमिशन तक पहुंचने की आवश्यकता है। जबकि 54 फीसदी स्पष्ट रूप से पेरिस समझौते के उद्देश्यों को स्वीकार करती हैं कि वैश्विक तापमान की वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास जरुरी हैं। वहीं केवल 39 फीसदी ने ही पेरिस समझौते के उद्देश्यों पर अपना समर्थन देने की बात की है।
दुनिया के कई देश और व्यवसाय 2050 से पहले ही अपने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को शून्य करने के प्रति प्रतिबद्धता जता चुके हैं | ताकि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक काल के मुकाबले 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखा जा सके । वैज्ञानिकों के अनुसार यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगी, तो इसके दुष्परिणाम दूरगामी होंगे, और उन्हें फिर बदला नहीं जा सकेगा। उनके अनुसार इससे बचने के लिए वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के शुद्ध उत्सर्जन को 2050 तक शून्य करने की जरुरत है। साथ ही ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी कम करना जरुरी है और साथ ही जिन्हे सीमित नहीं किया जा सकता उनकी रोकथाम के लिए पेड़ लगाने जैसे उपाय किये जाने चाहिए।